टाटा संस पर कब्जा करने की कोशिश! निवेशकों में खलबली, एक मेल से मचा है बवाल, सरकार की भी एंट्री

नई दिल्ली: टाटा ग्रुप देश का सबसे बड़ा औद्योगिक घराना है। इसकी होल्डिंग कंपनी टाटा संस में टाटा ट्रस्ट्स की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है। लेकिन हाल में इसमें अंदरूनी कलह की बात सामने आई है। माना जा रहा है कि इससे टाटा संस के कामकाज पर बुरा असर पड़ सकता है। अब सरकार इस मामले में हस्तक्षेप कर सकती है। ईटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसी हफ्ते दो बड़े केंद्रीय मंत्री दिल्ली में टाटा ग्रुप के चार खास अधिकारियों से मिलेंगे। यह मीटिंग इसलिए हो रही है क्योंकि हाल ही में टाटा ट्रस्ट्स में जिस तरह मतभेद की बातें सामने आई हैं, उससे निवेशकों के साथ-साथ सरकार की भी चिंता बढ़ गई है।

सूत्रों के मुताबिक इस मीटिंग में टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन नोएल टाटा शामिल होंगे। उनके साथ वाइस-चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन, टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन और टाटा ट्र्स्ट्स के ट्रस्टी डेरियस खंबाटा भी इस मीटिंग में हिस्सा लेंगे। यह बैठक इस हफ्ते की शुरुआत में होगी। इस मीटिंग के दो मुख्य मुद्दे हैं। पहला मुद्दा टाटा ट्रस्ट्स के ट्रस्टियों के मतभेद का है। सरकार चाहती है कि इन मतभेदों का असर टाटा संस और उसकी दूसरी कंपनियों के काम पर न पड़े।

टाटा संस की लिस्टिंग

दूसरा मुद्दा टाटा संस को शेयर बाजार में लिस्ट कराने का है। तीन साल पहले आरबीआई ने एक नियम बनाया था। इस नियम के तहत टाटा संस को पब्लिकली लिस्ट होना जरूरी है। ET ने सबसे पहले 11 सितंबर को टाटा ट्रस्ट्स की एक विवादित मीटिंग के बारे में खबर दी थी। इसमें ट्रस्टियों के बीच गहरे मतभेद सामने आए थे। ये मतभेद ग्रुप के लंबे समय तक मुखिया रहे रतन टाटा के निधन के करीब एक साल बाद सामने आए हैं।

दरअसल ट्रस्टी इस बात पर बंटे हुए हैं कि टाटा ट्र्स्ट्स का टाटा संस पर नियंत्रण कैसे होना चाहिए? टाटा संस के बोर्ड में ट्रस्ट की तरफ से कौन-कौन डायरेक्टर बनेंगे? इस बात पर भी सहमति नहीं है कि बोर्ड की बैठकों में हुई चर्चा की कितनी जानकारी बाकी ट्रस्टियों के साथ साझा की जाए। सबसे ज्यादा चिंता इस बात से बढ़ी है कि विजय सिंह को कैसे हटाया गया। विजय सिंह पहले रक्षा सचिव रह चुके हैं। उन्हें टाटा संस के नॉमिनी डायरेक्टर के पद से हटा दिया गया था। इसमें खासकर एक ट्रस्टी का व्यवहार बहुत ही परेशान करने वाला रहा है। अब इसकी जांच हो रही है।

ईमेल से बवाल

ET ने 12 सितंबर को बताया था कि वेणु श्रीनिवासन और नोएल टाटा ने विजय सिंह को हटाने का विरोध किया था। उन्होंने मेहली मिस्त्री को बोर्ड में नियुक्त करने के प्रस्ताव का भी विरोध किया। मेहली मिस्त्री भी एक ट्रस्टी हैं। लेकिन ट्रस्टी प्रमित झावेरी, डेरियस खंबाटा और जहांगीर जहांगीर ने मेहली मिस्त्री की नियुक्ति का समर्थन किया था। यह अभी साफ नहीं है कि उस मीटिंग के बाद ट्रस्टियों के विचार बदले हैं या नहीं। टाटा ट्रस्ट्स की अगली मीटिंग 10 अक्टूबर को होनी है।

एक ट्रस्टी ने बाकी ट्रस्टियों को एक ईमेल भेजा है। इस ईमेल को एक छिपी हुई धमकी माना जा रहा है। इसमें कहा गया है कि आने वाली मीटिंग में विजय सिंह की तरह वेणु श्रीनिवासन को भी टाटा संस के बोर्ड से हटाया जा सकता है। इस ईमेल से झगड़ा और बढ़ गया है। इस मामले से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि इसे टाटा संस को हथियाने और उस पर कब्ज़ा करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। इससे पूरे ग्रुप के कामकाज पर असर पड़ेगा

लिस्टिंग की शर्त

दिल्ली में होने वाली बातचीत में अधिकारी ऐसा हल निकालने की कोशिश करेंगे जिससे ट्रस्ट के कामकाज को बिना किसी रुकावट के चलाने में मदद मिलेगी। टाटा के जो अधिकारी इस मीटिंग में शामिल होने वाले हैं, उनसे ईमेल के जरिए टिप्पणी मांगी गई थी। लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। ट्रस्ट्स में चल रही यह उथल-पुथल ग्रुप के अधिकारियों और दूसरे स्टेकहोल्डर्स के बीच चर्चा का विषय बन गई है। कंपनी के बोर्ड के कई पद खाली पड़े हैं। जब तक ट्रस्ट नॉमिनी डायरेक्टरों पर कोई फैसला नहीं लेता, तब तक बोर्ड का पुनर्गठन मुश्किल है।

यह मीटिंग ऐसे समय हो रही है जब टाटा संस को दी गई लिस्टिंग की तीन साल की समयसीमा 30 सितंबर को खत्म हो गई है। तीन साल पहले आरबीआई ने टाटा संस को अपर लेयर NBFC घोषित किया था। इस नियम के तहत उसे तीन साल के अंदर शेयर बाजार में लिस्ट होना जरूरी था। मार्च 2024 में टाटा संस ने आरबीआई में एक आवेदन करके खुद को NBFC के तौर पर डी-रजिस्टर करने की मांग की थी। इसका मतलब था कि कंपनी लिस्टिंग की शर्त और उससे जुड़े नियमों से छूट चाहती थी। RBI ने अभी तक इस पर कोई जवाब नहीं दिया है।

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