सोनभद्र की सशक्त नारियों को सलाम, बकरी के दूध से साबुन बना लिख रहीं आत्मनिर्भरता की सुनहरी कहानी

 सोनभद्र: यूपी का सोनभद्र जिला जहां की पहाड़ियां और जंगल प्रकृति का अनमोल उपहार हैं, अब एक नई क्रांति का गवाह बन रहा है। दुद्धी, म्योरपुर और रॉबर्ट्सगंज जैसे ग्रामीण इलाकों में बकरी पालन लंबे समय से आजीविका का आधार रहा है। अब यहां की महिलाओं ने बकरी के दूध को केवल दैनिक उपयोग तक सीमित नहीं रखा। स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) और गैर-सरकारी संगठनों के प्रशिक्षण के दम पर उन्होंने इसे एक सुनहरे अवसर में बदल दिया है। बकरी के दूध से बने हस्तनिर्मित साबुन न केवल त्वचा के लिए लाभकारी हैं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी अनुकूल हैं।

हर महीने हम 15 हजार तक कमा लेते हैं: संजू देवी

सुबह की पहली किरण के साथ इन महिलाओं का दिन शुरू होता है। घर-खेत के काम निपटाने के बाद, वे छोटी-छोटी कार्यशालाओं में जुट जाती हैं, जहां नारियल तेल, शहद, तुलसी, नीम और गुलाब जैसे प्राकृतिक तत्वों की महक हवा में घुलती है। बकरी का दूध, जो लैक्टिक एसिड से भरपूर और त्वचा को कोमल बनाने वाला होता है, इन साबुनों का मुख्य आधार है। रॉबर्ट्सगंज की संजू देवी आत्मविश्वास भरे लहजे में कहती हैं, ‘पहले हमारा जीवन खेती और पशुपालन तक था। साबुन बनाने का प्रशिक्षण मिला तो लगा कि हम भी कुछ बड़ा कर सकते हैं। अब हम हर महीने 12-15 हजार रुपये कमा लेते हैं।’

त्‍वचा के लिए ज्‍यादा सुरक्षित

इन साबुनों की खासियत उनकी प्राकृतिक बनावट और स्थानीय संसाधनों का उपयोग है। गुलाब, नीम या तुलसी से सजे ये साबुन ‘सोनभद्र की सुगंध’ जैसे ब्रांड नामों से स्थानीय बाजारों, मेलों और ऑनलाइन मंचों पर बिक रहे हैं। ग्राहक इन्हें रासायनिक साबुनों की तुलना में सुरक्षित और त्वचा के लिए बेहतर मानते हैं। जिला प्रशासन और उद्योग केंद्र इन महिलाओं को उन्नत प्रशिक्षण, आकर्षक पैकेजिंग और डिजिटल मार्केटिंग की सुविधा देकर इस पहल को और मजबूत कर रहे हैं।

ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था को मिल रहा बढ़ावा

पर्यावरण के प्रति इन महिलाओं की जिम्मेदारी भी सराहनीय है। ये प्राकृतिक साबुन रासायनिक साबुनों से होने वाले प्रदूषण को कम करते हैं और स्थानीय संसाधनों का उपयोग ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है। रॉबर्ट्सगंज की ग्राहक कविता चतुर्वेदी कहती हैं, इन साबुनों की खुशबू में हमारी बहनों की मेहनत और हौसले की महक है। सोनभद्र की ये नारियां केवल साबुन नहीं बना रही हैं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार कर रही हैं। इनके हर साबुन का टुकड़ा मेहनत, लगन और स्वावलंबन की एक प्रेरक कहानी बयां करता है।

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