अर्जुन रामपाल के नाना ने आजादी के बाद भारतीय फौज के लिए बनाई थी पहली तोप, करगिल युद्ध में भी हुआ था इस्तेमाल
अर्जुन रामपाल आज 26 नवंबर को अपना 52वां जन्मदिन सेलिब्रेट कर रहे हैं। साल 2001 में ‘प्यार इश्क और मोहब्बत’ से अपने करियर की शुरुआत करने वाले अर्जुन रामपाल ने ‘रॉक ऑन’, ‘आंखें’, ‘ओम शांति ओम’, ‘रा वन’, ‘डॉन’, ‘हाउसफुल’ जैसी कई शानदार फिल्में कीं। आज उनके बर्थडे पर हम अर्जुन रामपाल की फैमिली के बारे में वो बातें करने जा रहे हैं, जो काफी लोगों को शायद पता न हो।
अर्जुन रामपाल का जन्म 26 नवंबर 1972 को जबलपुर , मध्य प्रदेश में हुआ। भारत में एक मिलिट्री बैकग्राउंड में जन्मे अर्जुन उस परिवार की संतान हैं जिनके नाना का बनाया हथियार आज भी मिलिट्री में इस्तेमाल होता है।
भारत की आजादी के बाद भारतीय सेना के लिए पहली तोप डिजाइन की थी
एक्टर के नाना ब्रिगेडियर गुरदयाल सिंह ने भारत की आजादी के बाद भारतीय सेना के लिए पहली तोप डिजाइन की थी । अर्जुन के पिता ब्राह्मण हैं, जबकि उनकी मां सिख और डच से ताल्लुक रखती हैं । यही वजह है कि अर्जुन बचपन से अलग-अलग संस्कृतियों से जुड़े रहे हैं और ऐसे परिवार में पले-बढ़े जहां परिवार क्रिसमस से लेकर दिवाली और ईद सब मनाया जाता था।
‘मेरे दादा जी और नाना जी दोनों ही सेना में थे’
बता दें कि अर्जुन के नाना जी ने देश की आजादी के बाद भारतीय सेना के लिए पहली तोप तैयार की थी, जिसका आज भी इस्तेमाल किया जा रहा है।अर्जुन ने अपने परिवार के बैकग्राउंड पर बातें करते हुए कहा था, ‘मेरे दादा जी और नाना जी दोनों ही सेना में थे, लेकिन मेरे नाना ब्रिगेडियर गुरदयाल सिंह ने आजादी के बाद भारतीय सेना के लिए पहली तोप तैयार की थी।
ये एक हल्की तोप है लेकिन लंबी दूरी की तोप है
बताया जाता है कि ये एक हल्की तोप है लेकिन लंबी दूरी की तोप है, जिसे कोई भी आसानी से ले जा सकता है और एयरक्राफ्ट के जरिए कहीं ले जाया जा सकता है या पहाड़ों पर भी ले जा सकता है। कहते हैं कि उनके नाना ने कोई इंजीनियरिंग की पढ़ाई नहीं की थी, लेकिन उनका दिमाग इतना तेज़ था कि उन्होंने बहुत सारे इंजीनियरों के साथ मिलकर इस तोप के डिज़ाइन पर काम किया।
इस तोप का इस्तेमाल कारगिल युद्ध में किया गया था
अर्जुन ने ‘मिड डे’ से बातचीत में बताया था कि इस तोप को डिज़ाइन करने में उन्हें दो साल लग गए थे और इसका इस्तेमाल 40 से अधिक साल से भारतीय सेना में किया जा रहा है। उन्होंने कहा था कि जहां ज़्यादातर हथियार पुराने हो जाने पर बंद कर दिए जाते हैं, वहीं मेरे भाई कर्नल शशि रामपाल ने मुझे बताया कि इस तोप का इस्तेमाल करगिल युद्ध में किया गया था।
फर्स्ट वर्ल्ड वॉर और सेकंड वर्ल्ड वॉर दोनों युद्ध में देश की सेवा की थी
अर्जुन अपने नाना और एक सेना अधिकारी के रूप में उनके साहस और वीरता से भरे जीवन की बहुत बहुत पसंद करते हैं। उन्होंने उनपर एक फिल्म बनाने की ख्वाहिश जताते हुए कहा था, ‘मैं उनके जीवन पर एक फिल्म बनाना पसंद करूंगा, यह एक अद्भुत कहानी थी। यह एक ऐसा सपना है जिसे मैं जल्द ही पूरा करना चाहूंगा। मेरे नाना ने फर्स्ट वर्ल्ड वॉर और सेकंड वर्ल्ड वॉर दोनों युद्ध में देश की सेवा की थी।
‘मेरे नाना कमांडिंग ऑफिसर थे जिन्होंने जापानी सेना को हराया’
उन्होंने अपनी बातचीत में कहा था, ‘मेरे नाना कमांडिंग ऑफिसर थे जिन्होंने जापानी सेना को हराया और जापानी कमांडर-इन-चार्ज ने अपने समुराई नाना जी को सौंप दिए, जैसा कि तब चलन था।’
देवलाली में एक पूरा संग्रहालय है जिसमें तोपखाना केंद्र बनाया गया है
उन्होंने आगे कहा, ‘मेरे दादा एक खास व्यक्ति थे क्योंकि वे एक जवान से ब्रिगेडियर तक पहुंचे थे। उन्होंने पहली पारा-ट्रूपर रेजिमेंट शुरू की थी। देवलाली में एक पूरा संग्रहालय है जिसमें उनके सम्मान में एक तोपखाना केंद्र बनाया गया है। दादा एक सम्मानित अधिकारी थे।’
‘ सेना में शामिल होना चाहता था और एनडीए में भी गया था’
अर्जुन ने अपना बचपन याद करते हुए कहा था, ‘जब हम बच्चे थे तो जब हम देवलाली जाते थे तो वे हमें संग्रहालय और रेंज में सभी शो दिखाने के लिए ले जाते थे। हमने बोफोर्स तोपें देखीं। मैं सेना में शामिल होना चाहता था और एनडीए में भी गया था, लेकिन इसके साथ ही कहीं न कहीं मैं एक्टर बनने के बारे में भी सोच रहा था।’