अफगानिस्तान छोड़कर भागे तालिबान के उप-विदेश मंत्री:तालिबान ने गिरफ्तारी का आदेश दिया था, लड़कियों की पढ़ाई पर बैन के खिलाफ थे

तालिबान के उप-विदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई को जबरन देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। वे अफगानिस्तान छोड़कर UAE चले गए हैं। स्टानिकजई ने अफगानिस्तान में लड़कियों की पढ़ाई पर रोक से जुड़े तालिबानी फैसले की आलोचना की थी।

तालिबान ने अफगान लड़कियों के सेकेंडरी और हाईयर ऐजुकेशन में एडमिशन लेने पर रोक लगा दी है। 20 जनवरी को पाकिस्तान बॉर्डर के पास खोस्त प्रांत में एक ग्रेजुएशन सेरेमनी में बोलते हुए स्टानिकजई ने कहा,

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पैगंबर मोहम्मद के वक्त भी पुरुषों और महिलाओं के लिए शिक्षा के रास्ते खुले थे। ऐसी उल्लेखनीय महिलाएं थीं कि अगर मैं उनके योगदान के बारे में विस्तार से बताऊं तो मुझे काफी वक्त लग जाएगा।

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स्टानिकजई के इस बयान के बाद तालिबान नेता मुल्ला अखुंदजादा ने उनकी गिरफ्तारी का आदेश दिया था।

भारत में मिलिट्री ट्रेनिंग ले चुके हैं स्टनिकजई

शेर मोहम्मद अफगानिस्तान के लोगार प्रोविंस के बराकी बरक जिले का है। 1963 में जन्मा शेर मोहम्मद तालिबान लड़ाकों की तरह ही पश्तून है। पॉलिटिकल साइंस से मास्टर्स करने के बाद उसने देहरादून की इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) में ट्रेनिंग ली। 1970 के दशक से ही इस एकेडमी में अफगान आर्मी के जवानों को भी ट्रेनिंग दी जाती थी।

भारत में अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद शेर मोहम्मद अफगान सेना में शामिल हुआ। सोवियत संघ-अफगानिस्तान युद्ध के दौरान वो अफगान आर्मी का हिस्सा था। 1996 में उसने अफगान सेना की नौकरी छोड़ दी। उस वक्त तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता में आ चुका था।

नौकरी छोड़ने के बाद शेर मोहम्मद तालिबान से जुड़ गया। वहीं, कुछ रिपोर्ट्स का दावा है कि सोवियत संघ के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद शेर मोहम्मद काबुल लौटने की जगह पाकिस्तान चला गया। यहीं वो तालिबान से जुड़ गया।

महिलाओं की नर्सिंग पर भी रोक

तालिबान ने पिछले महीने महिलाओं की नर्सिंग ट्रेनिंग पर भी रोक लगा दी थी। न्यूज एजेंसी AFP के मुताबिक दिसंबर में काबुल में स्वास्थ्य अधिकारियों की बैठक में तालिबान सरकार का फैसला सुनाया गया।

अफगानिस्तान में स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक इस मामले में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया था, लेकिन बैठक के दौरान ही उन्हें कहा गया कि महिलाएं और लड़कियां अब इन संस्थानों में पढ़ाई नहीं कर सकती हैं। इसकी कोई वजह नहीं बताई गई।

तालिबान के फैसले पर किक्रेटर राशिद खान ने भी चिंता जताई थी। उन्होंने कहा कि तालिबान के इस फैसले का अफगानिस्तान पर गहरा असर पड़ेगा, क्योंकि देश पहले से ही मेडिकल और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी से जूझ रहा है।

एमनेस्टी बोला- अफसानिस्तान में सबसे ज्यादा मातृ मत्यु दर, यह और बढ़ेगा

अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र मिशन ने भी तालिबान सरकार से अपने फैसले पर फिर से विचार करने की अपील की। मिशन ने कहा कि इस फैसले से देश के हेल्थ सिस्टम और विकास पर बुरा असर पड़ेगा।

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा महिलाओं की मौत बच्चों को जन्म देने के दौरान हो जाती है। देश में पहले से ही मेडिकल स्टाफ की कमी है। तालिबान के फैसले से देश पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।

BBC के मुताबिक तालिबान के इस फैसले से देश में महिलाओं की पढाई का आखिरी रास्ता भी बंद हो गया है। तालिबान ने 2021 में अफगानिस्तान पर दोबारा कब्जा कर लिया था। इसके बाद से वह महिलाओं पर कई पाबंदियां लगा चुका है।

सबसे पहले अलग-अलग सरकारी संस्थानों में काम कर रही महिलाओं से उनकी नौकरियां छीनी गईं। फिर उनकी पढ़ाई पर पाबंदियां लगाई गईं। अफगानिस्तान में महिलाएं सिर्फ छठी कक्षा तक ही पढ़ाई कर सकती हैं।

क्या है अफगानिस्तान का शरिया कानून

तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद कहा था कि देश में शरिया कानून लागू होगा। दरअसल, शरिया इस्लाम को मानने वाले लोगों के लिए एक लीगल सिस्टम की तरह है। कई इस्लामी देशों में इसका इस्तेमाल होता है। हालांकि, पाकिस्तान समेत ज्यादातर इस्लामी देशों में यह पूरी तरह लागू नहीं है। इसमें रोजमर्रा की जिंदगी से लेकर कई तरह के बड़े मसलों पर कानून हैं।

शरिया में पारिवारिक, वित्त और व्यवसाय से जुड़े कानून शामिल हैं। शराब पीना, नशीली दवाओं का इस्तेमाल करना या तस्करी, शरिया कानून के तहत बड़े अपराधों में से एक है। यही वजह है कि इन अपराधों में कड़ी सजा के नियम हैं।

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