साढ़े चार साल के पहले नहीं हटाए जा सकेंगे निकायों के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष, अध्यादेश लाने की तैयारी

भोपाल। नगर पालिका और परिषद के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाना अब आसान नहीं होगा, क्योंकि सरकार अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि साढ़े चार वर्ष करने की तैयारी में है। पांच वर्षीय कार्यकाल में अविश्वास प्रस्ताव आते-आते तो कार्यकाल पूरा होने लगेगा। सरकार मध्य प्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1961 में संशोधन करके अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत करने की अवधि एक बार फिर बढ़ाकर साढ़े चार वर्ष करने जा रही है। यह अवधि पिछले साल अगस्त में दो से बढ़ाकर तीन वर्ष की गई थी। नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने प्रस्ताव तैयार कर लिया है। इसे वरिष्ठ सचिव समिति से हरी झंडी मिलते ही कैबिनेट के सामने अंतिम निर्णय के लिए रखा जाएगा।
प्रदेश में 16 नगर निगम, 98 नगर पालिका और 264 नगर परिषद हैं। इनमें से महापौर और अध्यक्ष के लगभग 80 प्रतिशत पदों पर भाजपा या उसके समर्थक हैं। यही स्थिति पार्षदों को लेकर भी है। पार्षदों की नाराजगी के कारण कई निकायों में अध्यक्षों को पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव की सूचनाएं दी गई थीं। इस स्थिति से बचने के लिए सरकार ने पिछले साल अगस्त में अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि दो से बढ़ाकर तीन वर्ष कर दी थी। उम्मीद थी कि स्थितियां बदल जाएंगी पर ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है।
सूत्रों का कहना है कि कई स्थानों से अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने की सूचनाएं प्राप्त हो रही हैं। उधर, नगर पालिका संघ ने मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव को पत्र लिखकर कहा कि पार्षद दबाव बनाते हैं। इससे वे विकास कार्यों को गति नहीं पाते हैं, इसलिए अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि बढ़ाई जानी चाहिए। सरकार भी इस तर्क से काफी हद तक सहमत है। इसे आधार बनाकर ही अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए अवधि तीन से बढ़ाकर साढ़े चार वर्ष करने के लिए अध्यादेश का प्रारूप तैयार किया है, जिसे वरिष्ठ सचिव समिति की हरी झंडी मिलते ही कैबिनेट के समक्ष अंतिम निर्णय के लिए प्रस्तुत किया जाएगा।
ऐसा लाया जाता है अविश्वास प्रस्ताव
अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के विरुद्ध तीन चौथाई पार्षद अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं। इसके स्वीकार होने पर बुलाए जाने वाले विशेष सम्मेलन में कोई भी पार्षद प्रस्ताव प्रस्तुत करेगा। यह तीन चौथाई पार्षदों के बहुमत से ही पारित होगा। इसके बाद रिक्त की पूर्ति के लिए मुख्य नगर पालिका अधिकारी द्वारा कलेक्टर को प्रस्ताव भेजेंगे, जो राज्य निर्वाचन आयोग के पास जाएगा और उपचुनाव होगा।
लोकतंत्रिक व्यवस्था समाप्त करना चाहती है सरकार
प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव ने आरोप लगाया कि सरकार निर्वाचित पार्षदों का अधिकार छीन कर अध्यक्षों को मनमानी करने की छूट देना चाहती है। भ्रष्टाचार चरम पर है और इसके विरुद्ध कोई आवाज न उठा सके, इसका प्रविधान अधिनियम में संशोधन करके किया जा रहा है। अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि साढ़े चार वर्ष कर दी जाती है तो फिर पांच वर्षीय कार्यकाल में यह आ ही नहीं पाएगा क्योंकि इसके बाद तो चुनाव की तैयारियां प्रारंभ हो जाती हैं। इसके विरोध में प्रदेशभर के पार्षदों का वृहद सम्मेलन बुलाया जाएगा और आवश्यकता पड़ने पर हाई कोर्ट में याचिका भी दायर की जाएगी।