न खुदा मिला न विसाल-ए-सनम! F-35 लड़ाकू विमान बनाम S-400 सिस्टम… अमेरिका-रूस में बुरे फंसे तुर्की के खलीफा एर्दोगन?

अंकारा: अमेरिका की सख्त चेतावनी के बावजूद तुर्की ने साल 2017 में रूस के साथ S-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदने का समझौता किया था। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने जैसे ही रूसी डिफेंस सिस्टम खरीदा अमेरिका ने तुर्की पर प्रतिबंध लगा दिए। तुर्की को F-35 लाइटनिंग II ज्वाइंट स्ट्राइक फाइटर (JSF) कार्यक्रम से बाहर निकाल दिया गया। इसके बाद तुर्की ने साहस दिखाते हुए अपना पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान KAAN प्रोजेक्ट शुरू किया। पिछले साल उसने दावा किया कि KAAN स्टील्थ फाइटर जेट अब जल्द ही उड़ान भरेगा।
एर्दोगन की यह नीति शुरूआत में काफी कारगर रही। सऊदी अरब से लेकर संयुक्त अरब अमीरात, कतर से लेकर पाकिस्तान तक, कई देशों ने KAAN लड़ाकू विमान में दिलचस्पी दिखाई। तुर्की की टर्किश एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (TAI) भी पाकिस्तान के 74 F-16 लड़ाकू विमानों को अपग्रेड करने के लिए इस्लामाबाद के साथ बातचीत कर रही है। लेकिन अब तुर्की का ये दांव फेल होता नजर आ रहा है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन को आखिरकार अपनी गलती का एहसास हो गया है।
तुर्की जो KAAN स्टील्थ फाइटर जेट बना रहा है, उसका इंजन उसे अमेरिका से ही लेना है और यूएस ने फिलहाल इंजन देने से मना कर दिया है। इसके अलावा डोनाल्ड ट्रंप, जिन्होंने एर्दोगन को आश्वासन दिया था कि तुर्की को फिर से F-35 स्टील्थ फाइटर जेट प्रोजेक्ट में शामिल किया जाएगा, वहां भी देरी हो रही है। यानि हाल ये है कि तुर्की के पास फिलहाल कोई ए़डवांस फाइटर जेट नहीं है। F-16 की मरम्मत वो करवा नहीं पा रहा है। हालात अब यहां तक पहुंच गये हैं कि जो तुर्की, मिडिल ईस्ट के देशों को KAAN स्टील्थ फाइटर जेट बेचने के लिए तेजी से कोशिशें कर रहा था, वो अब उन देशों से सेकंड हैंड लड़ाकू विमान खरीदने के लिए अनुरोध कर रहा है। एर्दोगन अमेरिका को दिखाना चाहते थे कि अंकारा के पास दूसरे भी विकल्प हैं, लेकिन आठ साल बाद स्थिति ये है कि ना खुदा मिला ना विसाल-ए-सनम, ना इधर के रहे ना उधर के हम।
यूरोफाइटर की किसी भी बिक्री के लिए उसे बनाने वाले चारों देशों की मंजूरी मिलना जरूरी है। ब्रिटेन तैयार हो चुका है। लेकिन अतीत में, जर्मनी ने मानवाधिकारों के उल्लंघन के कारण तुर्की को यूरोफाइटर जेट की बिक्री पर बार-बार रोक लगाई है। वहीं, इस्तेमाल किए गए यूरोफाइटर खरीदने के लिए भी, तुर्की को लड़ाकू विमान के चार कंसोर्टियम सदस्यों से अनुमति लेनी होगी। रॉयटर्स के मुताबिक, यूरोफाइटर कंसोर्टियम के सदस्य ब्रिटेन, जर्मनी, इटली और स्पेन सेकेंड-हैंड बिक्री प्रस्ताव को मंजूरी दे सकते हैं, जिसके तहत कतर और ओमान आने वाले वर्षों में तुर्की को 28 जेट विमान प्रदान करेंगे, जब तक कि अंतिम खरीद समझौता नहीं हो जाता।
तुर्की को इजरायल का क्यों डर सता रहा है?
तुर्की को इजरायल के साथ साथ ग्रीस का भी डर सता रहा है। इजरायल के पास 46 अमेरिकी F-35 स्टील्थ फाइटर जेट हैं और 2030 तक ये संख्या 75 होगी। इसके अलावा ग्रीस ने भी 2024 में 20 F-35A जेट के ऑर्डर दिए हैं और उसके पास पहले से 24 राफेल F3R फाइटर्स हैं। वहीं, इजरायल ने हाल के वर्षों में सीरिया, ईरान, यमन और लेबनान में गहरे स्ट्राइक मिशन चलाए हैं, और किसी को भनक तक नहीं लगी। इससे तुर्की को डर है कि इजरायल F-35 जैसे स्टेल्थ फाइटर के उसपर भी हमला कर सकता है, इसीलिए वो आनन फानन में किसी भी तरह से यूरोफाइटर खरीदने के लिए हाथ पांव मार रहा है।





