नर्सिंग इंस्टीट्यूट को फर्जी मान्यता दिलाने की कॉल रिकॉर्डिंग

मध्यप्रदेश का बहुचर्चित नर्सिंग घोटाला अभी खत्म नहीं हुआ है। प्रदेश में लगातार नर्सिंग कॉलेजों में नियमों को ताक पर रखकर फर्जी मान्यता दिलाने का खेल जारी है। इससे जुड़ी एक कॉल रिकॉर्डिंग वायरल हो रही है, जिसमें एक व्यक्ति प्राइवेट नर्सिंग इंस्टीट्यूट एसोसिएशन ऑल इंडिया (PNIA) के प्रेसिडेंट राम मिलन सिंह हैं और दूसरे, एक निजी कॉलेज के संचालक हैं।

कॉल रिकॉर्डिंग में कॉलेज संचालक एसोसिएशन के प्रेसिडेंट सिंह से कहते हैं- CMHO डॉ. सचिन श्रीवास्तव और निरीक्षण कमेटी नियमों को ताक पर रख 8 लाख रुपए में कॉलेजों को फर्जी मान्यता देने का काम कर रहे हैं। उन्होंने इस मामले में लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग आयुक्त को पत्र भी लिखा है।

PINA प्रेसिडेंट सिंह के अनुसार, ग्वालियर में उन्होंने खुद ऐसे फर्जी कॉलेजों का फिजिकल वेरिफिकेशन किया है। जब वे कॉलेजों की लोकेशन पर पहुंचे तो कहीं शटर बंद खंडहर था तो कहीं दिए गए एड्रेस पर दूसरे नाम का कॉलेज संचालित हो रहा था। इससे जुड़े वीडियो भी सबूत के तौर पर 7 जुलाई को उन्होंने अधिकारियों को भेजे हैं। फिर भी अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।

अस्पताल के सिर्फ बैनर लगे, न मरीज न स्टाफ  PNIA के प्रेसिडेंट राम मिलन सिंह ने दावा किया कि SS हॉस्पिटल और MD हॉस्पिटल को मान्यता दी गई। जबकि इन दोनों अस्पतालों की स्थिति यह है कि एक पुराने भवन में सिर्फ बैनर लगा हुआ है। न डॉक्टर हैं और न मरीज हैं। यही नहीं, इनके गेट पर हमेशा ताला लगा रहता है। इनके जरिए नर्सिंग कॉलेज की मान्यता ली जा रही है। इस पूरे खेल में CMHO डॉ. सचिन श्रीवास्तव शामिल हैं। इसके अलावा एक YS अस्पताल है, जिसे 180 बेड की मान्यता दी गई है, लेकिन लोकेशन पर देखें तो 20 बेड भी नहीं मिलेंगे।

‘फर्जी फैकल्टी’ और ‘कागजी अस्पतालों’ पर मान्यता का आरोप PNIA ने कई नर्सिंग कॉलेजों पर शैक्षणिक सत्र 2024-25 और 2025-26 की मान्यता प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का आरोप लगाया है। एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री और संबंधित विभागों को लिखे पत्र में दावा किया है कि ग्वालियर के लगभग 60 नर्सिंग कॉलेजों को ‘फर्जी फैकल्टी’ और ‘कागजी अस्पतालों’ के आधार पर नियम खिलाफ मान्यता दी गई है, जिसमें अधिकारियों की मिलीभगत है।

ट्रेनिंग के लिए अस्पतालों में 70% बेड ऑक्यूपेंसी जरूरी नर्सिंग कॉलेज के लिए अस्पताल में बच्चों की ट्रेनिंग के लिए बेड होना अनिवार्य होता है। कुछ नर्सिंग कॉलेजों को सरकारी अस्पताल में बेड अलॉट किए जाते हैं। इनमें सिर्फ कॉलेज का वेरिफिकेशन होता है, जिसमें फैकल्टी समेत अन्य व्यवस्थाओं की जांच होती है।

वहीं, जिनको सरकारी अस्पतालों में बेड नहीं होते, उन्हें पेरेंटल अस्पताल की जरूरत पड़ती है। इन अस्पतालों में 70 फीसदी से अधिक ऑक्यूपेंसी जरूरी होती है। इसका कारण है कि 3 मरीजों पर 1 छात्र को क्लीनिकल प्रशिक्षण देना अनिवार्य होता है। यानी 100 बेड के अस्पताल में 70 मरीज कम से कम भर्ती होने चाहिए। इसके साथ कॉलेजों में फैकल्टी और अन्य व्यवस्थाओं की जांच की जाती है। ऐसे कॉलेजों में फर्जीवाड़ा का खेल ज्यादा सामने आए हैं।

एक भवन में 4 अस्पताल PNIA के अनुसार, ग्वालियर में एक ही भवन में बीएड, डीएड, फार्मेसी कॉलेज और नर्सिंग कॉलेज के साथ-साथ 150 बिस्तर के अस्पताल का लाइसेंस भी ले लिया जाता है। जबकि नियम के तहत सभी के लिए अलग भवन होना चाहिए। ऐसे कॉलेजों में न तो स्टाफ होता है और न ही अस्पताल में कोई छात्र या मरीज होते हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य मान्यता हासिल करना और दूर राज्यों के छात्रों को बिना पढ़ाई के डिग्री देना है।

CMHO बोले – सभी आरोप निराधार मामले में ग्वालियर CMHO डॉ. सचिन श्रीवास्तव ने कहा कि जो आरोप लगाए जा रहें है, वे सभी निराधार हैं। जब मैं CMHO बना था, तब से अब तक 118 अस्पतालों के पंजीयन निरस्त किए हैं। पहले 439 अस्पताल ग्वालियर में होते थे, अब यह संख्या 337 बची है। कार्यालय के लोग जो इस निरीक्षण में शामिल थे, उनसे मेरा कोई लेना देना नहीं था। यह टीम कलेक्टर द्वारा बनाई गई। इसमें मुझे शामिल नहीं किया गया था।

अस्पताल निरस्त किया इसलिए लगाए आरोप डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि NIPA के प्रेसिडेंट राम मिलन सिंह का 200 बेड का अस्पताल मेरे द्वारा निरस्त किया गया था। यही वजह है कि अब वे बदले की भावना से यह सब कर रहे हैं। इस आरोप पर मिलन सिंह का कहना है कि उनका नर्सिंग कॉलेज हमेशा से सरकारी बेड अलॉटमेंट के आधार पर संचालित हुआ है। वो सिर्फ नर्सिंग कॉलेज का संचालन करते हैं। अस्पताल से उनका कोई लेना देना नहीं है।

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