रुद्रनाथ के कपाट बंद, सारा अली खान ने की पूजा:संकरे-पथरीले रास्तों से पैदल चली; भगवान रूद्रनाथ की डोली रवाना

चमोली में स्थित चतुर्थ केदार रुद्रनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए आज यानी 17 अक्टूबर को बंद कर दिए गए। इस मौके पर बॉलीवुड अभिनेत्री सारा अली खान समेत सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद रहे। सुबह करीब 6:30 बजे ब्रह्म मुहूर्त में विधि-विधान और पुरानी परंपरा के अनुसार रुद्रनाथ मंदिर के कपाट बंद किए गए।
प्रातकालीन पूजा और भगवान रुद्रनाथ का अभिषेक खत्म होने के बाद यह प्रक्रिया पूरी हुई। कपाट बंद होने के बाद भगवान रुद्रनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली शीतकालीन गद्दीस्थल गोपीनाथ मंदिर, गोपेश्वर के लिए रवाना हो गई। अब शीतकाल के दौरान भगवान रुद्रनाथ की पूजा और आराधना इसी गोपीनाथ मंदिर में संपन्न होगी।
इसके बाद 18 अक्टूबर से चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ की शीतकालीन गद्दी गोपेश्वर स्थित गोपीनाथ मंदिर में स्थापित की जाएगी, जहां अगले छह महीने तक नियमित पूजा-अर्चना होगी।
20 किलोमीटर पैदल चली सारा
सारा गुरुवार को 20 किलोमीटर की ट्रैकिंग पूरी कर बाबा रुद्रनाथ पहुंची। सारा ने अपनी ये यात्रा बुधवार को गोपेश्वर के गंगोल गांव से शुरू की थी। इसके बाद बीती वह ल्वींटी बुग्याल पहुंची जहां पर रात्रि विश्राम के बाद उन्होंने फिर से ट्रैकिंग शुरू की और गुरुवार दोपहर 2 बजे रुद्रनाथ बाबा के मंदिर तक पहुंच गईं।
इस पूरी यात्रा के दौरान सारा कई पथरीले और संकरे रास्तों से गुजरीं, बीच में उन्हें कई स्थानीय ग्रामीण भी मिले, जो सारा को देखकर काफी खुश हो गए।
रास्ते में ग्रामीणों से घुल-मिल कर देखा लोक जीवन
सारा अली खान ने ट्रेकिंग के दौरान झोपड़ीनुमा ढाबों पर रुककर चाय पी और स्थानीय लोगों से बातचीत की। उन्होंने यहां के धार्मिक विश्वास, लोक जीवन और पारंपरिक व्यंजनों के बारे में जाना। अभिनेत्री ने पहाड़ की प्राकृतिक सुंदरता और ग्रामीण संस्कृति से खासा प्रभावित होकर इसे यादगार अनुभव बताया।
रंग बिरंगे फूलों से सजाया गया मंदिर
इसके पहले मंदिर को रंग-बिरंगे फूलों और मंदार के सफेद फूलों से सजाया गया है। पुजारी और हकहकूकधारी जंगल से ये पुष्प लाए, ताकि भगवान भोलेनाथ को शीतकालीन समाधि में सजाया जा सके।
कपाट बंद होने के बाद भगवान रुद्रनाथ की डोली सूर्यास्त से पहले गोपीनाथ मंदिर में पहुंचाई जाएगी, जहां अगले छह महीने तक शीतकालीन पूजा-अर्चना आयोजित होगी। इस धार्मिक आयोजन में हकहकूकधारी, स्थानीय ग्रामीण और श्रद्धालु पहले से ही धाम में मौजूद हैं।