कलेक्टर से भिड़ने वाले भाजपा विधायक फिर भड़के:चुनाव अभी दूर… लेकिन सीएम पद की रेस शुरू

सियासतदानों का एक आजमाया हुआ पैंतरा इन दिनों एमपी में एक बार फिर ट्रेंड में है। पैंतरा ये कि नेताजी अपने दिल के अरमान जब आकाओं के सामने खुद बयां करने की हिम्मत न जुटा सके तो समर्थकों के जरिए बयां करवा देते हैं।

समर्थक परिणाम सोचे बिना मुंह फाड़कर अरमान बड़बड़ाने लगते हैं। ये बड़बड़ाहट वोटरों के कानों तक पहुंचकर देश के लिए संकट बन जाती है। वोटर कन्फ्यूज हो जाता है और उसे जिताने के बाद समझ आता है कि नेता गलत चुन लिया।

एमपी में पिछले दिनों नेता प्रतिपक्ष की मौजूदगी में उनको सीएम बनाने के नारे लग गए। इसके ठीक दो दिन बाद सियासत के चाणक्य कहे जाने वाले नेताजी की सरकार बनाने के नारे विंध्य में गूंजे।

जब बात सियासत की हो तो सत्तारूढ़ दल के लोग भी पीछे क्यों रहे? यहां भी चंबल का पानी खौल उठा। मामला परिवारवाद की राजनीति में पले-पुसे आगे बढ़े एक नेताजी का है। उनको मुख्यमंत्री नहीं बनाने पर खतरनाक चेतावनी वाले पोस्टर एक जिले में लग गए।

चलते-चलते एक बात बता दें, इन तीनों नेताओं में एक बात कॉमन है। ये सरकार बनाने और गिराने का माद्दा रखते हैं।

अपनी ही पार्टी के जिलाध्यक्ष और कलेक्टर पर भड़के विधायक चंबल की राजनीति में एक नारा बुलंद है… नेता एक धुरंधर है, जिसका नाम….. है। माननीय की धुरंधरी पिछले दिनों भी सामने आई थी, जब खाद के लिए कलेक्ट्रेट के गेट पर अंगद की तरह बैठ गए। फिर खाद का मामला रेत चोरी तक पहुंच गया। तू–तड़ाक हुई और उन्होंने कलेक्टर की ओर हाथ उठा दिया।

माननीय अखबारों की लीड बने और चैनलों में ब्रेकिंग। संगठन मुख्यालय बुलाकर फटकार लगाई तो कुछ दिन नरम रहे। कुछ दिन बाद पीएम के जन्मदिन पर जिले में गड़बड़ हुई तो वापस असली रूप दिखा दिया।

हुआ यूं कि कलेक्टर और सत्ताधारी दल के जिला अध्यक्ष ने सांसद और विधायक के पहुंचने से पहले अस्पताल में फल बंटवा दिए। माननीय ने किसी तरह जहर का घूंट पीकर इसे पचा लिया, लेकिन बात तब बिगड़ गई जब अस्पताल परिसर में सफाई अभियान के दौरान उनको और सांसद को ग्लव्ज नहीं दिए गए। माननीय अपनी ही पार्टी के जिला अध्यक्ष पर भड़क गए। उनको लगता है कि पार्टी के जिला अध्यक्ष अपनों की बजाय उन्हीं कलेक्टर के इशारे पर चल रहे हैं।

महाराज बोले- हमारे बाबा ने लोधी समाज को राजपूत की उपाधि दी नेताजी भले ही जातिगत राजनीति करने से मना करें, लेकिन राजनीति और जाति का चोली-दामन का साथ है। ये साथ नेताओं ने ही बरकरार रखा है। तमाम जातियों के लोगों में ऐसा नजरिया पैदा कर दिया कि वे एक-दूसरे को देखते ही समझ जाते हैं कि कौन किस पार्टी का है। हालांकि, इस बार मामला जरा हटकर है। एक जाति को दूसरी जाति की उपाधि देने का…।

महाराज ने पिछले दिनों लोधी समाज को लेकर एक रहस्योद्घाटन किया। उन्होंने एमपी-यूपी की बॉर्डर पर आयोजित एक सामाजिक कार्यक्रम में कहा कि उनके बाबा ने लोधी समाज को अपने राज्य में “लोध राजपूत” के नाम संबोधित करने का आदेश पारित किया था।

अब महाराज की इस बात पर समाज में अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। दोनों समाज के कुछ लोग उस आदेश को भी ढूंढ रहे हैं। वहीं, विपक्षी इसे जाति की राजनीति का नया दांव बता रहे हैं। क्योंकि, लोधी समाज ओबीसी वर्ग में आता है और एमपी ओबीसी बाहुल्य है। एमपी और यूपी की राजनीति में लोधी समाज का दबदबा लंबे समय से रहा है। मुख्यमंत्री से लेकर कई सांसद और विधायक लोधी समाज से बनते आए हैं।

मी लॉर्ड बोले- कोई बुंदेलखंडी समझता है क्या सूबे के उच्च न्यायालय में चल रहा एक पारिवारिक विवाद बुंदेलखंडी शब्द पर जाकर कुछ समय के लिए फंस गया। कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। याचिकाकर्ता महिला के बयान कोर्ट को बुंदेलखंडी में लिखे हुए मिले। मी लॉर्ड को बुंदेली शब्दों के मायने समझ नहीं आए तो उन्होंने कोर्ट रूम में सवाल पूछा- यहां कोई बुंदेलखंडी समझने वाला है क्या?

एक महिला वकील खड़ी हुईं। उन्होंने बुंदेलखंडी में लिखे गए बयान को ट्रांसलेट कर मी लॉर्ड को समझाना चाहा, लेकिन ‘कुल्हरिया’ का सही अर्थ नहीं बता पाईं। इसके बाद दूसरी महिला वकील खड़ी हुईं। उन्होंने ‘कुल्हरिया’ शब्द का अर्थ कुल्हाड़ी बताया। पहले जो मैडम खड़ी हुई थीं वे इसे कुलक्षिणी कह रही थीं। इसके बाद बयान समझने में आसानी हुई।

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