बांग्‍लादेश में कंगारू कोर्ट में जजों को पकड़कर बिठाया, फिर शेख हसीना को दे दी मौत की सजा… यूनुस की खुली पोल

ढाका: बांग्लादेश की इंटरनेशनल कोर्ट ट्रिब्यूनल यानि ICT ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को फांसी की सजा दी है। शेख हसीना ने कोर्ट के फैसले को ‘पक्षतातपूर्ण और राजनीतिक’ बताया है। वहीं अब जब फैसले को बारिकी से परखा जा रहा है तो पता चलता है कि ये फैसला डंडे की जोर पर दिलाया गया है। मोहम्मद यूनुस के बांग्लादेश ने जबरदस्ती, कानूनों को कुचलते हुए शेख हसीना को फांसी की सजा दी है।

ICT का फैसला आने से पहले ही लोगों को पता था कि उनके मुकद्दर में मौत लिखी जानी है। वो तो गनीनमत है कि शेख हसीना भारत में हैं, अन्यथा मोहम्मद यूनुस कब का उन्हें फांसी के तख्ते से लटका चुके होते। दरअसल, हकीकत ये है कि अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को मृत्युदंड सुनाने वाला अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण-बांग्लादेश (ICT-बी) कानूनी तौर पर उन पर मुकदमा ही नहीं चला सकता, क्योंकि यह अंतर्राष्ट्रीय अपराध (न्यायाधिकरण) अधिनियम, 1973 के आधार पर स्थापित किया गया था।

शेख हसीना को जबरदस्ती मौत की सजा कैसे?
दरअसल, 1973 का अधिनियम और 2008 में इसमें किए गए संशोधन, विशेष रूप से 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान किए गए नरसंहार के अपराधों से निपटने के लिए थे। 5 अगस्त 2024 के बाद आईसीटी-बी, 1973 के दायरे में किए गए संशोधन एक अध्यादेश के माध्यम से किए गए थे। इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, आईसीटी-बी से परिचित एक व्यक्ति ने कहा है कि, यह शुरू से ही अमान्य है क्योंकि विधिवत नियुक्त कार्यपालिका कार्यरत नहीं थी और संसद ने इसे मंजूरी नहीं दी थी।
रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश के संविधान के एक विशेषज्ञ ने बताया कि बांग्लादेश के राष्ट्रपति को अध्यादेश (अनुच्छेद 93) जारी करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि संसद को भंग करना प्रक्रिया के अनुसार नहीं था। इसके अलावा, आईसीटी-बी के न्यायाधीशों की नियुक्ति असंवैधानिक रूप से की गई थी। 10 अगस्त, 2024 को, सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय खंड के मुख्य न्यायाधीश और पांच अन्य न्यायाधीशों को छात्रों की भीड़ ने अदालत घेरकर "अल्टीमेटम" दिया था और उन्हें शारीरिक रूप से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया था। संवैधानिक विशेषज्ञ के अनुसार, आईसीटी-बी के वर्तमान तीन न्यायाधीशों की नियुक्ति संविधान का उल्लंघन करके की गई थी।
जिला अदालतों से पकड़कर लाए गये थे जज
आईसीटी के अध्यक्ष, सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश, गुलाम मुर्तुजा मजूमदार को आईसीटी द्वारा मामलों की जांच की घोषणा से सिर्फ 6 दिन पहले उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। दूसरे नियुक्त न्यायाधीश मोहितुल हक मोहम्मद इनाम चौधरी एक रिटायर्ड जिला एवं सत्र न्यायाधीश हैं और तीसरे नियुक्त न्यायाधीश वकील शफीउल आलम महमूद हैं, जिन्हें मजूमदार की तरह कुछ दिन पहले ही उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।

कुल मिलाकर, कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी के पक्षधर 22 न्यायाधीशों की सर्विस एक वर्ष के भीतर ही स्थायी कर दिया गया। नियुक्त न्यायाधीशों में से किसी को भी अंतर्राष्ट्रीय कानूनी सिद्धांतों को लागू करने का अनुभव नहीं है, जो मानवता के विरुद्ध अपराधों से संबंधित मुकदमों में एक महत्वपूर्ण कमी है। यह ध्यान देने योग्य है कि शफीउल आलम महमूद के बीएनपी से संबंध हैं। एक राजनीतिक दल के सदस्य की आईसीटी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति भी पक्षपाती है। आईसीटी के मुख्य अभियोजक के रूप में मोहम्मद ताजुल इस्लाम की नियुक्ति अभियोजन पक्ष की तटस्थता पर गंभीर प्रश्न उठाती है। वह पहले अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के समक्ष चल रहे मुकदमों में युद्ध अपराधियों के मुख्य वकील थे और ऐसा लगता है कि जमात-ए-इस्लामी ने उन्हें पूरी तरह से प्रतिशोध के लिए ही नियुक्त किया था।

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