कागजों में ‘क्लीन’, सांसों में जहर, भोपाल में डेटा मेकओवर:AQI मॉनीटरिंग सिस्टम के सामने लगातार पानी का छिड़काव

राजधानी भोपाल की हवा लगातार ‘बहुत खराब’ श्रेणी में बनी हुई है, लेकिन प्रदूषण नियंत्रण विभाग आंकड़ों को सुधरता दिखाने के लिए ऐसा जुगाड़ कर रहा है, जिससे हवा तो नहीं सुधरती, लेकिन स्क्रीन पर एअर क्वालिटी जरूर ठीक दिखने लगती है।

ऐसा करने से इन लोकेशन की स्थित बेहतर दिखती है

कलेक्ट्रेट के सामने लगे मॉनिटरिंग सिस्टम के आसपास रोजाना करीब 15 से अधिक बार सड़कों पर पानी का छिड़काव किया जाता है। बता दें कि इस लोकेशन से लालघाटी, रॉयल मार्केट, हमीदिया अस्पताल, ईदगाह हिल्स आदि इलाकों की स्थिति दिखाई देती है।

 पड़ताल में सामने आया कि कलेक्ट्रेट ऑफिस, टीटी नगर और पर्यावरण परिसर शाहपुरा सहित तीन लोकेशन्स पर दिन में 10 से 15 बार तक पानी का छिड़काव कराया जा रहा है। यहां शहर के लाइव एअर क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम लगे हैं। इन जगहों पर लगातार दमन (वाटर स्प्रिंकलिंग) से धूल कुछ देर के लिए बैठ जाती है, और मशीन कम AQI दिखाती है, जबकि हवा में जहरीले कण बने रहते हैं।

पर्यावरण परिसर के आसपास भी लगातार छिड़काव किया जा रहा है। इस सड़क पर रोजाना 15 से अधिक बार छिड़काव किया जाता है।

इन इलाकों पर दिखता है आसर

इससे अरेरा कॉलोनी, शाहपुरा, बिट्‌टन मार्केट और वंदे भारत चौराहे आदि के इलाकों का दर्शाता है। यहां का मॉनिटरिंग स्टेशन पर्यावरण परिसर में बना है

इन इलाकों में असर

टीटी नगर में भी रोजाना करीब 15 से अधिक बार छिड़काव किया जाता है। इससे लिंक रोड, न्यू मार्केट, रोशनपुर मालवीय नगर आदि शामिल है। यहां मॉनिटरिंग सिस्टम थाने से ऑपरेट किया जाता है।

यह लोगों के जान से खिलवाड़

पर्यावरण के जानकार सुभाष सी पांडे ने बता कि यह तरीका सिर्फ रिपोर्ट पर हवा को साफ दिखाता है, लेकिन लोगों की फेफड़ों तक पहुंच रहे जहर को नहीं रोकता। दिल्ली में जैसे ही हवा खराब होती है, तुरंत एडवाइजरी और एक्शन होता है। भोपाल में बस ग्राफ गिरा दो और कह दो हवा क्लीन है, यह खतरनाक खेल है। उन्होंने चेतावनी दी कि एक्यूआई 300 के पार (वेरी पुअर) पहुंच चुका है। ऐसे में लोगों को मॉर्निंग वॉक बंद कर देनी चाहिए और बच्चों, बुजुर्गों, अस्थमा मरीजों को बाहर निकलने से बचाना चाहिए।

25 से अधिक स्टेशंस की जरूरत

शहर में अभी कुछ चुनी हुई लोकेशंस पर ही मॉनिटरिंग सिस्टम लगे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भोपाल की आबादी और भौगोलिक विस्तार को देखते हुए कम से कम 25 लाइव मॉनिटरिंग सिस्टम की जरूरत है। एमपी नगर, बोर्ड ऑफिस, कोलार रोड, हमीदिया रोड, करोंद, भानपुर और नादरा बस स्टैंड जैसे क्षेत्रों में हवा की वास्तविक स्थिति का कोई रिकॉर्ड नहीं है। यह इलाकों में प्रदूषण और भी ज्यादा होने की आशंका है, लेकिन आंकड़ों में यह दिखाई ही नहीं देता।

विशेषज्ञों ने तत्काल दो जरूरी कदम सुझाए

  • पहला- टूटी सड़कों की मरम्मत और डस्ट कंट्रोल सिस्टम लागू किया जाए।
  • दूसरा- खुले में कचरा जलाने वालों पर सख्त और नियमित कार्रवाई हो।

दिल्ली मॉडल की कॉपी: आंकड़ों को सुधारो, हवा को नहीं

पर्यावरण विशेषज्ञ सुभाष सी. पांडे कहते हैं कि भोपाल में वही गलती दोहराई जा रही है, जो दिल्ली में लंबे समय तक होती रही “जब हवा खराब हो तो स्क्रीन पर नंबर अच्छा दिखाओ, मैदान में असली सुधार मत करो। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार की तरह यहां भी डेटा मैनेजमेंट पर ज्यादा फोकस है और पब्लिक हेल्थ पर कम।

दिल्ली में एक्यूआई 350 के पार होते ही ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) लागू हो जाता है, कंस्ट्रक्शन रोकना, ट्रैफिक रेशनिंग और बायोमास बर्निंग पर कड़ी रोक। लेकिन भोपाल की स्थिति बेहद खराब क्वालिटी तक पहुंच गई, फिर भी कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया। यह नीति जनता के स्वास्थ्य के साथ सीधा खिलवाड़ है क्योंकि यहां समस्या का इलाज नहीं, सिर्फ रिपोर्ट मेकअप हो रहा है।

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