छात्रों के हित को ध्यान में रखकर पुस्तक लेखन का कार्य करें

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत उच्च शिक्षा विभाग एवं मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में स्नातक द्वितीय वर्ष के पाठ्यक्रम एवं भारतीय ज्ञान परंपरा पुस्तक लेखन कार्यशाला का पलाश रेजीडेंसी में आयोजन किया जा रहा है। यह दो दिन तक चलेगी। शुक्रवार से शुरू हुई कार्यशाला का उच्च शिक्षा विभाग आयुक्त श्री प्रबल सिपाहा एवं सभी शिक्षाविदों ने दीप प्रज्ज्वलन कर शुभारंभ किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि पुस्तक लेखन का कार्य छात्र हित को ध्यान में रखकर करें, जिससे समय पर उन्हें पुस्तकें उपलब्ध कराई जा सकें।
विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी श्री धीरेंद्र शुक्ला ने दो दिवसीय कार्यशाला में होने वाली गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। दो दिन तक चलने वाली कार्यशाला में 19 शिक्षाविदों के साथ स्नातक द्वितीय वर्ष के मेजर विषय पर चर्चा, स्नातक द्वितीय वर्ष के डीएससी विषय पर चर्चा, शिक्षाविदों के साथ स्नातक द्वितीय वर्ष के माइनर विषय पर चर्चा, स्नातक द्वितीय वर्ष के मेजर, डीएससी एवं माइनर विषय पर प्राप्त सुझावों के आधार पर पाठ्यक्रम में संशोधन, 19 विषय के अध्यक्ष/सदस्य द्वारा संक्षिप्त प्रतिवेदन का वाचन / समाहार,भारतीय ज्ञान परम्परा पर पुस्तक लेखन के संबंध में चर्चा की जा रही है।
आयुक्त ने दिलाई राष्ट्रीय एकता की शपथ
आयुक्त श्री प्रबल सिपाहा ने राष्ट्रीय एकता दिवस के अवसर पर कार्यशाला में उपस्थित शिक्षा विदों, विषय विशेषज्ञों, केंद्रीय अध्ययन मंडल एवं एक-एक सदस्य/प्राध्यापक सहित अन्य अधिकारियों को राष्ट्र की एकता, अखंडता और सुरक्षा बनाए रखने की शपथ दिलाई।
भाषा ऐसी हो जो सभी तक आसानी से पहुंच सके
कार्यशाला में नई दिल्ली से आए शिक्षाविद श्री चांद किरण सलूजा ने कहा कि पुस्तक की भाषा ऐसी होनी चाहिए जो सभी तक आसानी से पहुंच सके। पुस्तकों की भाषा सूचनात्मक होनी चाहिए, साहित्यिक नहीं। शब्द के अनेक अर्थ होते हैं। शब्द कोष का प्रयोग करना चाहिए। शब्दों की परिभाषा होनी चाहिए। पाठ्यपुस्तक को अनेक दृष्टियों से पढ़ा जा सकता है। कलात्मकता सभी विषयों से जोड़ा जाए, जिससे पाठ्यपुस्तकों को अधिक प्रभावी बनाया जा सके।
कार्यशाला को संचालक मप्र हिंदी ग्रंथ अकादमी, भोपाल श्री अशोक कड़ेल, अध्यक्ष मप्र शुल्क विनियामक आयोग, भोपाल डॉ. रविंद्र कान्हेरे, सचिव शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नई दिल्ली डॉ. अतुल कोठारी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

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