43 साल बाद मिला इंसाफ, ईपीएफओ की लापरवाही उजागर:बेटे को मिला पिता के PF का हक, 4 दशक तक अटकी रही राशि

1982 में पिता की मौत हुई, बैंक ने बेटे को अनुकंपा नियुक्ति दी, बेटा भी 2020 में रिटायर हो गया। लेकिन पिता की पीएफ राशि नहीं मिली। आखिरकार 42 साल बाद भोपाल उपभोक्ता आयोग ने फैसला सुनाया और EPFO को 6 लाख की राशि पर ब्याज सहित करीब 28 लाख रुपए अदा करने का आदेश दिया है।

पूरा मामला सीधी निवासी सदाशिव परांडे का है। जिन्होंने अपने पिता स्वर्गीय बाला साहेब परांडे की भविष्य निधि राशि पाने के लिए 1982 से लेकर 2021 तक लगातार चक्कर काटे, आवेदन दिए, दस्तावेज पेश किए, लेकिन उन्हें हर बार निराशा ही मिली।

बेटा बना चपरासी – PF आज तक अटका रहा

बाला साहेब परांडे, मध्यप्रदेश राज्य सहकारी बैंक भोपाल में सब अकाउंटेंट थे। 10 फरवरी 1982 को उनकी नौकरी के दौरान ही मृत्यु हो गई। इसके बाद उनके बेटे सदाशिव परांडे को 1983 में अनुकंपा नियुक्ति दी गई। लेकिन उनके पिता के पीएफ की रकम बैंक या EPFO ने नहीं दी।

सदाशिव एक दिव्यांग व्यक्ति हैं, जिन्होंने 2020 में रिटायरमेंट ले लिया, लेकिन उसके बाद भी पिता की PF राशि के लिए संघर्ष जारी रखा।

EPFO हर बार बहाना बनाता रहा

सदाशिव ने PF क्लेम के लिए बार-बार आवेदन दिए। उन्होंने फॉर्म-20, मृत्यु प्रमाण पत्र, परिवार सूची जैसे सभी जरूरी दस्तावेज बैंक और EPFO को सौंपे। बैंक ने भी 2021, 2022 और 2023 में तीन बार EPFO को 10 मार्च 2021, 14 अक्टूबर 2021 और 11 अक्टूबर 2023 को दस्तावेज भेजे।

EPFO ने हर बार कोई न कोई तकनीकी कमी निकालकर फॉर्म लौटा दिया। लेकिन आयोग ने पाया कि EPFO ने कभी भी ये स्पष्ट नहीं किया कि कौन-कौन से दस्तावेज अधूरे हैं, और न ही बैंक को कोई स्पष्ट जवाब दिया।

उपभोक्ता फोरम में दायर किया परिवाद

थक-हारकर सदाशिव परांडे ने 2021 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 35 के तहत भोपाल जिला उपभोक्ता आयोग में परिवाद दायर किया। यह केस 23 सितंबर 2022 से चल रहा था, जिसका निर्णय अब 10 जून 2025 को आया।

आयोग की बेंच-2 (अध्यक्ष गिरिबाला सिंह, सदस्य अंजुम फिरोज और प्रीति मुद्गल) ने माना कि EPFO की ओर से सेवा में गंभीर कमी बरती गई है और पीड़ित को मानसिक, आर्थिक व शारीरिक क्षति हुई है।

EPFO की ओर से जवाब देने में टालमटोल की

आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि मध्यप्रदेश राज्य सहकारी बैंक की ओर से कोई लापरवाही नहीं हुई है। बैंक ने समय पर दस्तावेज भेजे थे और अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाई। वहीं EPFO की ओर से जवाब देने में टालमटोल की गई और दस्तावेज अधूरे बताकर केस को वर्षों लटकाया गया।

वकीलों की राय – यह फैसला मिसाल बनेगा

सीनियर एडवोकेट संजय श्रीवास्तव ने कहा, "1982 में जो PF जमा था, वही आज भी EPFO के पास है। इस रकम को पाने के लिए सदाशिव जी 2021 से लगातार ऑफिसों के चक्कर काट रहे थे।

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