600 साल पहले क्षतिग्रस्त हुआ बटेश्वर का सबसे ऊंचा महाविष्णु मंदिर वापस अपने रूप में लौटा

 भोपाल। समय के साथ करीब छह सौ साल पहले पत्थरों का ढेर बन गया मुरैना जिले में बटेश्वर स्थित सबसे ऊंचा महाविष्णु मंदिर फिर अपने मूल स्वरूप में लौट आया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने यहां बिखरे पत्थरों से ही मंदिर का निर्माण कराया है। यहां एक प्राचीन मठ समेत पांच मंदिरों का जीर्णोद्धार पूर्ण कर लिया गया है।

इनके पुनर्निर्माण की परियोजना चार साल से चल रही थी। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के नेशनल कल्चर फंड (एनसीएफ) के माध्यम से इनका जीर्णोद्धार कराया गया है। इसके लिए तीन करोड़ 80 लाख रुपये इंफोसिस फाउंडेशन ने भी दिए हैं।

फाउंडेशन की अध्यक्ष सुधा मूर्ति की मध्य प्रदेश के पर्यटन और पुरातात्विक स्थलों में गहरी रुचि है। बटेश्वर में आठवीं-10वीं शताब्दी के बीच बने 200 मंदिर क्षतिग्रस्त अवस्था में पड़े हुए थे। इनके जीर्णोद्धार परियोजना पर 2005 से काम शुरू हुआ था। अब तक 85 मंदिरों को फिर से खड़ा किया जा चुका है।

2022 में काम शुरू करवाया था

एएसआई के भोपाल वृत्त ने महाविष्णु मंदिर के जीर्णोद्धार परियोजना पर 2022 में काम शुरू कराया था। पुराविदों ने सबसे पहले पत्थरों को हटाकर मंदिर की नींव से उसके मूल डिजाइन का खाका बनाया। उसके बाद मूल मंदिर के हिस्सों की तलाश शुरू हुई।

140 मंदिरों के टूटे हुए हिस्सों के ढेर में से महाविष्णु मंदिर का टुकड़ा ढूंढना सबसे बड़ी चुनौती थी। एएसआई की टीम ने तकनीकी विशेषज्ञता के बल पर 90 प्रतिशत पत्थर खोज निकाले। डिजाइन के मुताबिक कौन पत्थर कहां और किसके बाद लगेगा उसको चिह्नित कर नंबर दिए गए।

एक खंडित प्रतिमा भी मिली

जिस हिस्से के टुकड़े नहीं मिल पाए, उसके लिए बलुआ पत्थरों से उसी जैसा दूसरा टुकड़ा तैयार किया गया। उसके बाद शुरू हुआ मंदिर को आकार देने का काम। नींव से लेकर शिखर तक 13 स्तरों में इन पत्थरों को उसी प्राचीन शैली में लगाकर मंदिर को स्वरूप दे दिया गया। अब साढ़े तीन फीट ऊंचे चबूतरे पर 13 मीटर ऊंचा यह मंदिर गुर्जर-प्रतिहार शैली की स्थापत्य कला का नमूना बनकर फिर शान से खड़ा है। मंदिर से थोड़ी दूर पर भगवान विष्णु की एक खंडित प्रतिमा भी मिली है।

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