भोपाल गैस त्रासदी के बाद पांच सालों में 18 हजार प्रभावितों की गई जान

भोपाल। भोपाल गैस त्रासदी को 40 साल हो गए, लेकिन इसका असर अब भी लोगों और उनकी अगली पीढ़ियों पर महसूस किया जा रहा है। दो और तीन दिसंबर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड के कारखाने से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस लीक होने से 3787 लोगों की जान गई और पांच लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए।

भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज के फारेंसिक विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. डीके सत्पथी का दावा है कि त्रासदी की रात से अगले पांच सालों में 18 हजार प्रभावितों की जान गई है। भोपाल में गैस त्रासदी की बरसी पर आयोजित कार्यक्रम में डॉ. डीके सत्पथी ने कहा कि आपदा के पहले दिन उन्होंने 875 पोस्टमार्टम किए थे।

गैस हादसे वाले दिन से लगातार बीमार थे लोग

अगले पांच सालों में उन्होंने गैस प्रभावितों के 18 हजार शव परीक्षण देखे। इन शव परीक्षणों में जहर की पुष्टि तो नहीं हो पाई, लेकिन जिन लोगों की मौत हुई थी वे गैस हादसे वाले दिन से लगातार बीमार ही रहे थे। यह उस जहर का ही असर था, इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए था।

गर्भवती महिलाओं के बच्चों पर पड़ा असर

डॉ सत्पथी ने कहा कि यूनियन कार्बाइड ने गर्भस्थ शिशुओं में जहर के असर को हमेशा खारिज किया, लेकिन इस त्रासदी में मरने वाली गर्भवती महिलाओं के रक्त परीक्षण में यह देखा गया कि उसमें पाए गए जहरीले पदार्थों में से 50 प्रतिशत गर्भस्थ बच्चे में भी पहुंचे हुए थे, जो गर्भवती महिलाएं बच गईं उनके गर्भस्थ शिशुओं में इसका प्रभाव निश्चित रूप से पड़ा है।

केवल एंडरसन ही अपराधी नहीं, सिस्टम भी है

डॉ. सत्पथी ने कहा कि भोपाल गैस त्रासदी के लिए केवल यूनियन कार्बाइड का संचालक एंडरसन ही अपराधी नहीं था। वे लोग भी अपराधी थे, जिन्होंने जानबूझकर या अंजाने में ऐसे खतरनाक उद्योग को बड़ी आबादी के इलाके में संचालन की अनुमति दी, उसे चलने दिया। उद्योग सुरक्षा विभाग के वे अफसर भी अपराधी हैं जो हर महीने कंपनी में सब कुछ ठीक की रिपोर्ट भेजते रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button