काबुल पर हमला, तालिबान से दुश्मनी… अफगानिस्तान से युद्ध के पीछे पाकिस्तानी सेना की चाल क्या है? एक्सपर्ट से समझें

इस्लामाबाद: इस महीने की 9 तारीख को काबुल पर एयरस्ट्राइक कर पाकिस्तान ने दुनिया को चौका दिया। काबुल पर हमले का मतलब तालिबान से खुली दुश्मनी। तालिबान ने इसका बदला लेते हुए दो दिनों के अंदर पाकिस्तान पर हमला किया और 58 सैनिकों को मार डाला। हैरानी ये है कि पाकिस्तान ने उस अफगानिस्तान में हमला किया था जो महाशक्तियों (रूस, अमेरिका) को हरा चुका है, और पाकिस्तान, आतंकवादियों को पालने में माहिर है। पाकिस्तान सेना ने काबुल पर उस दिन हमला किया था, जब तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी अपने पहले दौरे के लिए भारत पहुंचे थे।

तालिबान के हमले के बाद पाकिस्तान ने फिर पलटवार किया, जिसमें पक्तिया के उर्गोन जिले में एक स्थानीय क्रिकेट टीम के 3 खिलाड़ी मारे गये। इसके बाद अफगान क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान से त्रिकोणीय मुकालबा रद्द कर दिया। इसके ठीक बाद पाकिस्तान में फिर से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने भयानक हमला किया, जिसमें पाकिस्तान सेना के 17 जवान मारे गये। फिर कतर में युद्धविराम समझौता हुआ। लेकिन कुल मिलाकर देखा जाए तो तालिबान और पाकिस्तान अब दुश्मन हो गये हैं और युद्धविराम समझौता कभी भी टूट सकता है।

पाकिस्तान में हिंसा में जबरदस्त इजाफा
अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में इस साल के पहले 9 महीने में हुए हमलों में कम से कम 2400 पाकिस्तानी सेना के जवान मारे गये हैं। वहीं, NDTV में लिखते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय की पूर्व निदेशक डॉ. तारा कार्था ने पाकिस्तान की सेना की नई चाल समझाने की कोशिश की है। उन्होंने अपने ओपिनियन में लिखा है कि पाकिस्तान में लगातार होने वाले हमलों के पीछे के पैटर्न को समझना मुश्किल नहीं है। इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान (IS-K) के एक गुट ने अचानक बलूच और पश्तूनों जैसे अन्य लोगों और उनके नेताओं, जैसे मेहरांग बलूच और मंज़ून पश्तीन शामिल हैं, जो शांतिपूर्ण पश्तून तहफ़्फ़ुज़ आंदोलन (PTM) का नेतृत्व करते हैं, उनके खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी।इसी दौरान तालिबान के गढ़ों में IS-K की गतिविधियां काफी ज्यादा बढ़ गई हैं। इस्लामिक स्टेट, पाकिस्तान के इशारे पर अफगानिस्तान में तालिबान पर हमले करवा रहा है। यानि, जिस पाकिस्तान सेना ने तालिबान को पनाह दी थी, अब उसने उसी के खिलाफ युद्ध छेड़ दी है, वो भी आतंकी संगठन के सहारे। इस बीच पाकिस्तान के नेता, जिसमें रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ सबसे आगे हैं, उन्होंने अफगानों को देश से बाहर निकालने की मुहिम छेड़ दी है। वो अफगानों को नमकहराम कह रहे हैं। जबकि, इसी पाकिस्तान की वजह से हजारों अफगान रूस के खिलाफ जिहाद में शामिल हुए थे। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान उनके इशारे पर चलेगा, लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा। तालिबान का भारत के पक्ष में खड़ा होना, पाकिस्तान की सेना अपने लिए शर्म मान रही है और इसीलिए अब वो तालिबान को खत्म करना चाहती है।

अफगानिस्तान में रावलपिंडी का एजेंडा क्या है?
डॉ. तारा कार्था ने अफगानिस्तान में पाकिस्तानी सेना के गेम प्लान का खुलासा किया है। उन्होंने लिखा है कि असम में पाकिस्तान सेना डोनाल्ड ट्रंप के एजेंडे पर काम कर रही है, जिसके तहत अमेरिकी राष्ट्रपति बगराम एयरबेस पर वापस नियंत्रण चाहते हैं। रावलपिंडी (पाकिस्तानी सेना का हेडक्वार्टर) चाहती है कि अमेरिका फिर से बगराम एयरबेस जैसे ठिकानों का इस्तेमाल शुरू करे, ताकि पाकिस्तान में फिर से अमेरिकी डॉलर की बारिश होने लगे। यही उसकी "ग्रेट गेम" स्ट्रैटजी है। एक तरफ वो खुद को आतंकवाद से जूझता देश बता रहा है तो दूसरी तरफ डोनाल्ड ट्रंप को कभी तेल को कभी दुर्लभ खनिज से आकर्षित कर रहा है। यानि वो वाइट हाउस का महत्वपूर्ण सहयोगी दिख सके।

लेकिन पाकिस्तानी सेना के लिए दिक्कत ये है कि खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान अब करीब करीब हाथ से निकलते जा रहे हैं। खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री सुहैल अफरीदी जैसे नेता खुलकर कह चुके हैं कि अब ‘ग्रैंड जिरगा’ बुलाकर लोग खुद फैसला करना चाहते हैं। उनका संदेश साफ है कि पाकिस्तान सेना से उनका भरोसा उठ चुका है और लोग तंग आ चुके हैं। डॉ. तारा कार्था लिखती हैं कि लेकिन पाकिस्तान की सेना के लिए डॉलर ही सबकुछ है और इसके लिए वो कुछ भी करेगी, भले ही देश क्यों ना जल जाए।

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