मुरुकु, खापली आटा, बाकरवड़ी और जीरा सोडा… क्विक कॉमर्स कैसे बदल रहा है छोटे कारोबारियों की दुनिया

बेंगलुरु: क्विक कॉमर्स यानी कुछ ही मिनटों में सामान पहुंचाने वाले प्लेटफॉर्म्स का देश में चलन तेजी से बढ़ा है। खाने-पीने का सामान बनाने वाली छोटी-छोटी कंपनियां भी अपना बिजनस बढ़ाने के लिए इसका सहारा ले रही हैं। वे अपने सामान को दूसरे शहरों में भी बेचना चाहती हैं क्योंकि क्विक कॉमर्स से डिलीवरी जल्दी होती है। इससे कंपनियों को अलग-अलग पिन कोड के हिसाब से सामान बेचने में मदद मिलती है। लोगों को मुरुकु, खापली आटा, बाकरवड़ी और जीरा सोडा जैसे स्नैक्स बहुत पसंद आ रहे हैं। इसलिए ये कंपनियां उन शहरों में भी अपनी पहचान बना रही हैं जहां पहले पहुंचना मुश्किल था।
पहले कई कंपनियों ने D2C मॉडल के जरिए अपने राज्य से बाहर पहचान बनाई। D2C का मतलब है कि वे सीधे ग्राहकों को सामान बेचती थीं। अब क्लिक कॉमर्स एक नया तरीका बन गया है। इससे वे छोटे पैकेट और बंडल में सामान बेच सकती हैं। Zepto, Blinkit, Instamart और BigBasket जैसे प्लेटफॉर्म पर उनके सामान बार-बार दिखते हैं।
बढ़ गई कमाई
Sweet Karam Coffee कंपनी की CEO नलिनी पार्थिबन का कहना है कि क्विक कॉमर्स से अब उनका 40% कारोबार होता है। हमने डेढ़ साल में क्विक कॉमर्स के जरिए अपनी कमाई को 4.5 गुना बढ़ा लिया है। अब हमारी 50% बिक्री दक्षिण भारत से बाहर होती है, जबकि पहले यह 10-20% ही थी। इसका मतलब है कि क्विक कॉमर्स की वजह से वे दूसरे शहरों में भी अपना सामान बेच पा रहे हैं
क्विक कॉमर्स की ओर बदलाव
BigBasket जैसे प्लेटफॉर्म भी अलग-अलग क्षेत्रों के सामान को बढ़ावा दे रहे हैं। BigBasket का कहना है कि नायलॉन सेव, मिसल और उज्जैन सेव जैसे क्षेत्रीय सामान की बिक्री पिछले 3-6 महीनों में 50% से ज्यादा बढ़ गई है। BigBasket के अधिकारी सेशु कुमार तिरुमाला का कहना है, "मुरुकु अब हमारी नमकीन कैटेगरी में 5% का योगदान देता है। ऐसी 80% खरीदारी 10 मिनट की डिलीवरी के जरिए होती है और यह अचानक ही की जाती है।" इसका मतलब है कि लोग जल्दी डिलीवरी की वजह से तुरंत मुरुकु खरीद लेते हैं।
House of Bindu जैसी नई कंपनियां क्विक कॉमर्स को लोगों तक पहुंचने का एक तरीका मानती हैं। PwC इंडिया के पार्टनर रवि कपूर का कहना है, "यह D2C से क्विक कॉमर्स की ओर बदलाव है।" उनका कहना है कि खाने-पीने के सामान को पूरे देश में बेचना मुश्किल है क्योंकि लोगों की पसंद अलग-अलग होती है। लेकिन पिन कोड के हिसाब से सामान बेचने से क्षेत्रीय ब्रांड तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।