रीवा के स्कूल में 10 साल से नहीं बंटा मध्याह्न-भोजन:प्रिंसिपल ने कहा- एडमिशन लेना बंद किया; बच्चे बोले- भूख लगने पर पानी पी लेते हैं

भूख लगती है, तो पानी पी लेते हैं…

यह दर्द है रीवा के एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का। स्कूल में 10 साल से भी ज्यादा समय से मध्याह्न भोजन नहीं बंट रहा है। संभवत: यह प्रदेश का इकलौता स्कूल होगा, जहां बच्चों को सप्ताह में एक भी दिन भोजन नसीब नहीं होता है। मामले की शिकायत जनवरी में संकुल से लेकर जिले तक की गई, लेकिन 10 महीने बाद भी कोई सुनवाई नहीं हुई। अब अभिभावकों ने मामले की शिकायत कलेक्टर से की है।

गेट तक टूटा, पीने के लिए पानी तक की व्यवस्था नहीं

स्कूल के हाल-बेहाल मिले। स्कूल में मध्याह्न भोजन नहीं मिलने की एक सबसे बड़ी समस्या तो है कि और भी बहुत सी कमियां हैं। बच्चे यह तो कह रहे हैं कि भूख लगने पर पानी पीकर काम चला लेते हैं।

हकीकत में स्कूल में उनके लिए साफ पानी तक की व्यवस्था नहीं है। पानी के लिए यहां हैंडपंप तक नहीं है। स्कूल में लाइट का कनेक्शन तो है, लेकिन स्कूल में खिंचे तारों में करंट नहीं दौड़ता, क्योंकि लाइट कटी हुई है। ऐसे में टीचर के साथ ही बच्चों को गर्मी के दिनों में भी बिना पंखे के ही रहना होता है। स्कूल का गेट भी टूट चुका है। पूछने पर पता चला कि स्कूल में एक बार तो चोरी भी हो चुकी है।

बच्चे और परिजनों का दर्द… पानी भी घर से लेकर आते हैं

छात्रों का कहना है कि सभी स्कूल में हर दिन मध्याह्न भोजन में कुछ न कुछ अलग खाने को मिलता है। सप्ताहभर का अलग-अलग मेन्यू निर्धारित है। इसमें खीर पूड़ी, सब्जी, दाल, चावल, रोटी, सलाद, सोयाबीन और मिष्ठान शामिल है। हमें तो चावल-दाल तक नसीब नहीं होता है।

स्कूल में पढ़ने वाली मानवी शर्मा ने बताया कि पिछले 3 साल से स्कूल में पढ़ रही हूं। आज तक एक भी दिन यहां कुछ भी खाने की नहीं मिला। आम दिनों की तो बात छोड़ दीजिए। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस तक को भी कुछ खाने को नहीं मिलता है

टीचर बोले- शिकायत की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई

प्राचार्य सतीश पांडे का कहना है कि कई बार मध्याह्न भोजन के लिए प्रयास किया गया। BRC कार्यालय में भी कई शिकायत की गई। हालांकि अब तक तो मध्याह्न भोजन की व्यवस्था नहीं हो पाई है। मैंने एक बार नहीं कई बार इस मामले को बीआरसी के सामने उठाया है।

पांडे कहते हैं कि मैं 2015 से स्कूल में पदस्थ हूं। शिकायत करने पर एक-दो दिन समूह भोजन की व्यवस्था करवा देती है। इसके बाद फिर से भोजन देना बंद कर देती है। किसी फेस्टिवल या ओकेशन में भी भोजन नहीं दिया जाता है।

शिक्षिका मुनेश्वरी ठाकुर का कहना है कि स्कूल में मध्याह्न भोजन नहीं मिलता, इसलिए बच्चे स्कूल नहीं आते। अगर बच्चे आए भी तो बीच में ही भूख लगने पर स्कूल छोड़कर चले जाते हैं। साल 2013 से इसी विद्यालय में पदस्थ हूं, पिछले 12 साल से मैंने तो बच्चों को भोजन पाते हुए नहीं देखा है। यही कारण है कि बहुत से बच्चे अपना दाखिला इस स्कूल में नहीं करवाना चाहते हैं। कुछ बच्चे ऐसी भी हैं जो अब नाम कटवाकर दूसरे स्कूल में जाने की इच्छा जता चुके हैं, उनके अभिभावक भी यही चाहते हैं।

स्कूल के शिक्षक शशि मोहन मिश्रा ने कहा कि वर्तमान छात्रों की संख्या 51] जबकि पिछले साल छात्रों की संख्या 77 थी। बच्चों को भोजन नहीं मिलने की शिकायत कई बार की गई, लेकिन सप्ताह में एक भी दिन खाना नहीं मिलता है।

