दो साल में चार गुना बढ़ गया अडानी ग्रुप पर घरेलू बैंकों का कर्ज, हिंडनबर्ग रिसर्च के बाद कैसे बदला मामला!

नई दिल्ली: टाटा ग्रुप और रिलायंस के बाद अडानी ग्रुप देश का तीसरा बड़ा औद्योगिक घराना है। इसका बिजनस कई सेक्टर्स में फैला है और हाल के वर्षों में इसने तेजी से अपना कारोबार बढ़ाया है। लेकिन करीब दो साल पहले अमेरिका की शॉर्ट सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी ग्रुप के बारे में एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें ग्रुप पर शेयरों की कीमत में हेराफेरी का आरोप लगाया गया था। हालांकि ग्रुप ने इन आरोपों से इनकार किया था लेकिन उसके शेयरों में भारी गिरावट आई। अब ग्रुप इस गिरावट से उबर चुका है लेकिन हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद ग्रुप में एक बड़ा बदलाव आया है।

हिंदू बिजनसलाइन की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो साल में अडानी ग्रुप की घरेलू बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से उधारी करीब चार गुना बढ़ गई है। सूत्रों के मुताबिक 2023 की शुरुआत में अडानी ग्रुप पर घरेलू बैंकों और वित्तीय संस्थाओं की देनदारी 27,000 करोड़ रुपये थी जो अब बढ़कर करीब 1 लाख करोड़ रुपये हो गई है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के कारण अडानी ग्रुप को ग्लोबल बॉन्ड मार्केट्स से पैसा जुटाने में मुश्किल हो रही है।

कैश बैलेंस

अडानी ग्रुप की कुल उधारी में घरेलू बैंकों और वित्तीय संस्थाओं की हिस्सेदारी 42 फीसदी है जबकि ग्लोबल कैपिटल मार्केट्स की हिस्सेदारी 27 फीसदी है। ग्लोबल बैंकों की हिस्सेदारी करीब 27 फीसदी है। सूत्रों का कहना है कि अडानी ग्रुप की बैलेंस शीट दुरुस्त है, इसलिए घरेलू बैंकों को उसे लोन देने में कोई दिक्कत नहीं है। सितंबर के अंत तक ग्रुप के पास 53,000 करोड़ रुपये से अधिक का कैश बैलेंस था।

इतना ही नहीं अडानी ग्रुप भी अब घरेलू बैंकों से लोन लेने पर ज्यादा जोर दे रहा है। इसकी वजह यह है कि विदेशी बैंकों की तुलना में भारत में कर्ज लेना आसान है। ग्रुप 8 से 9 परसेंट ब्याज पर लोन ले रहा है। उसकी कॉस्ट ऑफ बोरोइंग में काफी गिरावट आई है। पिछले एक साल में उसकी कॉस्ट ऑफ कैपिटल 100 बेसिस पॉइंट से अधिक गिरी है। बैंक रिन्यूएबल एनर्जी, रोड और इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे प्रायोरिटी सेक्टर्स में आक्रामक तरीके से लोन दे रहे हैं और इसका फायदा भी अडानी ग्रुप को मिल रहा है।

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