स्वीडन स्पेशल ओलिंपिक में भारतीय फुटबॉल टीम बनी चैंपियन, मप्र के तरुण ने दागा विजयी गोल

भोपाल। स्वीडन में खेले जा रहे स्पेशल ओलिंपिक में भारत की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम ने जीत का इतिहास रचा है। मध्य प्रदेश से पहली बार स्पेशल ओलिंपिक के लिए राष्ट्रीय फुटबॉल टीम में चयनित मप्र के जबलपुर के दिव्यांग खिलाडी तरुण कुमार ने पूरे टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया और आखिरी मैच में विजयी गोल दागते हुए टीम को ऐतिहासिक सफलता दिलाई।
पहली बार राष्ट्रीय टीम में खेले तरुण
जस्टिस तन्खा मेमोरियल स्कूल के महासचिव बलदीप मैनी ने बताया कि मध्य प्रदेश से पहली बार स्पेशल ओलिंपिक भारत की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम में जबलपुर से दिव्यांग खिलाडी तरुण कुमार का चयन अंतिम 10 खिलाडियों में दिल्ली में हुआ था।
पूरे टूर्नामेंट में लाजवाब प्रदर्शन
भारतीय टीम गत 13 जुलाई को दिल्ली से स्वीडन स्पेशल ओलिंपिक में भाग लेने गई थी, जहां भारतीय टीम को 16 जुलाई से 19 जुलाई तक आयोजित गोथिया स्पेशल ओलिंपिक ट्रॉफी-2024 के लिए खेलना था। टीम इंडिया ने पहले चारों मैच जीतकर फाइनल में प्रवेश किया। भारत ने 16 जुलाई को खेले अपने पहले मैच में फिनलैंड को 3-0 गोल से और दूसरे मैच में जर्मनी को 6-0 से हराकर दोनों मैच जीते। अगले दिन 17 जुलाई को भारत ने अपने तीसरे मैच में हांगकांग को 6-0 से हराया। उसके बाद अपने चौथे मैच में डेनमार्क को 3-1 गोल से हराकर फाइनल में प्रवेश किया।
गुरुवार को हुए फाइनल मैच में भारत ने एक बार पुनः डेनमार्क को कड़ी प्रतियोगिता में 4-3 गोल के अंतर से हराया। तरुण कुमार ने 3-3 गोल की बराबरी होने पर अंतिम क्षणों में आखिरी गोल दागकर भारत को यह ऐतिहासिक विजय दिलाई और भारत की तरफ से प्रतियोगिता में सर्वाधिक गोल करने में उसका दूसरा स्थान रहा।
बचपन में ही छोड़ गए थे पिता
जस्टिस तन्खा मेमोरियल रोटरी इंस्टीट्यूट फार स्पेशल चिल्ड्रन स्कूल में कक्षा 10वीं में पढ़ने वाले तरुण कुमार मेधावी छात्र हैं। उनकी दिव्यांगता की वजह से पिता ने बचपन में ही तरुण और उनकी मां संगीता ठाकुर को अकेला छोड़ दिया था। जिसके बाद मां ने हिम्मत न हारते हुए तरुण का पालन-पोषण अपने माता-पिता के घर रहकर किया।
रंग लाया मां का संघर्ष
तन्खा मेमोरियल स्कूल में मां ने तरुण का चार वर्ष की उम्र में प्रवेश कराया। पहले तरुण दिव्यांग प्रतियोगिताओं में फ्लोर हाकी खेलते थे, लेकिन लगभग 4-5 वर्ष पूर्व उनकी रुचि फुटबॉल खेलने में हुई और स्कूल ने उसकी रुचि को देखते हुए उनकी इस प्रतिभा को संवारने का कार्य किया।
राष्ट्रीय कोच प्रभात राही ने तरुण को लगातार चार वर्ष तक फुटबॉल खेलने की ट्रेनिंग दी। तरुण की मां संगीता ठाकुर तरुण को ट्रेनिंग दिलाने के लिए 20 किलोमीटर दूर उन्हें लेकर कभी शिवाजी ग्राउंड सदर और कभी पुलिस ग्राउंड लेकर आती रहीं।