कोलकाता HC बोला- नाबालिग भी अग्रिम जमानत ले सकते हैं:जुवेनाइल कानून में मनाही का जिक्र नहीं

कोलकाता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि अब किसी भी अपराध में आरोपी नाबालिग (juvenile) भी एंटीसिपेटरी बेल के लिए आवेदन कर सकेंगे। इससे पहले सिर्फ बालिग आरोपियों को ही गिरफ्तारी से पहले जमानत लेने का हक था।
तीन जजों की डिवीजन बेंच ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट तब लागू होता है जब नाबालिग पकड़ा जाता है और उसे जुवेनाइल बोर्ड के सामने पेश किया जाता है। लेकिन अग्रिम जमानत तो गिरफ्तारी से पहले का अधिकार है, ताकि किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुरक्षित रहे।
यह फैसला जस्टिस जय सेनगुप्ता, जस्टिस तीर्थंकर घोष और जस्टिस बिवास पटनायक की बेंच ने दिया। देश के किसी भी हाईकोर्ट की तरफ से सुनाया गया इस तरह का यह पहला फैसला है।
पूरा मामला…
यह मामला उन चार नाबालिगों की याचिका से शुरू हुआ, जिन्हें 2021 में पश्चिम बंगाल के रघुनाथगंज पुलिस स्टेशन में दर्ज मामलों में गिरफ्तारी का डर था। मुद्दा यह था कि क्या जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 उन्हें अग्रिम जमानत (धारा 438) का अधिकार देता है या नहीं। इस बात पर जजों की अलग-अलग राय थी इसलिए एक सिंगल जज ने इसे बड़ी पीठ के पास भेज दिया था, ताकि फैसला हो सके।
तीन जजों का फैसला- 4 पॉइंट में
2 जज सहमत: जस्टिस जय सेनगुप्ता और जस्टिस तीर्थंकर घोष ने फैसले पर सहमति देते हुए कहा कि अगर यह मान लिया जाए कि नाबालिगों को अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी, तो इसका मतलब होगा कि बच्चों से वह अधिकार छीन लेना जो बालिगों को मिलता है, और यह बात बच्चों की भलाई वाली सोच के खिलाफ है।
संविधान में दी गई व्यक्तिगत आजादी को कम करने का कोई इरादा लॉ बनाने वालों का नहीं था। इसलिए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, जो बच्चों की भलाई के लिए बना है, उसे ऐसा कानून नहीं माना जा सकता जो बच्चों को किसी दूसरे फायदे वाले कानूनी अधिकार जैसे अग्रिम जमानत से रोके, जब तक कि एक्ट में इसे साफ-साफ मना न किया गया हो।
अगर किसी नाबालिग को अग्रिम जमानत दी जाती है, तो कोर्ट ऐसे बच्चों के हितों को ध्यान में रखते हुए ऐसा नियम बना सकता है, ताकि यह जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के काम में दखल न दे। JJ बोर्ड का अधिकार तभी शुरू होता है जब बच्चा गिरफ्तार किया जाता है।
1 जज असहमत: हालांकि, तीसरे जज जस्टिस बिवास पटनायक इससे सहमत नहीं थे। उनका कहना था कि नाबालिगों को अग्रिम जमानत देने की अनुमति से जेजे एक्ट द्वारा बनाई गई बच्चों की सुरक्षा वाली व्यवस्था कमजोर हो सकती है। एक्ट में गिरफ्तारी के बाद बच्चों के लिए एक खास, कल्याण-आधारित जांच प्रक्रिया तय की गई है और अग्रिम जमानत इसे प्रभावित कर सकती है।
जानिए क्या है एंटीसिपेटरी बेल
एंटीसिपेटरी बेल CrPC की धारा 438 के तहत मिलती है। इसका मतलब है गिरफ्तारी से पहले मिलने वाली जमानत। अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि पुलिस उसे किसी मामले में गिरफ्तार कर सकती है, तो वह पहले से ही कोर्ट (सेशन कोर्ट या हाई कोर्ट) में जाकर जमानत मांग सकता है। कोर्ट अगर जमानत दे दे, तो पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर सकती या गिरफ्तार करे भी तो तुरंत जमानत पर छोड़ना पड़ेगा।





