नई व्यवस्था:सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर बिना परीक्षा के मेडिकल टीचर बन सकेंगे

मप्र के सरकारी अस्पतालों में मरीजों का इलाज कर रहे अनुभवी डॉक्टर अब मेडिकल कॉलेजों में टीचर बन सकेंगे- वह भी बिना परीक्षा और इंटरव्यू के। नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी की भारी कमी को देखते हुए यह व्यवस्था लागू की है। इसके तहत 220 से ज्यादा बेड वाले सरकारी गैर-शिक्षण अस्पताल अब टीचिंग अस्पताल माने जाएंगे और वहीं के डॉक्टर मेडिकल स्टूडेंट्स को पढ़ा सकेंगे।
अब तक मेडिकल टीचर बनने के लिए एमपीपीएससी या डायरेक्ट इंटरव्यू पास करना जरूरी था। नई व्यवस्था में डॉक्टरों को उनके अनुभव के आधार पर ही प्रोफेसर या असिस्टेंट प्रोफेसर बनाया जा सकेगा। उदाहरण के लिए, 10 साल का अनुभव रखने वाले डॉक्टर एसोसिएट प्रोफेसर और 2 साल का अनुभव रखने वाले विशेषज्ञ असिस्टेंट प्रोफेसर बन सकेंगे।
शर्तें क्या होंगी?
- सीनियर रेजिडेंसी अब अनिवार्य नहीं, पर 2 साल में बायोमेडिकल रिसर्च कोर्स जरूरी होगा।
- 6 साल का अनुभव रखने वाले डिप्लोमा होल्डर भी असिस्टेंट प्रोफेसर बन सकेंगे।
- एनएमसी, स्टेट काउंसिल, यूनिवर्सिटी या मेडिकल रिसर्च संस्थानों में 5 साल का अनुभव भी टीचिंग में गिना जाएगा।
- 3 साल के अनुभव वाले सीनियर कंसल्टेंट प्रोफेसर बन सकेंगे।
- प्री-क्लिनिकल और पैरा-क्लिनिकल विषयों में सीनियर रेजिडेंट की उम्रसीमा बढ़ाकर 50 साल कर दी गई है।
- ट्यूटर या डेमोंस्ट्रेटर के रूप में कार्य अनुभव असिस्टेंट प्रोफेसर की योग्यता में मान्य होगा।
असर क्या पड़ेगा? इस साल श्योपुर व सिंगरौली में मेडिकल कॉलेज शुरू होंगे। बुदनी, मंडला व राजगढ़ में अगले सत्र से 150-150 सीटों के साथ कॉलेज खुलेंगे। यानी कुल 750 नई सीटें जुड़ेंगी, पर पढ़ाने के लिए फैकल्टी की कमी है। अभी प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में प्रोफेसर, एसो. प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के 50% से ज्यादा पद खाली हैं। नियमों के अनुसार, हर 100 एमबीबीएस सीटों पर कम से कम 9 से 10 फैकल्टी जरूरी होती हैं। स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव संदीप यादव ने कहा कि अधिसूचना का अध्ययन कर आगे की प्रक्रिया तय की जाएगी। नई भर्तियों की तैयारी भी जारी है।
एक्सपर्ट व्यू – डॉ. पंकज शुक्ला, पूर्व डायरेक्टर, NHM
डॉ. पंकज शुक्ला, पूर्व डायरेक्टर, NHM
फैसले से गुणवत्ता पर असर पड़ेगा। सरकारी अस्पतालों में पहले से डॉक्टरों पर ओपीडी, सर्जरी और इमरजेंसी का भार है। अब उन्हें पढ़ाने का जिम्मा भी मिल जाएगा। इससे न मरीजों पर फोकस हो पाएगा और न स्टूडेंट्स को क्वालिटी टीचिंग मिल पाएगी। सीनियर रेजिडेंसी और रिसर्च अनुभव की अनदेखी से एमडी/एमएस जैसे विशेषज्ञ डॉक्टरों की मेहनत और योग्यता का अवमूल्यन होगा। डिप्लोमा होल्डर्स को छह साल के अनुभव पर असिस्टेंट प्रोफेसर बनाया जा रहा है, जबकि कई कॉलेजों में आज भी डेमो रूम, डिजिटल लैब जैसी बुनियादी सुविधाएं ही नहीं हैं।