पासनी पोर्ट, अमेरिकी ड्रोन… भारत को घेरने की मुल्ला मुनीर की नई चाल, अमेरिका और तुर्की को एक साथ साध रहा पाकिस्तान

इस्लामाबाद: भारत के हाथों ऑपरेशन सिंदूर में बुरी तरह से पिटने के बाद पाकिस्तान ने अपने रणनीतिक गठबंधनों में तेजी से बदलाव ला रहा है। कई सालों के बाद पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते ठीक हुए हैं। पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को खुश करने के लिए सबकुछ करने को तैयार हैं। मुनीर ने अमेरिका को अरब सागर में पहुंच देने के लिए गहरे पाने वाले पासनी बंदरगाह की पेशकश कर दी है। खास बात है कि ये बंदरगाह चीन निर्मित ग्वादर से 100 किमी की दूरी पर ही है। अमेरिका के साथ ही पाकिस्तान ने तुर्की से भी नजदीकी बढ़ाई है। इसने तुर्की को कराची में एक नए औद्योगिक केंद्र के लिए 1000 एकड़ जमीन देने को पेशकश की है।

अमेरिका को पाकिस्तान का बड़ा ऑफर

रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान ने अमेरिका को पासनी में बंदरगाह बनाने और इसे संचालित करने की अनुमति देने का प्रस्ताव रखा है। यह विचार पिछले महीने पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात के बाद आया है, जिसे वॉशिंगटन के सामने रखा गया है। हालांकि, आधिकारिक तौर पर इस बंदरगाह पर कोई अमेरिकी सैन्य संपत्ति नहीं होगी, लेकिन रणनीतिक रूप से पासनी इतना महत्वपूर्ण है कि इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

पासनी बंदरगाह क्यों है बेहद खास?

पासनी की भौगोलिक स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है। यह ईरान के चाबहार और पाकिस्तान के ग्वादर के बीच स्थित है। चाबहार बंदरगाह को भारत ने विकसित किया है, तो ग्वादर चीन का महत्वपूर्ण रणनीतिक निवेश है। यह अमेरिका को अरब सागर में दो प्रतिद्वंद्वी शक्तियों के बीच एक अनोखी स्थिति में रखता है

इसके अलावा पाकिस्तान ने कथित तौर पर अमेरिका को ड्रोन की सीमित पहुंच की पेशकश की है। यह 2000 के दशक की शुरुआत की याद दिलाता है, जब अफगानिस्तान में अभियानों के लिए पाकिस्तान के शम्सी एयरबेस से अमेरिकी ड्रोन ऑपरेट होते थे। ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद पाकिस्तान में भड़के गुस्से के चलते साल 2011 में ये ऑपरेशन बंद हो गए थे। अमेरिका के लिए यह प्रस्ताव आकर्षक है। पासनी में उपस्थिति उसे अफगानिस्तान और ईरान पर नजर रखने में मदद करेगी। साल 2021 में अफगानिस्तान से हटने के बाद अमेरिका के लिए यह मुश्किल हो गया है

पाकिस्तान के गठजोड़ में तुर्की भी शामिल

पाकिस्तान के इस नए गठजोड़ में अमेरिका अकेला नहीं है। इसी साल अप्रैल में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन को कराची औद्योगिक पार्क में एक निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र स्थापित करने के लिए 1000 एकड़ मुफ्त जमीन की पेशकश की थी। यह क्षेत्र कर छूट के साथ ही मध्य एशिया और खाड़ी देशों के लिए सीधे शिपिंग मार्ग प्रदान करेगा, जिससे परिवहन लागत में लगभग 75 प्रतिशत की कमी आएगी। तुर्की से बढ़ती नजदीकी भारत के लिए चिंता की बात है, खासतौर पर जब अंकारा ने इस साल मई में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया था।


भारत को क्यों चिंतित होना चाहिए?

पाकिस्तान का बदलते गठबंधन का भारत के लिए बहुआयामी असर होगा। भारत के चाबहार टर्मिनल से मात्र 300 किमी दूर स्थित पासनी बंदरगाह पश्चिमी तट पर सामरिक संतुलन को बदलने का खतरा पैदा करता है। अगर वॉशिंगटन को यहां परिचालन मिलता है, तो यह निगरानी का एक त्रिकोण पूरा कर देगा, जिसके बीच भारत फंस जाएगा। अमेरिका-पाकिस्तान के बीच संभावित ड्रोन सहयोग सुरक्षा संबंधी चिंताओं को भी बढ़ाता है। भारत की पश्चिमी सीमा के पास बढ़ी हुई निगरानी क्षमता इस्लामाबाद को खुफिया जानकारी दिला सकती है। इसके साथ ही कराची में तुर्की की बढ़ती आर्थिक भूमिका दोनों की साझेदारी को मजबूत करती है, जो अक्सर भारत के खिलाफ रही है।

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