पीरियड्स के दर्द में आयरन मैन ट्रायथलॉन पूरी की, 14 साल तक फिल्में देखने की इजाजत नहीं थी

‘मिर्ज़िया’, ‘घूमर’ और ‘फाडू: अ लव स्टोरी’ जैसे विभिन्न प्रोजेक्ट्स में नजर आने वाली एक्ट्रेस सैयामी खेर एक स्पोर्ट्स पर्सन भी हैं। हाल ही में वे दूसरी बार आयरन आयरन मैन 70.3 ट्रायथलॉन पूरा करने वाली पहली भारतीय एक्ट्रेस बनी हैं। ‘नवभारत टाइम्स’ संग इस खास मुलाकात में उन्होंने आयरन मैन प्रतियोगिता, उसकी चुनौतियों, महिला स्पोर्ट्स, एक्टिंग करियर, नानी उषा किरण जैसे कई मुद्दों पर बात की।

सैयामी आप दूसरी बार आयरन आयरन मैन 70.3 ट्रायथलॉन पूरा करने वाली पहली भारतीय एक्ट्रेस हैं, आपको इस प्रतियोगिता के लिए प्रेरणा कहां से मिली?

सैयामी खेर– इसकी प्रेरणा मुझे आत्मिक शांति पाने की चाह से मिली। हम जिस इंडस्ट्री में काम करते हैं, कई बार वो बहुत टॉक्सिक बन जाती है। आपको नकारात्मक लोग मिलते हैं, कई बार आप नेगेटिव कमेंट्स से जूझते हैं। अपने मन की शांति के लिए मैं एंड्योरेंस स्पोर्ट्स में भाग लेती हूं। अपनी पहली फिल्म ‘मिर्जिया’ के बाद मैंने मैराथन में दौड़ना शुरू किया पर उसके बाद ये सिलसिला चलता रहा। मैं कई सालों से ये करना चाहती थी। और पिछले साल मैं जब इसके लिए शारीरिक और मानसिक रूप से रेडी हुई, तो मैंने इसमें भाग लिया। हर दिन आपको दो घंटे निकालना होता है। आयरन मैन मूल रूप से एक कॉम्पिटिशन होता है, जो ट्रायथलॉन होता है। इसमें तीन स्पोर्ट्स होते हैं, जिसे 70.3 रखते हैं, जिसमें 1.9 किलोमीटर स्विमिंग, 90 किलोमीटर साइकलिंग और 21 किलोमीटर रनिंग करनी होती है। ये आपको साढ़े आठ घंटे के भीतर पूरा करना होता है, वरना आप डिस्क्वलिफाय हो जाते हैं। अपनी पहली रेस मैंने पिछले साल जर्मनी में की थी और इस साल मैंने स्वीडन में की। ये एक साल में मेरी दूसरी रेस है।

दो बार आयरन मैन 70.3 ट्रायथलॉन पूरा करने में आपके लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या थी?

-पिछले साल मौसम बहुत बड़ी चुनौती था, क्योंकि यह बहुत ही खराब था, मगर इस साल एक अलग तरह का चैलेंज था, जो हम आम लड़कियों को फेस करना पड़ता है। मेरे पीरियड्स चल रहे थे। उसमें तो काफी तकलीफ हो गई थी। मुझे तीनों स्पोर्ट्स को नियत समय में पूरा करना था और मैं अपने पीरियड्स के पेन और तकलीफों से गुजर रही थी। मैं बचपन से ही स्विमिंग और रनिंग तो करती आई हूं, मगर मेरे लिए साइकिलिंग काफी मुश्किल थी। पिछली बार सितंबर में जब मैंने इसमें भाग लिया तो साइकिलिंग करते हुए मैं रास्ता भटक गई थी और किसी और दिशा में चली गई थी। उस वक्त मुझे लगा कि कहीं समय अवधि पूरी न हो पाने की स्थिति में मैं डिस्कोलिफाई न हो जाऊं, मैं साइकिल कंधे पर उठाकर सही रास्ते पर गई और मैंने तयशुदा समय में अपनी साइकिलिंग पूरी की।

इसके लिए आपको सबसे बेस्ट कॉम्प्लिमेंट क्या मिला?

-मैं इसके बाद लंदन गई थी क्रिकेट मैच देखने के लिए। जब एक हफ्ते बाद मैं वापस लौट रही थी, तब लंदन एयरपोर्ट पर एक परिवार मुझे मिला, जिनकी 7-8 साल की छोटी बच्ची थी। उस बच्ची ने मुझे आकर कहा कि मैं उसकी इंस्पिरेशन हूं और बड़ी होकर वो मेरी तरह एक्ट्रेस और स्पोर्ट्सपर्सन बनना चाहेगी। ये मेरे लिए बहुत बड़ा कॉम्प्लिमेंट था। बॉलीवुड में भी मेरे तमाम डायरेक्टर्स अनुराग बसु सर, बाल्की सर लगातार मेरी रेस को ट्रैक कर रहे थे। मेरे इंडस्ट्री के सभी दोस्त तापसी, अभिलाष, पावेल ने और क्रिकेट जगत के फ्रेंड्स ने मेरा बहुत उत्साह बढ़ाया।

आप तो क्रिकेट और बैडमिंटन भी खेल चुकी हैं, मगर क्या आप मानती हैं कि क्रिकेट जैसे खेल की चकाचौंध में दूसरे खेल उपेक्षित हो जाते हैं?

-बिलकुल। ये तो हम कई सालों से देखते आ रहे हैं। लंबे समय तक हमने वुमेन क्रिकेट को भी मौका नहीं दिया था। हमेशा से मर्दों वाले क्रिकेट की ही बात होती थी, मगर फिर मिताली राज, हरमनप्रीत, स्मृति मंधाना जैसी महिला क्रिकेटरों के आने से तवज्जो मिलने लगी। बैडमिंटन का भी यही हाल था। जब मैं छोटी थी, तब सायना नेहवाल और पीवी सिंधु ने परिदृश्य बदला। बहुत ही स्लो और स्टेडी बदलाव हुए हैं, मगर मुझे लगता है कि सरकार की तरफ से दूसरे खेलों को भी सपोर्ट मिलना चाहिए। तब जाकर उनकी ट्रेनिंग होगी और वे ओलंपिक जैसे खेलों में भाग लेकर देश का प्रतिनिधित्व कर पाएंगे।

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