अभिभावक बोले- बच्चों के निवाले के पैसों से बंदरबांट

बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि स्कूल का समय सुबह 10 बजे से है। सुबह बच्चे नाश्ता कर स्कूल चले जाते हैं। कुछ बच्चे तो दोपहर में खाने के लिए कुछ लेकर आते हैं, लेकिन कई बच्चे नहीं ला पाते हैं। दोपहर में उन्हें भूख लगती है, ऐसे में कई बच्चे पानी पीकर ही काम चला लेते हैं। इसका कारण सालों से स्कूल में मध्याह्न भोजन का नहीं मिलना है। पड़ोस के गांव में स्कूल में बच्चों को भोजन मिलता है, लेकिन हमारे यहां बच्चे भूखे पेट स्कूल में बैठने को मजबूर हैं। बच्चों का निवाला डकारने वाले समूह पर कार्रवाई तो होनी ही चाहिए, अब तक किए गए गबन की रिकवरी भी हो।

स्कूल की छात्रा मानवी शर्मा के पिता बसंत शर्मा ने बताया कि जिस तरीके से बच्चों को भोजन नहीं दिया जा रहा। उससे यह स्पष्ट हो रहा है कि बड़े पैमाने पर पूरे के पूरे पैसे की धांधली की जा रही है। स्कूल में हमारे बच्चों के साथ ही कई ऐसे बच्चे भी हैं, जो बहुत गरीब और निचले तबके से आते हैं, जिनके माता-पिता शिक्षा के महत्व को समझते हुए उन्हें स्कूल भेजते हैं, लेकिन शासन जब पैसे दे रहा है तो उसका सही से उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है। बच्चों के निवाले के पैसों से बंदरबांट किया जा रहा है।

ग्रामीण बोले- समूह और अधिकारी की साठगांठ से ऐसा हो रहा

गंगेव के ही रहने वाले समाजसेवी शिवानंद द्विवेदी का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारी आंखों में पट्टी बांधकर बैठे हैं। एक दो दिन की बात हो तो समझ आता है, लेकिन यहां 10 साल से अंधेरगर्दी चल रही है। इतने सालों में कुंभकरण भी जाग जाता था, लेकिन ये प्रशासनिक कार्यालयों में बैठे कुंभकरण बच्चों के कष्ट को देखने के बाद भी नहीं जागे। इससे अधिक दुर्भाग्य की बात भला क्या हो सकती है।

समूह का नाम जागृति स्व सहायता समूह है। समूह की सचिव संतोष कुमारी विश्वकर्मा हैं। उनका आरोप है कि सालों से बीआरसी प्रदीप द्विवेदी और समूह की सचिव संतोष कुमारी विश्वकर्मा मिलकर पूरी राशि का बंदरबांट कर रहे हैं। प्राचार्य की शिकायत को बीआरसी अपने स्तर से दबा देते हैं।

5 सालों से जागृति स्व सहायता समूह के पास है जिम्मेदारी

जिस स्कूल में बच्चों को 10 साल से ज्यादा समय से भोजन नहीं परोसा जा रहा है। उस स्कूल में बच्चों तक भोजन पहुंचाने की जिम्मेदारी जागृति स्व. सहायता समूह की है। इस समूह का संचालन आसपास के इलाके और गांव के ही कुछ लोग मिल कर करते हैं। समूह की तरफ से शासन से आने वाले राशि को आहरित तो किया जा रहा है, लेकिन बच्चों तक भोजन पहुंचाया ही नहीं जा रहा। इस संबंध में समूह से भी संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन समूह के सदस्य कुछ भी कहने से बचते रहे।

क्या कहते हैं जिम्मेदार…

बीआरसी प्रदीप द्विवेदी ने उन पर लगे आरोप को नकारते हुए कहा- मुझे इस संबंध में कुछ समय पहले ही जानकारी मिली है। जांच में लापरवाही पाए जाने पर समूह का टेंडर निरस्त किया जाएगा। वहीं, जनवरी में शिकायत मिलने की बात पर वे सवाल से बचते नजर आए।

डीईओ बोले- वरिष्ठ अधिकारियों से पत्राचार कर कार्रवाई करेंगे

जिला शिक्षा अधिकारी रामराज मिश्रा का कहना है कि जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय की तरफ से सख्त निर्देश हैं कि किसी भी तरह से बच्चों के भोजन के मामले में कोताही न बरती जाए। स्कूलों में भोजन देना निर्धारित समूहों का कार्य होता है।,जिसके तहत सप्ताहभर अच्छा और पौष्टिक भोजन दिया जाता है। शासन की तरफ से इसके लिए अच्छा बजट भी समूहों को प्राप्त होता है। पहले भी कुछ जगहों से शिकायत मिली थीं, जिस संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों से पत्राचार कर कार्यवाही सुनिश्चित की गई थी। इस मामले को भी वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में लाया जाएगा।

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