रेडिएशन-केमिकल आपदाओं से बचाने 2026 में शुरू होना था सीबीआरएन

भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (BMHRC) में बनने वाले केमिकल, बायोलॉजिकल, रेडियोलॉजिकल और न्यूक्लियर (सीबीआरएन) मेडिकल मैनेजमेंट सेंटर के लिए 2 साल 9 माह में एक ईंट तक नहीं रखी गई। जनवरी 2023 में केंद्र सरकार ने इसकी घोषणा की थी।

इसके लिए 115 करोड़ का बजट मंजूर हुआ, एमओयू हुआ, दो एकड़ जमीन भी दी गई थी। गैस त्रासदी के 40 साल बाद हुई इस घोषणा से भोपाल के लोगों को उम्मीद बंधी थी कि अब औद्योगिक या रेडियोलॉजिकल आपदा का सामना नहीं होगा। यह देश का पहला सेंटर होगा।

पहला सेंटर कागजों में ही सिमटा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में दो सीबीआरएन मेडिकल फैसिलिटीज स्थापित करने का निर्णय लिया था। जिनमें से एक भोपाल में और दूसरा दक्षिण भारत में आकार लेता। इसकी आधिकारिक घोषणा के दौरान बीएमएचआरसी की निदेशक डॉ. मनीषा श्रीवास्तव ने कहा था कि इस सेंटर से बीएमएचआरसी की क्षमता कई गुना बढ़ेगी और यह भोपाल गैस त्रासदी जैसी घटनाओं से निपटने में पूरी तरह सक्षम होगा।

सेंटर में 50 बेड का हाई-सिक्योरिटी मेडिकल यूनिट, मॉडर्न बोन मेरो ट्रांसप्लांट सुविधा और सीबीआरएन एम्बुलेंस सर्विस जैसी व्यवस्थाएं शामिल थीं, लेकिन तीन साल बाद भी ये सुविधाएं सिर्फ प्रस्तावों और मीटिंग फाइलों में दर्ज हैं।

योजना के अनुसार सेंटर में होनी थी यह सुविधाएं

  • सीबीआरएन डिटेक्शन और डिकंटामिनेशन यूनिट
  • बायो-कंटेनमेंट लैब
  • 50 बेड का ट्रायेज ब्लॉक
  • हाई-सेफ्टी ऑपरेशन थिएटर
  • बोन मेरो ट्रांसप्लांट सेंटर
  • सीबीआरएन एम्बुलेंस और स्पेशलाइज्ड रेस्क्यू टीम

विभागों को भी किया जाना है अपग्रेड इस सेंटर से जुड़ी सभी सुविधाओं के लिए बीएमएचआरसी में पहले से मौजूद विभागों माइक्रोबायोलॉजी, गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी, रेडियोलॉजी, आईसीयू, और ब्लड बैंक को अपग्रेड किया जाना था, लेकिन अभी विभागों में अपग्रेडेशन की प्रक्रिया भी पूरी नहीं हो सकी हैं।

प्रबंधन ने कहा- जिम्मेदारी सीपीडब्ल्यूडी की बीएमएचआरसी के जनसंपर्क अधिकारी रितेश पुरोहित ने बताया कि सेंटर के लिए जमीन पहले ही सीपीडब्ल्यूडी को सौंप दी गई थी। हमारी ओर से जमीन और प्रशासनिक मंजूरियां दी जा चुकी हैं। अब निर्माण का जिम्मा पूरी तरह सीपीडब्ल्यूडी का है।

दूसरी ओर, सीपीडब्ल्यूडी अधिकारियों का कहना है कि परियोजना के टेंडर में तकनीकी दिक्कतें आने की वजह से प्रक्रिया अटक गई थी। फिलहाल नई टेंडर प्रक्रिया शुरू की गई है और जल्द ही निर्माण कार्य शुरू होगा।

2026 में पूरा होने का था दावा एमओयू के मुताबिक यह प्रोजेक्ट 2026 तक पूरा होना था, यानी अब केवल दो महीने शेष हैं। बावजूद इसके साइट पर न तो फाउंडेशन रखा गया, न ही निर्माण के लिए कोई ठेका फाइनल हुआ। स्थानीय कर्मचारियों का कहना है कि हर मीटिंग में प्रोजेक्ट के शुरू होने की बात दोहराई जाती है, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर कोई प्रगति नजर नहीं आती।

बीएमएचआरसी की स्थापना ही 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के बाद प्रभावितों के इलाज और रिसर्च के उद्देश्य से की गई थी, लेकिन आज जब शहर को एक हाई-सिक्योरिटी डिजास्टर मेडिकल सेंटर की सबसे ज्यादा जरूरत है, वहीं सबसे ज्यादा देरी भी यहीं पर हो रही है।

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