प्राइवेट मून लैंडर ब्लू घोस्ट सफलतापूर्वक चांद पर उतरा:चांद के विशाल गड्ढे की जांच करेगा, जुगनू की प्रजाति पर रखा लैंडर का नाम

अमेरिकी कंपनी फायरफ्लाई एयरोस्पेस का ब्लू घोस्ट लैंडर आज यानी रविवार को सफलतापूर्वक चंद्रमा की सतह पर लैंड हो गया। यह चंद्रमा पर पहुंचने वाला दूसरा प्राइवेट कॉमर्शियल वाहन है।

यह लैंडिंग चांद के मेयर क्रीसियम रीजन में हुई। ब्लू घोस्ट को 15 जनवरी 2025 को इलॉन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स के रॉकेट फाल्कन 9 से स्पेस में भेजा गया था।

इस मिशन का मकसद धरती से चंद्रमा पर दिखाई देने वाले विशाल क्रेटर ‘सी ऑफ क्राइसिस’ की जांच करना है।

यह लैंडर चांद की मिट्टी का विश्लेषण करेगा। इसमें एक ड्रिल भी लगाई गई है, जो चांद की सतह से 3 मीटर नीचे जाकर वहां का तापमान रिकॉर्ड करेगी।

ब्लू घोस्ट ने लैंडिंग के कुछ देर बाद ही चंद्रमा से तस्वीरें भेजना शुरू कर दी थी। फायरफ्लाई कंपनी ने इन तस्वीरों को अपने सोशल मीडिया पर हैंडल पर शेयर किया है।

जुगनू की प्रजाति के नाम पर रखा ब्लू घोस्ट नाम

ब्लू घोस्ट का नाम अमेरिका में जुगनू की एक दुर्लभ प्रजाति के नाम पर रखा गया है। कंपनी के मुताबिक चार पैरों वाला यह छोटा लैंडर 6 फुट 6 इंच (2 मीटर) लंबा और 11 फुट (3.5 मीटर) चौड़ा है।

इस मिशन में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा भी सहयोगी है। एक अन्य कंपनी इन्ट्यूटिव मशीन्स को भी उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में उसका एथेना स्पेस यान को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतर जाएगा।

14 दिन का है ब्लू घोस्ट मिशन

इससे पहले इन्ट्यूटिव मशीन्स चांद पर उतरने वाली पहली प्राइवेट कंपनी थी। इसका अंतरिक्ष यान ओडीसियस पिछले साल 22 फरवरी को चांद पर पहुंचा था। हालांकि यह अंतरिक्ष यान एक गड्ढे की ढलान पर उतरा था, जिससे इसके लैंडिंग गियर टूट गए थे और ये पलट गया था।

ब्लू घोस्ट ने लैंडिंग से पहले दो हफ्ते तक चंद्रमा की परिक्रमा की और फिर आसानी से लैंड कर गया।

ब्लू घोस्ट मिशन करीब 14 दिन यानी चांद के एक दिन के बराबर है। यह मिशन पूरी तरह सफल हो जाता है तो इससे चांद तक इंसानी पहुंच को बढ़ाने में मदद मिलेगी।

इंसान ने 1972 में आखिरी बार चांद पर कदम रखा था

ओपन यूनिवर्सिटी के प्लेनेटरी साइंस रिसर्चर डॉ. शिमोन बार्बर ने BBC को बताया कि यह चांद पर सफलतापूर्वक उतरने वाला पहला प्राइवेट मिशन है। हम चांद पर जाकर हम अंतरिक्ष में रोबोटिक उपकरणों को चलाना सीख सकते हैं।

चांद के वातावरण काफी कठिन है। यह कभी बहुत ज्यादा गर्म तो कभी बहुत ज्यादा ठंडा होता है। यहां बहुत ज्यादा धूल और रेडिएशन है।

इंसान ने आखिर बार 1972 में अपोलो 17 मिशन के दौरान चंद्रमा पर कदम रखा था। डॉ. बार्बर ने बताया कि अपोलो मिशन बेहद सफल रहे। लेकिन वे ‘टच एंड गो’ मिशन थे।

उस समय अंतरिक्ष यात्री वहां तीन दिन रहते थे और फिर उन्हें वापस लौटना पड़ता था, क्योंकि इसकी लागत अरबों डॉलर में थी। यह टिकाऊ नहीं था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button