भोपाल शहर के बीच ‘बारूद’ के ढेर जैसा टिंबर मार्केट; डेढ़ साल में भी शिफ्टिंग नहीं

भोपाल शहर के बीचोंबीच टिंबर मार्केट न सिर्फ मेट्रो के अंडरग्राउंड रूट के लिए बड़ी अड़चन बना है, बल्कि ‘बारूद’ के ढेर जैसा है। इसकी शिफ्टिंग के लिए डेढ़ साल से कवायद हो रही है। 18 एकड़ जमीन और 5.85 करोड़ रुपए भी दिए जा चुके हैं, लेकिन अब तक टिंबर मार्केट शिफ्ट नहीं हो सका है।

पातरा पुल इलाके में स्थित इसी 108 आरा मशीनों वाले टिंबर मार्केट में रविवार रात को आग लग गई। 6 आरा मशीनें पूरी तरह से जल गईं। ढाई करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हो गया। करीब एक घंटे तक इलाके में दहशत पसरी रही। टिंबर मार्केट के पिछले हिस्से से रेलवे ट्रैक भी गुजरा है। आग की वजह से ट्रेनों को सावधानी से गुजरा गया।

टिंबर मार्केट में साल 2016 में भी ऐसी ही भीषण लगी थी। तीन आरा मशीनों की आग 4 घंटे में 36 दमकलों ने बुझाई थी। पिछले साल भी ऐसी ही घटना हुई। इसके बावजूद आरा मशीनें शिफ्ट नहीं हुईं।

48 साल बाद शिफ्टिंग तय… पर डेवलपमेंट कछुआ चाल से यह टिंबर मार्केट करीब 48 साल पुराना है। धीरे-धीरे इस मार्केट के आसपास रहवासी इलाके बस गए। आरा मशीनों में हर साल आग की बड़ी घटनाओं को देखते हुए मेट्रो के बहाने इन्हें करीब 30 किलोमीटर दूर परवलिया के छोटा रातीबड़ में शिफ्ट करने का प्रोजेक्ट बना।

इससे पहले आरा मशीनों को शिफ्ट करने के लिए करीब 50 बार प्रशासन स्तर पर चर्चाएं हो चुकी थीं। 8 लोकेशन देखी गईं। लंबी जद्दोजहद के बाद छोटा रातीबड़ में 18 एकड़ जमीन अलॉट की गई। यहां पर पानी, सड़क और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं देने के लिए मेट्रो कॉरपोरेशन ने साढ़े 5 करोड़ रुपए भी दे दिए। शुरुआती कुछ महीनों तक तो टेंडर की प्रक्रिया के बीच ही फाइल दौड़ती रही। जब काम की शुरुआत हुई तो वह कछुए की चाल जैसा चल रहा है।

फिलहाल यहां पानी की टंकी और सड़क का बेस बन रहा है। इस काम को सितंबर तक पूरा करने का टारगेट था, लेकिन इसकी रफ्तार देखते हुए कहा जा सकता है कि अभी भी कम से कम छह महीने लगेंगे। ऐसे में शहर के बीच में बड़ा खतरा बरकरार रहेगा।

सबसे पहले 2007 में उठी थी शिफ्टिंग की बात इन आरा मशीनों को छोटा रातीबड़ से पहले कबाड़खाना, ऐशबाग स्टेडियम के पास, गोविंदपुरा से लेकर ट्रांसपोर्ट नगर और चांदपुर में शिफ्ट करने के प्रयास हुए थे, लेकिन बात नहीं बन सकी। करीब दो साल पहले पहली बार आरा मशीन संचालकों को नोटिस जारी कर छोटा रातीबड़ में शिफ्ट होने का ऑप्शन दिया गया। कहा गया कि वे शिफ्ट नहीं होंगे तो हटा दिया जाएगा।

इसके बाद सभी संचालकों ने लिखित में दिया था कि वे शिफ्ट होने के लिए तैयार हैं। जमीन जिला उद्योग केंद्र को दी गई थी। फिर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विभाग (MESE) ने टेंडर कॉल किए थे।

आरा मशीनों की शिफ्टिंग के बारे में सबसे पहले साल 2007 में बात हुई थी। यानी इस मुद्दे को उठे ही 18 साल बीत चुके हैं।

आरा मशीनों की वजह से ही अटका मेट्रो का दूसरा फेज भोपाल में मेट्रो की ऑरेंज लाइन, एम्स से करोंद के बीच 14.99 किमी में बन रही है। एम्स से सुभाषनगर (6.22 किमी) के बीच प्रायोरिटी कॉरिडोर का काम पूरा हो गया है और मेट्रो के कमर्शियल रन की तैयारी है।

इसी लाइन के दूसरे फेज सुभाषनगर से करोंद (8.77 किमी) तक का काम आरा मशीनों की वजह से अटका हुआ है। दरअसल, मेट्रो के अंडरग्राउंड रूट के लिए कुल 108 में से 46 मशीनें पहले शिफ्ट होंगी, लेकिन ऐसा नहीं होने से अंडरग्राउंड रूट का काम प्रभावित हो रहा है।

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