बांग्लादेश में कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी की बढ़ी उलझन, नए लोगो को चुपचाप हटाया, जानें कैसे फंसा पाकिस्तान परस्त संगठन

ढाका: जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश ने अपना नया लोगो जारी करने के तुरंत बाद इसे वापस ले लिया है। इसे पार्टी की अपनी छवि को नरम दिखाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। जमात के प्रमुख शफीकुर्रहमान के कार्यालय से नया लोगो हटा दिया है। शफीकुर्रहमान ने रविवार को बांग्लादेश में नवनियुक्त स्विस राजदूत रेटो रेंगली के साथ शिष्टाचार मुलाकात की। इस दौरान जो तस्वीरें सामने आई, उनमें जमात का कोई नया या पुराना लोगो नहीं दिखा। शफीकुर्रहमान के दफ्तर में केवल संगठन का नाम बांग्ला, अंग्रेजी और अरबी में लिखा हुआ था। यह पाकिस्तान परस्त माने जाने वाले इस गुट की उलझन को दिखाता है।

न्यूज 18 की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के सहायक महासचिव एएचएम हमीदुर रहमान आजाद का कहना है कि किसी भी राजनीतिक दल का लोगो बदल सकता है। हमारा तराजू वाला लोगो अभी चर्चा के स्तर पर है, इसे कोई अंतिम रूप नहीं दिया गया है। ये लोगो प्रस्तावित है। इसे जल्दी ही अंतिम रूप दिया जाएगा।

जमात का ध्यान ताकत बढ़ाने पर

जमात के सूत्रों ने न्यूज18 को बताया कि जमात को अपना लोगो बदलने पर समर्थकों के विरोध का डर है। उनके नरम रुख को पश्चिमी शक्तियों की चापलूसी और इस्लामी मूल्यों से हटने के रूप में देखा जा सकता है। शेख हसीना सरकार गिरने के बाद जमात ने तेजी से अपनी ताकत बढ़ाई है। जमात को फरवरी, 2026 में होने वाल राष्ट्रीय चुनावों में किंगमेकर के रूप में उभरने की उम्मीद है। ऐसे में जमात हर कदम सोच समझकर उठा रही है।

कम से कम तीन यूरोपीय संघ के देशों की ओर से जमात को मुख्यधारा में लाने के लिए अपनी छवि में बदलाव करने के लिए कहा जा रहा है। इससे उसे भविष्य में आतंकवाद के वित्तपोषण की जांच से बचने में मदद मिलेगी। हालांकि इससे जमात को समर्थन में कमी आने का डर है। ऐसे में फिलहाल यह देखना बाकी है कि जमात आगे क्या कदम उठाती है

लोगो के पीछे की कहानी क्या है?

बांग्लादेश में जमात का इतिहास विवादों से भरा रहा है। साल 2013 में बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने इसे चुनावों लड़ने से बैन कर दिया था। 2024 में हसीना सरकार ने जमात को आधिकारिक रूप से गैरकानूनी घोषित कर दिया था। हालांकि यूनुस की अंतरिम सरकार में जमात को खुलकर अपनी गतिविधि करने का मौका मिला है।

जमात ने दशकों तक अपने लोगो में अरबी शब्द ‘आकिमुद्दीन’ लिखा है। इसका अर्थ इस्लाम की स्थापना से है। इससे जमात की छवि स्पष्ट रूप से इस्लामवादी और शरिया समर्थक की बनती है। ऐसे में कई मौकों पर जमात ने पहले भी अपने लोगो को बदलने की कोशिश की थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। अब जमात इस लोगो को बदलने की कोशिश में है।

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