पाकिस्तान-अफगानिस्तान में लड़ाई की असली वजह वर्षों पुरानी, क्या युद्ध की तरफ बढ़ रहे हैं दोनों देश?

काबुल: पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बॉर्डर हालिया वर्षों की सबसे भीषण झड़प देखने को मिली है। ये झड़प शनिवार रात (11 अक्टूबर) हुई, जब पाक के हवाई हमले के जवाब में अफगान बलों ने पाकिस्तानी सेना की चौकियों पर हमला बोला। पाकिस्तान की ओर से भी जवाबी हमले किए गए और इस भीषण लड़ाई में दोनों ओर से सैकड़ों की संख्या में मौतें हुईं। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के एक-दूसरे पर आतंकियों को पनाह के आरोप लगाए जाते रहे हैं। ऐसे में बॉर्डर पर हुए संघर्ष से दोनों देशों के बीच विवाद बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है।

पाकिस्तानी अधिकारियों ने कहा हैकि 11-12 अक्टूबर की रात हुई लड़ाई में 23 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए हैं। वहीं तालिबान ने 58 पाकिस्तानी सैनिकों को मारने और 25 सैन्य चौकियों पर कब्जे की बात कही है। पाकिस्तानी अखबार डॉन ने सेना के सूत्रों के हवाले से तालिबान और उसे जुड़े गुटों के 200 से लड़ाके मारे जाने का दावा किया है। हालांकि इस संख्या की तालिबान ने पुष्टि नहीं की है लेकिन ये साफ है कि बॉर्डर पर जानमान का भारी नुकसान हुआ है।

सीमावर्ती जिलों में झड़पें

इस टकराव में अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा के कई जिले प्रभावित हुए हैं। इससे सीमा पर रहने वाले स्थानीय लोगों को भी भारी मुश्किल का सामना करना पड़ा। झड़पों के बाद दोनों पाकिस्तान ने बॉर्डर को बंद कर दिया। तालिबान के रक्षा मंत्रालय ने कुनार प्रांत में टैंक और भारी हथियार तैनात कर दिए हैं। इससे व्यापक सैन्य तनाव का ख़तरा बढ़ गया है।

इस झड़प में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का नाम प्रमुखता से उभर कर आया है। यह समूह लंबे समय से पाकिस्तान में हमले कर रहा है। पाकिस्कान का कहना है कि 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान में सत्ता में लौटने के बाद से टीटीपी की ताकत फिर से बढ़ गई है। पाकिस्तान काबुल पर टीटीपी को पनाह देने का आरोप लगाता है। हालांकि तालिबान सरकार इससे इनकार करती है।

डूरंड रेखा पर भी विवाद

टीटीपी जैसे गुटों के अलावा पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच डूरंड रेखा भी तनाव की वजह है। 1893 में ब्रिटिश राज में बनाई गई डूरेंड लाइन 2,611 किलोमीटर लंबी सीमा है। इसे अफगानिस्तान मान्यता नहीं देता है अफगानिस्तान के डूरंड रेखा को अस्वीकार करने, बाड़ लगाने, सीमा पार आवाजाही और संप्रभुता के उल्लंघन के आरोपों को लेकर तनाव बढ़ा है।

अफगान तालिबान डूरेंड रेखा को खारिज करता है तो पाकिस्तान इस रेखा को एक अंतरराष्ट्रीय सीमा मानता है। पाकिस्तान ने घुसपैठ का हवाला देते हुए इस सीमा का सैन्यीकरण कर दिया है। तालिबान की ओर से सीमा को अस्वीकार करने के कारण पाकिस्तान को यहां लगातार मुश्किलों को सामना करना पड़ता है। इससे दोनों देशों में विवाद बढ़ता है।

दोनों देशों में बढ़ेगा तनाव?

इस्लामाबाद स्थित थिंक टैंक, सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडीज (सीआरएसएस) ने तनाव को पाकिस्तान में हुए टीटीपी के हमलों से जोड़ा है। सीआरएसएस के अनुसार, 2025 की पहली तीन तिमाहियों में 2,414 मौतें दर्ज की गईं। अगर यह जारी रहा तो 2025 एक दशक से भी ज्यादा समय का सबसे घातक वर्ष हो सकता है। ऐसे में पाकिस्तान की आर्मी और सरकार पर टीटीपी पर कार्रवाई को लेकर भारी दबाव है।

तालिबान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा ने भी अफगानिस्तान-पाकिस्तान तनाव को बढ़ाया है। भारत ने काबुल में अपने दूतावास फिर से खोलने और तालिबान शासन के साथ राजनयिक संबंध बढ़ाने की बात कही है। नई दिल्ली के इस कदम से इस्लामाबाद में बेचैनी है। अफगानिस्तान में भारत की मौजूदगी को इस्लामाबाद संदेह की नजर से देखता रहा है।

युद्ध नहीं चाहेंगे दोनों पक्ष

इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के काबुल स्थित वरिष्ठ विश्लेषक इब्राहिम बहिस ने अल जजीरा से कहा है कि मुत्तकी का दिल्ली दौरा शायद पाकिस्तानी सेना के बड़े पैमाने पर कार्रवाई करने की आखिरी वजह बना है। कतर और सऊदी अरब की मध्यस्थता के बाद फिलहाल गोलीबारी लगभग थम गई है। विश्लेषकों का मानना है कि दोनों पक्ष लंबे समय तक संघर्ष से बचना चाहते हैं।

इब्राहीम बहिस ने कहा कि कोई भी पक्ष अपनी सीमाओं पर बड़ी सैन्य वृद्धि नहीं चाहेगा। पाकिस्तान सुरक्षाकर्मियों पर हमलों का सामना कर रहा है। अगर अफगान तालिबान भी हमले करने लगे तो समस्या जटिल हो जाएगी। ऐसे में पाकिस्तान चाहेगा कि कूटनीति के जरिए मसले का हल निकालें। वहीं तालिबान भी किसी नए संघर्ष में जाने से बचने की कोशिश करेगा।

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