अर्जेंटीना में मोदी- यह देश फुटबॉल-करप्शन-पॉलिटिक्स का कॉकटेल

70 के दशक में नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री साइमन कुजनेट्स ने यह बात मजाक में कही थी, लेकिन अर्जेंटीना के हालात बयान करने के लिए यह एक मशहूर वन लाइनर बन गया।

जापान 2 परमाणु हमले झेलकर भी दुनिया का टॉप अमीर देश बन गया, जबकि 100 साल पहले अमेरिका के साथ सुपरपावर बनने की रेस में रहा अर्जेंटीना पिछड़ता चला गया।

अर्जेंटीना ने 20वीं सदी में ऐसा पतन झेला, जिसकी इतिहास में दूसरी मिसाल मिलना काफी मुश्किल है। पिछले 100 साल में यह देश 7 बार दिवालिया हो चुका है। यहां 6 तख्तापलट हो चुके हैं।

यह देश नेचुरल रिसोर्सेज से मालामाल होने के साथ दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण भौगोलिक लोकेशन पर मौजूद है। इसके बाद भी अस्थिर आर्थिक नीतियों से इसे मुश्किलों में फंसाए रखा है। पॉलिटिक्स, करप्शन और फुटबॉल का इसमें बड़ा योगदान है। PM नरेंद्र मोदी दो दिन के दौरे पर यहां पहुंचे हैं। 

यूरोप को अनाज बेच दुनिया का अन्न भंडार बना

अर्जेंटीना के विशाल उपजाऊ मैदान को पम्पास कहा जाता है। यह पूरी दुनिया में सबसे उपजाऊ मैदानों में से एक है। प्रथम विश्वयुद्ध में जब यूरोपीय देश जंग में उलझे थे तो वहां खेती और कारोबार ठप हो गया। यूरोप के हालत का फायदा अर्जेंटीना ने उठाया।

अर्जेंटीना से गेहूं, मांस, ऊन बड़े पैमाने पर यूरोप भेजा जाने लगा। अर्जेंटीना को ‘दुनिया की ग्रेनरी’ यानी ‘अन्न भंडार’ कहा जाने लगा। अर्जेंटीना में जब पैसे आए तो वहां यूरोप की कंपनियां पहुंचीं। उन्होंने रेल लाइनें, सड़कें और बंदरगाह बनाने में काफी निवेश किया।

ब्यूनस आयर्स, रोसारियो और कोरडोबा जैसे शहर यूरोपीय शहरों को टक्कर देने लगे। इस दौरान यूरोप से लाखों प्रवासी अर्जेंटीना आए। अर्जेंटीना की तरक्की देख कई एक्सपर्ट्स दावे करने लगे कि यह देश अमेरिका के साथ अगला सुपरपावर बनेगा।

यूरोपीय देशों की बराबरी की, मंदी से तबाह हुआ

एंगस मैडिसन जैसे इतिहासकारों की रिसर्च के मुताबिक 1925 में अर्जेंटीना की GDP कनाडा, ब्रिटेन, स्पेन, इटली जैसे यूरोपीय देशों के बराबर हो चुकी थी। अर्जेंटीना दुनिया के सबसे अमीर देशों में शामिल हो चुका था। लेकिन कुछ ही समय में स्थिति बदलने वाली थी।

साल 1929 में अमेरिका में ‘द ग्रेट डिप्रेशन’ आया। इस महामंदी ने दुनिया की इकोनॉमी हिला दी। यूरोप और अमेरिका के पास पैसा कम हुआ तो डिमांड घटी। अर्जेंटीना को कम ऑर्डर मिलने लगे। वैश्विक व्यापार ठप पड़ने से अर्जेंटीना का कृषि निर्यात अचानक गिर गया।

किसानों की आमदनी घटी, बेरोजगारी बढ़ी। अच्छी जिंदगी जीने की आदत डाल चुके लोगों में सरकार के लिए गुस्सा भर गया। आर्मी चीफ जनरल जोस फेलिक्स उरिबुरु ने इसका फायदा उठाया। उन्होंने राष्ट्रपति हिपोलिटो यरीगोयेन को गिरफ्तार कर लिया और राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया। इस तख्तापलट में एक बूंद खून नहीं बहा।

हालांकि, जनरल उरिबुरु भी अर्जेंटीना की हालत सुधार नहीं पाए। 1931 में जनरल ने चुनाव का ऐलान कर दिया। 1932 में अर्जेंटीना में नई सरकार बनी। हालांकि, तख्तापलट का सिलसिला जो शुरू हुआ था आगे भी जारी रहा।

1930 से लेकर 1980 के बीच अर्जेंटीना में 6 बार सैन्य तख्तापलट हुए और सरकारें बदलती रहीं। इस अस्थिरता ने निवेशकों का भरोसा तोड़ा, उद्योग और कृषि को नुकसान पहुंचाया और विकास की रफ्तार रोक दी।

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