H-1B Visa: सैलरी से ज्यादा हुई H-1B वीजा की फीस, ट्रंप के नए नियम क्या स्टार्टअप पर लगाएंगे ताला? भारत पर कितना असर

नई दिल्ली: अमेरिका ने H-1B वीजा नियमों में बड़े बदलाव किए हैं। इससे भारतीय लोगों पर बहुत असर पड़ेगा। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा प्रोग्राम में कुछ नए नियम लागू किए हैं। दरअसल, ट्रंप सरकार ने H-1B वीजा की फीस बढ़ाकर 1,00,000 डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) कर दी गई है। पहले H-1B वीजा के लिए कुछ ही पैसे लगते थे। कंपनियों को लॉटरी में नाम दर्ज कराने के लिए 215 डॉलर देने होते थे। इसके बाद फॉर्म I-129 के लिए 780 डॉलर देने होते थे।

यह रकम H-1B वीजा पर पहली बार नौकरी करने वालों की सालाना सैलरी से भी ज्यादा है। इतना ही नहीं, यह H-1B वीजा धारकों की औसत सैलरी के 80% से भी ज्यादा है। भारत को इस बदलाव से सबसे ज्यादा नुकसान होगा। यह भारत और अमेरिका के रिश्तों के लिए भी अच्छा नहीं है।

क्या है H-1B वीजा और किसके लिए जरूरी?

H-1B अमेरिका का वीजा प्रोग्राम है। इससे अमेरिकी कंपनियां विदेशी कर्मचारियों को नौकरी पर रख सकती हैं। ये नौकरियां आमतौर पर IT, इंजीनियरिंग, गणित, मेडिकल और साइंस जैसे फील्ड में होती हैं। इन नौकरियों के लिए खास तरह के हुनर और जानकारी की जरूरत होती है।

यह वीजा इसलिए बनाया गया है ताकि अमेरिका में हुनरमंद लोगों की कमी को पूरा किया जा सके। यह वीजा आमतौर पर तीन साल के लिए मिलता है, जिसे छह साल तक बढ़ाया जा सकता है। इस वीजा के जरिए कर्मचारी अमेरिका में रहकर कानूनी तौर पर काम कर सकता है।

सैलरी से ज्यादा हुई वीजा फीस

ट्रंप के इस नियम के बाद वीजा की सालाना फीस कई कंपनियों के कर्मचारियों की औसतन सालाना सैलरी से ज्यादा हो गई है। इसमें भारतीय कंपनी विप्रो सबसे आगे है। वहीं कई कंपनियों के कर्मचारियों की सालाना सैलरी वीजा सैलरी के लगभग बराबर हो गई है। वहीं कई की सैलरी और वीजा फीस में बहुत ज्यादा अंतर नहीं बचा है

विप्रो की औसतन सालाना सैलरी 93,174 डॉलर प्रति वर्ष है जो अब H-1B वीजा की सालाना फीस एक लाख डॉलर के मुकाबले काफी कम रह गई है। वहीं कॉग्जिनेंट, टीसीएस और इंफोसिस में सालाना औसतन सैलरी एक लाख डॉलर से कुछ ज्यादा ही है। इनके अलावा एचसीएल अमेरिका में भी औसतन सालाना सैलरी करीब 1.05 लाख डॉलर है।

भारत को सबसे ज्यादा नुकसान

वीजा की फीस बढ़ने से अमेरिका में नौकरी करने जाने वाले भारतीयों की संख्या में गिरावट आ सकती है। वीजा की फीस, कर्मचारी की सालाना सैलरी से ज्यादा होने पर कंपनियां शायद ही वीजा के लिए अप्लाई करेंगी।

साल 2024 में 399,395 H-1B वीजा मंजूर किए गए थे। इनमें से 71% वीजा भारतीयों को मिले थे। चीन दूसरे नंबर पर था, जिसे सिर्फ 11.7% वीजा मिले थे। हमेशा से ही भारत को सबसे ज्यादा H-1B वीजा मिलते रहे हैं। इसलिए, नए नियमों से भारत को सबसे ज्यादा नुकसान होगा।

स्टार्टअप पर कितना असर?

जानकारों के मुताबिक ट्रंप का यह फैसला स्टार्टअप और छोटी टेक कंपनियों पर काफी भारी पड़ सकता है। इससे उनके लिए नवाचार करना और प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो जाएगा। स्टार्टअप वैसे भी शुरू में फंडिंग से जूझते हैं। अगर अमेरिका में मौजूद कोई स्टार्टअप भारत या किसी दूसरे देश से अपने यहां एक्सपर्ट को बुलाना चाहे तो वह शायद उसे बुलाने का फैसला बदल दे। ऐसे में वह स्टार्टअप या तो बंद हो सकता है या किसी दूसरे देश में शिफ्ट हो सकता है।

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