सीएम बोले- वक्फ की संपत्ति उसके पास रहना चाहिए:प्रबुद्धजन संवाद में कहा- उसमें अवरोध आया तो सरकार निपटना जानती है

मुख्यमंत्री निवास में सीएम डॉ. मोहन यादव ने वक्फ सुधार जनजागरण कार्यक्रम के तहत प्रबुद्धजनों से संवाद किया। कार्यक्रम में पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक मंत्री कृष्णा गौर, वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सनव्वर पटेल और काजी, इमाम और मुस्लिम समाज जन मौजूद रहे।

इस दौरान सीएम ने कहा कि वक्फ मतलब, दान की चीज। वो दान की चीज तो सुरक्षित रहना ही चाहिए। लेकिन कुछ लोग उसे अपने घर की समझने लग जाते हैं। जब उनके मतलब की बात आई तो समाज को पीछे लगाने लगते हैं। अब समाज सब समझ गया है, उनके चक्कर में नहीं आने वाला। 2013 के पहले तो वही कानून था। उसमें आपने बदलाव किया और कहा कि बहुत फायदा हो जाएगा।

सीएम बोले- ऐसे ताकतवर मत बनो कि अपने नीचे वालों को कुचल दो सम्मेलन में सीएम ने कहा-ये बात सही है कि वक्फ सुधार के माध्यम से जो सुधार आया, उसे समझना चाहता हूं। दुर्भाग्य की बात है कि हमारे बीच में हमारे ही लोग कई प्रकार से साधन संपन्न हो गए, राजनीति में चले गए तो बडे़ ताकतवर हो गए। आप बडे़ हुए तो हमने मान लिया, लेकिन ऐसे बडे़ मत रहो कि नीचे वालों को बिल्कुल कुचल दो। आप नहीं सोचोगे तो तकलीफ किसको होगी? अगर घाव हुआ है। उसका इलाज नहीं करोगे तो इलाज के अभाव में वह शरीर तो सड़ेगा, आगे उसकी परिणीति बहुत खराब आएगी।

दो-पांच सौ वोटों में बन जाती थी जम्मू कश्मीर की सरकार सीएम ने कहा- अब हिन्दुस्तान की ये खूबसूरती है कि जिस कश्मीर में चुनाव के लिए मात्र 200-500 वोट डलते थे। 200 वोट में से एक को 150 मिले और दूसरे को 200 मिले तो वह 200 में ही जीत जाता था। क्योंकि, चुनाव तो दो के बीच होता है, पूरा आवाम वोट दे या न दे। लेकिन गिनती तो उसी वोट की होती थी पेटी में जो वोट डल जाए। उसी पर सरकार बन जाती थी।

जो 1947 में राजनीति के शिकार हुए वो पाकिस्तान में महाजिर कहलाते हैं सीएम ने कहा- अपने यहां किसी को भी देख लो और जो जाने अनजाने 1947 में राजनीति के शिकार हो गए। उनकी पाकिस्तान में हालत क्या हो रही है? पाकिस्तान में वो महाजिर कहलाते हैं। जो यहां हाजिर हैं, वहां महाजिर हैं। भोले बनकर उस चक्कर में आ गए। उनकी क्या दुर्दशा है।

समाज कोई भी हो, सबकी झंझट एक जैसी है हम सभी की उस दौर से जुड़ी कहानियां हैं। मैं भी उज्जैन में बड़े साहब के पास ही रहता हूं। लेकिन जो हमारा पारिवारिक वातावरण है, वह अलग नहीं है। जैसे ही मैं अपने घर के पास देखता हूं, तो साफ दिखाई देता है कि इस लोकतंत्र में लोग अच्छे से अच्छे स्तर तक पहुंच रहे हैं। लेकिन कुछ लोगों की, चाहे वे किसी भी समाज के हों, झंझट आज भी एक जैसी है।

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