स्टायपेंड बढ़ाने की मांग को लेकर इंटर्न डॉक्टर हड़ताल पर, रात में निकाला कैंडल मार्च

भोपाल। गांधी मेडिकल कालेज के इंटर्न डॉक्टर अपनी मांगों को लेकर गुरुवार को हड़ताल पर बैठ गए। वे सुबह आठ बजे से रात नौ बजे तक हमीदिया अस्पताल परिसर में बैठे रहे। इसके बाद उन्होंने कैंडल मार्च निकाला। इंटर्न की यह हड़ताल शुक्रवार को भी जारी है।

उनकी मांग है कि अन्य राज्यों की तुलना में मप्र के सरकारी अस्पतालों में इंटर्न डॉक्टरों को सबसे कम स्टायपेंड मात्र 13 हजार रुपये प्रतिमाह दिया जा रहा है। इसलिए उनका स्टायपेंड बढ़ाकर 30 हजार रुपये प्रतिमाह किया जाए। शहर के हमीदिया अस्पताल के अलावा पूरे प्रदेश भर के सरकारी अस्पतालों में काम करने वाले इंटर्न डॉक्टरों ने भी हड़ताल की है। यह हड़ताल स्टायपेंड बढ़ाने के लिए की जा रही है। छात्रों ने इससे पहले बुधवार को काली पट्टी बांधकर काम किया था।
गौरतलब है कि प्रदेश भर के शासकीय चिकित्सा महाविद्यालयों में करीब तीन हजार से अधिक विद्यार्थी इंटर्न के रूप में काम कर रहे हैं। वहीं, हमीदिया अस्पताल में इनकी संख्या 180 से अधिक है। ये इंटर्न डॉक्टर हमीदिया अस्पताल में माइनर मरीजों का इलाज करते हैं। सीनियर डॉक्टरों और पीजी को असिस्ट करते हैं। ओपीडी में भी यह इंटर्न काम करते हैं।

असम में 36 हजार रुपये अधिक स्टायपेंड

हड़ताल पर बैठे इंटर्न यशपाल सिंह ने बताया कि 2018 में हमारी वार्षिक फीस 50 हजार रुपये होती थी, इसको बढ़ाकर एक लाख कर दिया गया है। जबकि हमें मासिक स्टायपेंड वही दिया जा रहा है, जो 2018 के बैच को दिया जा रहा है। इसलिए हम लोग स्टायपेंड वृद्धि की मांग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि असम जैसे छोटे राज्यों में भी इंटर्न छात्रों को 36,200, मेघालय में 30,000 रुपये प्रतिमाह स्टायपेंड दिया जा रहा है।

प्रदेशभर में तीन हजार से अधिक इंटर्न

2019 बैच के प्रदेश में तीन हजार से ज्यादा इंटर्न डॉक्टर हैं, जो एक अप्रैल 2024 से लगातार बिना किसी छुट्टी के काम करते आ रहे हैं। वे छह घंटे की रेगुलर ड्यूटी के साथ नाइट ड्यूटी भी करते हैं। इन लोगों ने साढ़े चार साल तक मेहनत कर एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की है। इंटर्न डॉक्टरों ने बताया कि मध्य प्रदेश स्टायपेंड के मामले में देश में 26वें नंबर पर है।
इंटर्न डॉक्टरों का स्टायपेंड विभाग निर्धारित करता है। इन्होंने गुरुवार सुबह आठ बजे तक अस्पताल में काम किया, इसके बाद वे हड़ताल पर बैठ गए। हालांकि, इससे मरीजों के उपचार में कोई परेशानी नहीं आई।
– डा. कविता एन सिंह, डीन, गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल

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