एक्शन में MP सरकार, औषधि जांच के लिए 211 करोड़ रुपये का प्रस्ताव, लेकिन फूड लैब को भूले

भोपाल। जहरीले कफ सीरप से प्रदेश के तीन जिलों में 24 बच्चों की मौत के बाद देशभर में आलोचना हुई तो अब जांच तंत्र को मजबूत किया जा रहा है। दवाओं की जांच, निगरानी और अन्य संसाधनों के लिए स्वास्थ्य विभाग ने आनन-फानन में 211 करोड़ रुपये का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेज दिया है।
फूड लैब को भूली सरकार
दूसरी तरफ, खाद्य पदार्थों की जांच की पर्याप्त सुविधाएं और निगरानी नहीं होने से खाने-पीने की चीजों में भी विषाक्तता की आशंका है। यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकती हैं लेकिन इसकी ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हाल यह है कि भोपाल की एक मात्र फूड लैब में माइक्रोबायोलॉजी जांच तक नहीं हो पा रही हैं। नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड फार लैबोरेट्री (एनएबीएल) प्रमाण पत्र नहीं होने के कारण चार माह से सैंपलों की जांच नहीं हो पा रही थी, जो दीपावली के चार दिन पहले शुरू हुई है।
369 में से 217 पद रिक्त
सरकार महत्वपूर्ण संसाधनों के लिए भी राशि के संबंध खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) पर निर्भर है। वर्ष 2011 में FSSAI का गठन होने के बाद माना जा रहा था कि खाने-पीने की चीजों की गुणवत्ता जांच की व्यवस्थाएं मजबूत हो जाएंगी, पर जैसा दावा था वैसा हुआ नहीं। हर विकासखंड में एक खाद्य सुरक्षा अधिकारी (एफएसओ) होना चाहिए। कुल 313 विकासखंड हैं।
एफएसओ और वरिष्ठ एफएसओ मिलाकर 369 पद स्वीकृत हो गए, पर कार्यरत मात्र 152 ही हैं। यानी जरूरत से आधे भी नहीं हैं। रिक्त पदों पर मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की भर्ती प्रक्रिया चल रही है। भर्ती हुई तो अधिकारी अगले वर्ष ही मिल पाएंगे। प्रदेश में कुल चार लाख पंजीकृत होटल-रेस्टोरेंट हैं, जिनमें खाने-पीने की चीजों की गुणवत्ता की निगरानी इन 152 खाद्य सुरक्षा अधिकारियों पर है। यानी, 2631 दुकानों पर एक एफएसओ है।
गुणवत्ता की ठीक से नहीं हो पाती निगरानी
संसाधनों की कमी के चलते खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की ठीक से निगरानी नहीं हो पा रही है। एक एफएसओ को माह में 10 वैधानिक और 20 निगरानी (सर्विलांस) सैंपल लेने होते हैं। 152 एफएसओ के हिसाब से सिर्फ वैधानिक सैंपल ही हर साल 18,240 हो जाते हैं, जबकि अभी भोपाल स्थित एक मात्र लैब की जांच क्षमता ही वर्ष में छह हजार है। अतिरिक्त समय में भी जांच की जा रही है, फिर भी लगभग 13 हजार सैंपलों की जांच हो पाती है। पांच हजार से अधिक सैंपल अगले वर्ष के लिए लंबित हो जाते हैं।
माइक्रोबायोलॉजी जांच की सुविधा तक नहीं
खाने-पीने की चीजों में बैक्टीरिया, फंगस व अन्य जीवाणुओं की उपस्थिति पता करने के लिए माइक्रोबायोलॉजी जांच की सुविधा नहीं है। अनुबंधित निजी लैब में कुछ चुनींदा सैंपलों की ही जांच कराई जाती है। खाद्य सुरक्षा अधिकारियों का किसी भी जिले में अलग से कार्यालय नहीं है। न ही वाहन की सुविधा है।
इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में पिछले छह वर्ष से फूड लैब बनाने का काम चल रहा है, पर अभी तक एक भी प्रारंभ नहीं हो पाई है। इंदौर की लैब जरूर 27 अक्टूबर से प्रारंभ होने जा रही है।
अधिकारियों ने क्या कहा?
नियंत्रक खाद्य एवं औषधि प्रशासन दिनेश श्रीवास्तव ने कहा कि खाद्य सुरक्षा अधिकारियों के पद पीएससी से भरे जा रहे हैं। खाद्य लैबों की जांच की क्षमता भी बढ़ाई जाएगी। सभी जिलों में खाद्य एवं औषधि प्रशासन का कार्यालय बनाने का भी प्रस्ताव है।





