ED की जांच में घिरी कंपनी को 943 करोड़ भुगतान:नाम बदलकर साइंस हाउस ने लिए टेंडर, विधानसभा में 68 हजार पेजों का जवाब

स्वास्थ्य विभाग ने विधानसभा में स्वीकार किया है कि मध्यप्रदेश सरकारी अस्पतालों में पैथोलॉजी जांचों में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं हुई हैं। विभाग ने माना कि पिछले चार साल में निजी कंपनी साइंस हाउस को 12.38 करोड़ जांचों का भुगतान करते हुए कुल 943 करोड़ रुपए दिए गए हैं।

वहीं, इस दौरान मरीजों की ओर लगातार शिकायतें मिलीं, जिनमें जांच दरों में अंतर, फर्जी बिलिंग, अनावश्यक टेस्ट और जीएसटी जोड़कर अधिक वसूली जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं।

कांग्रेस विधायक को 68 हजार पेजों का जवाब विधानसभा में कांग्रेस विधायक जयवर्द्धन सिंह के सवाल के जवाब में स्वास्थ्य विभाग ने 68 हजार पेजों का जवाब दिया है। साइंस हाउस ने 12 करोड़, चार साल में 32 करोड़ जांचें हुईं। इन पर किए गए खर्च में 943 करोड़ तक की गड़बड़ी सामने आई है। विधानसभा पटल पर रखी सूचना के अनुसार एक ही जांच के अलग-अलग अस्पतालों में अलग-अलग रेट लिए जा रहे थे।

पेन ड्राइव में दी जानकारी विधायक जयवर्धन सिंह के सवाल पर स्वास्थ्य विभाग ने पेन ड्राइव में जानकारी भेजी। दस्तावेजों के अनुसार, हेल्थकेयर सेवाओं पर जीएसटी नहीं लगता है, लेकिन कई जगहों पर मरीजों से जीएसटी वसूला जा रहा था। कई जांचें गैर-जरूरी होते हुए भी मरीजों पर थोप दी गईं। इससे मरीजों के बिल काफी बढ़ गए। कई मामलों में जांच दर से 25 प्रतिशत तक ज्यादा वसूला गया।

ऐसे बढ़ाया बिल दस्तावेज बताते हैं कि कई अस्पतालों में मरीजों से ऐसे टेस्ट कराए गए जिनकी डॉक्टर ने जरूरत नहीं बताई। एक ही मरीज के खून का सैंपल बार-बार लेकर 3–4 टेस्ट एक ही दिन करा दिए गए। कुछ मामलों में मरीजों की रिपोर्ट तक में गड़बड़ी सामने आई। सोशल मीडिया पर की गई शिकायतों में भी मरीजों ने बिल बढ़ाए जाने और गलत रिपोर्ट दिए जाने की बात रखी थी।

हुक, फिर भी GST स्वास्थ्य सेवाओं पर जीएसटी लागू नहीं है, फिर भी दस्तावेजों में दर्ज 18 मई 2024 के एक बिल में 100 रुपए की जांच पर 5% जीएसटी जोड़ा गया। ऐसे कई बिल मिले जिनमें जीएसटी जोड़कर राशि बढ़ाई गई। यह नियमों के पूरी तरह खिलाफ है।

25% ज्यादा रेट दस्तावेज़ों में 2020 से 2024 तक के भुगतान विवरण शामिल हैं। इनमें कई बिल ऐसे पाए गए हैं जिनमें मरीजों से निर्धारित शुल्क से 25% अधिक राशि वसूली गई। एक ही जांच—जैसे टी–3, टी–4, ट्रोपोनिन-I, क्रिएटिनिन आदि—विभिन्न जिलों में अलग-अलग रेट पर किए जा रहे थे।

एक ही जांच के अलग रेट टीएसएच, टी–3, टी–4, ट्रोपोनिन–I, सीरम क्रिएटिनिन और अल्कलाइन फॉस्फेटेज जैसे टेस्ट अलग-अलग अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में अलग-अलग रेट पर किए गए। यह सिस्टम में गंभीर खामी और नियंत्रण की कमी दिखाता है।

ईओडब्ल्यू ने भी पकड़ी गड़बड़ी अनुपपुर जिले में मार्च 2024 में ईओडब्ल्यू द्वारा की गई जांच में पाया गया कि करीब 1800 जांचें ऐसी थीं जिनकी रिपोर्ट उपलब्ध ही नहीं थी। अस्पतालों ने दावा किया कि मशीनें बंद थीं, इसलिए 80 प्रतिशत जांचें बाहर कराई गईं, लेकिन बिलों में इन्हें अस्पताल द्वारा की गई जांच दिखाया गया, जिससे भुगतान बढ़ गया।

मरीजों को ठगने में तीन साल लगा दिए फोटोस्टेट दस्तावेज़ों में पाया गया कि मई 2020 में साइंस हाउस को सरकारी अस्पतालों में वेट-लीज़ मॉडल पर जांच सेवा देने का ठेका दिया गया। 2020 से 2023 के बीच कई अस्पतालों में मशीनें खराब होने के बावजूद कागजों पर जांचें जारी दिखाई गईं। विभागीय अफसरों ने माना कि निगरानी बेहद कमजोर थी और कंपनी को लगातार भुगतान होता रहा। केंद्र की दरें लागू नहीं कीं

दस्तावेज़ों में यह भी दर्ज है कि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित जांच दरों को लागू नहीं किया गया। कई जिलों में दरें मनमाने तरीके से बढ़ाई गईं। यह पूरा मामला सरकारी स्वास्थ्य ढांचे में गंभीर अनियमितता और निगरानी तंत्र की कमी को उजागर करता है।

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