हरियाली पर डाका:132 की अनुमति, 800 से ज्यादा पेड़ काट डाले; सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

राजधानी में सड़क चौड़ीकरण के नाम पर पेड़ों की अवैध कटाई और एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल) के आदेशों की अनदेखी पर सुप्रीम कोर्ट ने जिम्मदारों से जवाब तलब किया है। लॉ स्टूडेंट सानिध्य जैन ने शीर्ष अदालत में आरोप लगाया कि शासन और विभागों ने मनमाने तरीके से 800 से ज्यादा पेड़ काट डाले, जबकि अनुमति सिर्फ 132 पेड़ों की थी।
मामले में पहले ही एनजीटी ने 23.70 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था और हर एक कटे पेड़ के बदले 10 नए पौधे लगाने का आदेश दिया था। यानी 800 पेड़ों के बदले 8000 पौधे लगने थे, लेकिन जिम्मेदारों ने न तो पौधे लगाए और न ही आदेशों का पालन किया।
मामला शैतान सिंह स्क्वॉयर से कोलार ट्राय-जंक्शन तक सड़क निर्माण का है। यहां सड़क निर्माण के लिए पीडब्ल्यूडी ने 132 पेड़ काटने की अनुमति मांगी थी। नगर निगम ने जून 2024 तक अनुमति नहीं दी, लेकिन पीडब्ल्यूडी ने जनवरी में ही 800 पेड़ काट डाले।
निगम ने 132 पेड़ों के बदले 7.92 लाख की क्षतिपूर्ति मांगी थी। यह राशि 7 जून 2024 को जमा की गई। बाद में जांच हुई तो पता चला कि 132 की जगह 800 से ज्यादा पेड़ काटे गए। एनजीटी ने सड़क के बीच में पौधे रोपने के निर्देश दिए थे, लेकिन बीच में पौधे लगाने के लिए जगह नहीं छोड़ी गई, बल्कि वहां कांक्रीट से पक्का निर्माण कर दिया।
एनजीटी में दिया गलत हलफनामा, न जुर्माना भरा, न पेड़ लगाए
कोर्ट ने माना- यह स्वच्छ, स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार का हनन सानिध्य की ओर से अधिवक्ता अंशुल गुप्ता, कीर्ति दुआ और आदित्य टेंगुरिया ने दलील रखी कि यह न सिर्फ आदेशों का उल्लंघन है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकार स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण का भी हनन है।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल चंदुरकर की बेंच ने इस पर सहमति जताते हुए मप्र शासन को नोटिस जारी किया है। मामले में कलेक्टर, निगम कमिश्नर, ईएनसी पीडब्ल्यूडी, पीसीसीएफ फॉरेस्ट, एमपीपीसीबी के सदस्य सचिव और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डायरेक्टर भी पक्ष बनाए गए हैं।
आरटीआई: 1 साल में काटे 30 हजार पेड़
एक आरटीआई के जवाब में सामने आया कि नगर निगम ने अकेले 2024-25 में निर्माण के नाम पर 30 हजार से ज्यादा पेड़ काट दिए हैं। इसलिए यह मामला सिर्फ पेड़ों की कटाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इस बात का भी परीक्षण है कि क्या सरकारें पर्यावरण संरक्षण के मामले में जिम्मेदारी निभा रही हैं या नहीं। सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई में यह तय होगा कि 8000 पौधारोपण की भरपाई होगी या फिर मामला सिर्फ कागजों पर ही दबा रहेगा।