इंश्योरेंस सिस्टम में सेंधमारी… आधार के जरिए बीमा में फ्रॉड कर रहे धोखेबाज, फर्जी क्लेम से निकाल रहे मोटी रकम

नई दिल्ली: एक दशक से अधिक समय तक पिन कोड में हेराफेरी करने के बाद धोखेबाजों ने अब इंश्योरेंस सिस्टम में जालसाजी का एक नया तरीका ढूंढ लिया है। ये आधार से जुड़ी प्रक्रियाओं का गलत इस्तेमाल करके पहचान से जुड़े फ्रॉड कर रहे हैं। अब ये क्रिमिनल्स मोटर बीमा से लेकर हेल्थ क्लेम तक जाली डॉक्यूमेंट्स के जरिए आधार डेटा में गड़बड़ी करके फर्जी क्लेम फाइल कर रहे हैं। इंश्योरेंस सेक्टर में होने वाला फ्रॉड कुल क्लेम का लगभग 10-15% होने का अनुमान है। इंश्योरेंस कंपनियां इसे कंट्रोल करने के लिए इंश्योरेंस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (IIB) को पेड-फ्लैग डेटा ज्यादा से ज्यादा शेयर कर रही हैं।
जुलाई के आखिर तक यूपी पुलिस ने कई बीमा कंपनियों को नोटिस भेजे हैं। पुलिस ने क्लेम टीम्स के साथ-साथ इसमें शामिल दूसरे अधिकारियों की डिटेल्स मांगी हैं। इन मामलों में नकली दस्तावेज और बैंक इंश्योरेंस कंपनियों के बीच मिलकर किए गए काम शामिल हैं।
कैसे करते हैं धोखाधड़ी ?
संभल की एडिशनल एसपी अनुकृति शर्मा ने इकोनॉमिक टाइम्स को बताया कि आधार अब फ्रॉड की चेन में नई और कमजोर कड़ी बनकर सामने आ रहा है। उन्होंने कहा कि धोखेबाज जाली या छेड़छाड़ किए गए आधार कार्ड का इस्तेमाल करके नकली पहचान बना रहे है, ताकि पॉलिसी ले सकें और झूठे क्लेम शुरू कर सकें। यूपी पुलिस की जांच से पता चला है कि ये क्रिमिनल्स सिर्फ जाली दस्तावेजों से लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को ही निशाना नहीं बना रहे बल्कि ऑटो इंश्योरेंस के लिए भी संगठित रैकेट चला रहे हैं।
धोखाधड़ी के बारे में पता कब चलता है?
कई इंश्योरेंस कंपनियों ने ऐसे मामले रिपोर्ट किए हैं जहां आधार से जुड़े फोन नंबर और ईमेल आईडी पॉलिसीहोल्डर की असली कॉन्टैक्ट डिटेल्स से मेल नहीं खाते थे। बीमा कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि ये फ्रॉड तब तक पता नहीं चलते जब तक कि कोई क्लेम फाइल नहीं होता या पैसा नहीं निकाल लिया जाता। Niva Bupa हेल्थ इंश्योरेंस के एमडी और सीईओ कृष्णन रामचंद्रन ने कहा हमारे पास यूपी के फ्रॉड से जुड़े 2-3 मामले आए हैं। उन्होंने कहा कि हमारी फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन टीम इसमें एक्टिवली काम कर रही है।
कैसे काम करता है गिरोह?
कुछ मामलों में पुलिस ने पाया कि जालसाज अस्पतालों के गलियारों और ग्रामीण इलाकों में सबसे कमजोर लोगों या उन लोगों को ढूंढते थे जो पहले से ही मौत या गरीबी का सामना कर रहे होते हैं। वे परिवारों को आधार डिटेल्स देने के लिए मना लेते है। ब्लैकलिस्ट किए गए PIN कोड को बायपास करने के लिए पते बदल देते हैं। इसके अलावा कम निगरानी वाले छोटे फाइनेंस बैंकों में उनके नाम पर अकाउंट खोल लेते हैं। इसके बाद लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी ली जाती है, जिनकी कीमत 20 लाख रुपये या उससे अधिक होती है।