इस्लामिक देशों के बीच सुरक्षा गठबंधन… पाकिस्तान के साथ सैन्य समझौते के बाद इस्लामाबाद में सऊदी अधिकारी ने भारत पर क्या कहा?

इस्लामाबाद: सऊदी अरब ने दिल्ली को चौंकाते हुए पाकिस्तान के साथ नाटो जैसा सुरक्षा समझौता किया है। दोनों देशों ने एक दूसरे पर हमला होने की स्थिति में एक दूसरे का साथ देने की कसम खाई है। यानि सऊदी पर हुआ हमला पाकिस्तान पर और पाकिस्तान पर हुआ हमला, सऊदी पर हमला माना जाएगा। भारत, जिसने साफ-साफ शब्दों में कह रखा है कि अब अगर आतंकी हमला होता है तो उसके पीछे पाकिस्तान को जिम्मेदार माना जाएगा और उसके हिसाब से एक्शन लिया जाएगा। भारत ने लगातार कहा है कि ऑपरेशन सिंदूर जारी है। ऐसे में सवाल ये हैं कि अगर भारत आगे जाकर किसी भी आतंकी हमले की स्थिति में पाकिस्तान पर हमला करता है, तो क्या सऊदी अरब पाकिस्तान के साथ खड़ा होगा?
कई एक्सपर्ट्स इसे दिल्ली के लिए बड़ा झटका मान रहे हैं। इसी मुद्दे पर डॉ. जमाल अल हरबी, जो इंटरनेशनल रिलेशन पर लिखते हैं और इस्लामाबाद स्थित सऊदी अरब के दूतावास में मीडिया अताशे हैं, उन्होंने सऊदी अरब पाकिस्तान, भारत और ईरान को लेकर एक लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि सऊदी-पाकिस्तान के बीच हुआ ये समझौता भारत और ईरान की सतर्कता बढ़ाएगा।
डॉ. जमाल अल हरबी ने लिखा है कि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुए इस समझौते के पीछे दोनों देशों का इस्लामिक देश होना, स्थायी मित्रता होना और दोनों देशों के बीच साझा चिंता होना शामिल है। इसीलिए सऊदी अरब और पाकिस्तान ने एक रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की बीच किए गये सुरक्षा समझौते में एक पारस्परिक प्रतिज्ञा स्थापित की गई है कि किसी एक देश के खिलाफ किसी भी आक्रमण को दोनों देशों पर हमला माना जाएगा।
उन्होंने लिखा है कि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुए इस समझौते का समय और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि क्षेत्रीय सुरक्षा वातावरण लगातार जटिल होता जा रहा है। मध्य पूर्व में क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धाएं और बदलते गठजोड़ नए तनाव पैदा कर रहे हैं, जबकि दक्षिण एशिया में भारत-पाकिस्तान तनाव और अफगानिस्तान संघर्ष मौजूद है। सऊदी अरब के लिए यह समझौता अपनी स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप में विविधता लाने का मौका है, जबकि पाकिस्तान के लिए यह आर्थिक और कूटनीतिक चुनौतियों के बीच अंतरराष्ट्रीय स्थिति को मजबूत करने का माध्यम है। उन्होंने लिखा है कि "दक्षिण एशिया में, यह समझौता पाकिस्तान के साथ व्यवहार में भारत की सतर्कता बढ़ा सकता है। खाड़ी क्षेत्र में, यह ईरान की रणनीतिक गणना को प्रभावित कर सकता है…।"
उन्होंने लिखा है कि यह समझौता दोनों क्षेत्रों में सुरक्षा की गणनाओं को बदल सकता है। आक्रामकता के समय एक संयुक्त प्रतिक्रिया का संकल्प लिया गया है, जो दोनों देशों के लिए स्पष्ट निवारक संदेश है। इसका मतलब यह भी है कि दोनों देशों पर किसी भी संभावित हमले की संभावना कम हो सकती है, क्योंकि ऐसी स्थिति में दोनों शक्तिशाली देश एक साथ काम करेंगे। लेकिन समझौते की सफलता सिर्फ दोनों देशों के रिश्तों की मजबूती पर निर्भर नहीं करेगी, बल्कि बाहरी दबावों और कूटनीतिक चुनौतियों को संभालने की उनकी क्षमता पर भी निर्भर करेगी।