महंगाई काबू में, मॉनसून नॉर्मल, इकॉनमी दुरुस्त, डिमांड एंड सप्लाई मस्त! फिर क्यों चिंता में है सरकार?

नई दिल्ली: भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती से आगे बढ़ रही है। मौजूदा वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में देश में सप्लाई और डिमांड की दमदार तस्वीर दिखी है। महंगाई टारगेट रेंज में है और मॉनसून की प्रगति अच्छी है। दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था ने कहीं ज्यादा अच्छी हालत में कदम रखा है और इस पूरे वित्त वर्ष में यह सधे कदमों से आगे बढ़ती दिश रही है। वित्त मंत्रालय ने सोमवार को जारी मंथली इकनॉमिक रिव्यू में यह बात कही। हालांकि मंत्रालय ने कर्ज वितरण में सुस्ती, प्राइवेट इनवेस्टमेंट कम होने और अमेरिकी रेसिप्रोकल टैरिफ से जुड़ी अनिश्चितता जैसी चुनौतियों का भी जिक्र किया, जिनसे इकॉनमी की रफ्तार प्रभावित हो सकती है।

महंगाई घटने के साथ लेबर मार्केट और फाइनैंशल मार्केट्स की मजबूती का जिक्र करते हुए रिव्यू में कहा गया, ‘2025 के मध्य में भारतीय अर्थव्यवस्था सतर्क आशावाद की तस्वीर दिखा रही है।’ इसमें कहा गया कि व्यापार से जुड़े तनावों और भू-राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बावजूद ‘भारत के मैक्रोइकनॉमिक फंडामेंटल्स मजबूत बने हुए हैं। भारत सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बना रहेगा। S&P, ICR और RBI के सर्वे में FY26 में GDP ग्रोथ रेट 6.2% से 6.5% रहने का अनुमान दिया गया है।

क्या है भारत के लिए चुनौती

रिव्यू में कहा गया, ‘मोटे तौर पर पॉजिटिव आउटलुक के बावजूद डाउनसाइड रिस्क बने हुए है। जियोपॉलिटिकल टेंशन और बढ़ी नहीं है, लेकिन वैश्विक सुस्ती, खासतौर से अमेरिका में स्लोडाउन से भारतीय निर्यात के लिए मांग और घट सकती है। अमेरिकी टैरिफ के मोर्चे पर अनिश्चितता बनी रहने से आगामी तिमाहियों में भारत के ट्रेड परफॉर्मेंस पर असर पड़ सकता है।’ यह भी कहा ‘सेमीकंडक्टर चिप्स, रेयर अर्थ मेटल्स और मैग्नेट्स के मामले में ग्लोबल सप्लाई चेन में हो रहे बदलावों को देखते हुए भारत के लिए चुनौती बढ़ गई है।

प्राइवेट सेक्टर के लिए क्या है नसीहत

रिव्यू में कहा गया कि आरबीआई की मौद्रिक नीति में नरमी और कंपनियों की बैलेंस शीट मजबूत होने के बावजूद क्रेडिट ग्रोथ सुस्त हो गई है, जिससे ‘कर्ज लेने वालों के सतर्क रुख और संभवतः कर्ज देने वालों के भी जोखिम से बचने के नजरिए का पता चल रहा है। क्रेडिट ग्रोथ और प्राइवेट इनवेस्टमेंट में सुस्ती से आर्थिक रफ्तार पर आंच आ सकती है। तुलनात्मक रूप से कम उधारी लागत के चलते कंपनियां बॉन्ड मार्केट, खासतौर से कमर्शल पेपर्स को तरजीह दे रही हैं। प्राइवेट सेक्टर से कदम बढ़ाने की अपील करते हुए रिव्यू में कहा गया, ‘समय आ गया है कि एंप्लॉयमेंट लिंक्ड इंसेटिव स्कीम जैसे कदमों का उपयोग करते हुए कंपनियां आगे बढ़ें।’


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