भारत के POK दांव को फेल करने की तैयारी में जुटा पाकिस्‍तान, बना रहा छोटे-छोटे परमाणु बम, अमेरिकी रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

वॉशिंगटन/इस्लामाबाद: संयुक्त राज्य अमेरिका की डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी (DIA) की प्रकाशित 2025 की थ्रेट एसेसमेंट रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि पाकिस्तान, चीन की मदद से छोटे छोटे परमाणु बमों का निर्माण कर रहा है। इस रिपोर्ट में खास तौर पर चीन के साथ पाकिस्तान के सैन्य और परमाणु टेक्नोलॉजी को लेकर हो रहे सहयोग को रेखांकित किया गया है। इस रिपोर्ट में पाकिस्तान द्वारा कम क्षमता वाले परमाणु हथियारों (LYNW) की खरीद भी शामिल है। अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान, भारत को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है इसलिए वो छोटे छोटे परमाणु बमों का जखीरा तैयार कर रहा है।

आपको बता दें कि LYNW, जिन्हें सामरिक परमाणु हथियार (TNW) भी कहा जाता है, वो 20 किलोटन से कम क्षमता वाले परमाणु बम होते हैं। LYNW परमाणु बमों के डेवलपमेंट को लेकर ये तर्क दिया जाता है कि इनके इस्तेमाल का प्रभाव कम होगा, क्योंकि इनका दायरा कम होगा। इसके जरिए युद्ध के मैदान में नियंत्रित ‘आनुपातिक जवाबी कार्रवाई’ की जा सकती है, ताकि सीमित युद्ध हो सके और तनाव कम करने का रास्ता बना रहे, लेकिन एक्सपर्ट्स ऐसे दावों को बकवास मानते हैं।

भारत के लिए LYNW बना रहा पाकिस्तान!
ऑब्जर्वर्स रिसर्च फाउंडेशन (ORF) की रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तथाकथित छोटे परमाणु बमों का भी प्रभाव विनाशकारी ही होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों की क्षमता भी 16 से 21 किलोटन के बीच थी। यानी लगभग उतनी ही जितनी किसी लो-यील्ड हथियार की होती है। जापान पर गिराए गये परमाणु बमों से लाखों लोग मारे गए थे और दोनों शहर पूरी तरह तबाह हो गए। हिरोशिमा में, पहले दिन अनुमानित 45,000 लोग मारे गए और अगले चार महीनों में 19,000 और मारे गए। नागासाकी में, पहले दिन 22,000 लोग मारे गए और चार महीनों में 17,000 और मारे गए। इसके अलावा, बमों ने दोनों शहरों के लगभग 15 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को नष्ट कर दिया। लोगों के मरने की संख्या इसलिए आंकड़ों में कम है क्योंकि हजारों लोगों का कोई पता नहीं चल पाया और दूसरी बात ये, कि इन दोनों शहरों की जनसंख्या पहले से ही कम थी

दशकों तक रेडिएशन का प्रभाव रहा। ऐसे में "टैक्टिकल" शब्द सिर्फ भ्रम फैलाने के लिए इस्तेमाल होता है। LYNWs का वास्तविक खतरा यह है कि वे परमाणु युद्ध की थ्रेशहोल्ड यानी उपयोग की सीमा को खतरनाक रूप से नीचे ले आते हैं। वहीं, पाकिस्तान जैसे देशों के लिए, जो पहले ही भारत के खिलाफ "पहले इस्तेमाल" (First Use) की नीति अपनाए हुए हैं, ऐसे परमाणु बमों का जखीरा तैयार करना पूरे क्षेत्र को अस्थिरता की आग में झोंक देते हैं
पाकिस्तानी बमों के खिलाफ भारत की प्रतिरोधक क्षमता क्या है?
पूर्व पाकिस्तानी डिप्लोमेट लेफ्टिनेंट जनरल खालिद किदवई ने 2011 में भारत के कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत के जवाब में, युद्धक्षेत्र में परमाणु बम के उपयोग के लिए विशेष रूप से तैयार की गई, कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल, नस्र मिसाइल सिस्टम के डेवलपमेंट की तरफ इशारा किया था। नस्र, पाकिस्तान के पूर्ण-स्पेक्ट्रम प्रतिरोध सिद्धांत का एक हिस्सा था, जिसमें पारंपरिक भारतीय सैन्य कार्रवाई के विरुद्ध भी "पहले प्रयोग" को शामिल किया गया था। जनरल खालिद किदवई की इस नीति का तर्क था कि अगर भारत "कोल्ड स्टार्ट" सिद्धांत के तहत सीमित पारंपरिक हमला करता है, तो पाकिस्तान छोटे परमाणु हथियारों से जवाब दे सकेगा। लेकिन यह रणनीति आत्मघाती सिद्ध हो सकती है।
दूसरी तरफ, भारत परमाणु हथियारों को लेकर नो फर्स्ट यूज (NFU) नीति अपनाता है। इसीलिए परमाणु हमला होने की आशंका की स्थिति में भारत की जवाबी कार्रवाई को लेकर सालों से बहस हो रही है। लेकिन डिफेंस एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत ने भले ही "नो फर्स्ट यूज" (NFU) नीति अपनाई हो, लेकिन उसका "मैसिव रिटैलिएशन" सिद्धांत स्पष्ट करता है कि किसी भी परमाणु हमले, चाहे वह लो-यील्ड ही क्यों न हो, उसका जवाब भारी हमले से दिया जाएगा। इसका मतलब यह है कि यदि पाकिस्तान युद्ध के दौरान TNWs का प्रयोग करता है, तो भारत अपने सबसे विनाशक परमाणु बम का इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ करेगा। एक्सपर्ट इसे सबसे घातक प्रतिरोधक सिद्धांत मानते हैं।

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