केजीबी के जासूस से रूस के ‘सुपर जार’ तक… भारत के दोस्त पुतिन के 25 साल के शासन की अद्भुत कहानी, यूं बने महाशक्तिशाली

मॉस्को: व्लादिमीर पुतिन दुनिया के शायद इकलौते नेता हैं जो ‘पहला वार’ करने में विश्वास करते हैं। वो दुश्मनों को संभलने का मौका नहीं देना चाहते है और यही वो बात है, जो शायद पुतिन को दुनिया के सबसे शक्तिशाली शासकों और एक डरावने रणनीतिकार की पहचान देती है। साल 2000 में रूस की सत्ता का कंट्रोल हासिल करने वाले व्लादिमीर पुतिन 7 अक्टूबर को 73 साल के हो गये हैं। सोवियत तानाशाह जोसेफ स्टालिन, जो 29 सालों तक सत्ता में रहे थे, उनके बाद पुतिन क्रेमलिन में रहने वाले सबसे ताकतवर नेता बन गये हैं। अगर पुतिन कामयाबी के साथ अपना पांचवां कार्यकाल, जो 2030 में खत्म होने वाला है, उसे पूरा कर लेते हैं तो वो स्टालिन को भी पीछे छोड़ देंगे। इसके अलावा अगर वो 2030 में भी जीतते हैं और 2036 तक राष्ट्रपति रहते हैं तो वो कैथरीन द ग्रेट (34 साल) को भी पीछे छोड़ देंगे।

रूस में पुतिन को पहले से ही ज़ार कहा जाता रहा है और अब वो ‘द ग्रेट ज़ार’ बन चुके हैं। एक दिलचस्प किस्सा है जो बताता है कि कैसे पुतिन अपनी विरासत को रूस के सबसे प्रिय और सबसे नफरत करने वाले ज़ारों में गिन रहे हैं। 24 फरवरी 2022 को, जिस दिन उन्होंने यूक्रेन के खिलाफ ‘सैन्य अभियान’ शुरू करने का ऐलान किया था, उस दिन पुतिन ने टीवी पर इसकी घोषणा की थी। जिसके बाद रूस के कुलीन वर्ग के कुछ लोगों ने रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से पूछा कि ‘पुतिन को कौन सलाह दे रहा है?’

लावरोव ने जवाब दिया कि "उनके (पुतिन के) तीन सलाहकार हैं: इवान द टेरिबल, पीटर द ग्रेट और कैथरीन द ग्रेट।" लावरोव के बयान को या व्यंग समझा जाए या कुछ और… लेकिन दो बातें जो उनके बयान से साफ पता चलता है कि 1- पुतिन महत्वपूर्ण फैसले लेने से पहले क्रेमलिन में किसी से सलाह नहीं लेते और 2- पुतिन रूस के सबसे शक्तिशाली जारों में शामिल हो चुके हैं, जो किसी भी तरह के फैसले लेने से हिचकता नहीं है
एक गरीब लड़का कैसे बन गया रूस का सबसे शक्तिशाली शासक?
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जब लेनिनग्राद फिर से संभल रहा था, उस वक्त पुतिन पैदा हुए थे। पढ़ाई में पुतिन एक औसत छात्र थे और उनका परिवार भी गरीब ही था। पुतिन का बचपन युद्ध और गरीबी की छाया में बीता। उनका जन्म 1952 में लेनिनग्राद, जो अब सेंट पीटर्सबर्ग के नाम से जाना जाता है, वहां हुआ था। एक ऐसा शहर जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भूख और तबाही का प्रतीक बन चुका था। उनके पिता ने युद्ध में हिस्सा लिया और भाई विक्टर की मृत्यु घेराबंदी के दौरान बीमारी और भूख से हुई थी। बचपन के दर्दनाक अनुभवों ने पुतिन की मानसिक तौर पर काफी ज्यादा सख्त बना दिया। और उनके मन एक ऐसा विश्वास बैठ गया, कि रूस को हमेशा अपने अस्तित्व के लिए लड़ना होगा

बचपन की दो घटनाएं व्लादिमीर पुतिन की जीवन की धुरी बन गईं। 1- जब उन्होंने एक चूहे को कोने में घेर लिया था और दूसरा- जब उन्होंने सीखा कि अगर लड़ाई टालना असंभव हो, तो पहला वार करो। यही सिद्धांत आज भी उनके विदेश नीति का आधार है, चाहे यूक्रेन पर हमला हो या नाटो के खिलाफ लगातार चुनौती। पुतिन ने यह समझा कि सत्ता और सुरक्षा में कमजोरी दिखाना सबसे बड़ा खतरा है। इसीलिए पुतिन काफी ज्यादा सख्त नजर आते हैं। उनका शासन काफी सख्त और उनके शासन करने का तरीका डरावना है
केजीबी के जासूस से शुरू हुई थी सत्ता तक पहुंचने की कहानी
व्लादिमीर पुतिन रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी के जासूस बन गये। पूर्वी जर्मनी के ड्रेसडन में 1989 में एक अजीब वाकया हुआ था। भीड़ ने केजीबी के दफ्तर को घेर लिया और ऐसा लगा कि भीड़ अब हमला करने वाली है। पुतिन उस दौरान वहीं पोस्टेड थे। लेकिन वो डरे नहीं। पुतिन भीड़ के सामने आए और कहा कि ‘हमारे पास खतरनाक हथियार हैं।’ पुतिन की बातों में वो अहसास था, जिसने भीड़ को डरा दिया और भीड़ वहां से चली गई। पुतिन हमेशा से केजीबी में शामिल होना चाहते थे, क्योंकि उनका बचपन ‘द स्वॉर्ड एंड द शील्ड’ जैसे सोवियत टीवी शो देखते हुए बीता था, जिसमें नाजी जर्मनी में एक गुप्त रूसी जासूस के वीरतापूर्ण कारनामों का वर्णन किया जाता था। बाद में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, "मैं सोवियत देशभक्ति की शिक्षा का एक शुद्ध और पूरी तरह से सफल उत्पाद था।"
जर्मनी में केजीबी के दफ्तर पर हुए हमले ने पुतिन को सिखाया कि कभी भी खुद को कमजोर दिखाना नहीं चाहिए। हालांकि, पुतिन के झांसा देने से पहले ही, उन्होंने रेड आर्मी की टैंक यूनिट को मदद के लिए बुला लिया। लेकिन रेड आर्मी ने पुतिन से कहा था कि ‘बिना मॉस्को की इजाजत के हम कुछ नहीं करेंगे और मॉस्को चुप है।’ बाद में जब पुतिन खुद क्रेमलिन पहुंचे तो तय किया कि ‘मॉस्को चुप नहीं रहेगा।’ इसीलिए पुतिन का रूस अब चुप नहीं रहता। वो हर वैश्विक मुद्दे पर प्रतिक्रिया देता है। वो ईरान, सीरिया, वेनेजुएला और उत्तर कोरिया का साथ देता है, जो कट्टर पश्चिम विरोधी देश रहे हैं।

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