फुस्स हो गया ट्रंप का टैरिफ बम! मार्केट ने नहीं दिया कोई भाव, जानिए क्या रही वजह?

नई दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय सामान पर 25% का भारी टैक्स लगाने का ऐलान किया है। यह टैरिफ एशियाई देशों में सबसे ज्यादा है। इसके साथ ही उन्होंने रूस से रिश्तों को लेकर भी भारत पर कुछ अतिरिक्त जुर्माना भी लगाया गया है। इससे कपड़ा और दवा जैसे कई उद्योगों में हलचल मच गई है। सुबह के कारोबार में सेंसेक्स और निफ्टी में करीब 1% की गिरावट आ गई थी लेकिन बाद में वे संभल गए। सेंसेक्स 300 अंक से ज्यादा चढ़ गया जबकि निफ्टी 24,900 अंक के पार पहुंच गया।
ट्रंप ने संकेत दिया है कि भारत पर लगाया गया टैरिफ फाइनल नहीं है। यानी आने वाले दिनों में इसमें बदलाव हो सकता है। अमेरिका की टीम ट्रेड डील पर बातचीत करने के लिए अगले महीने भारत आ रही है। बाजार के जानकारों का कहना है कि दोनों देशों के बीच अभी बातचीत का रास्ता खुला है। विदेशी निवेशकों (FIIs) ने पहले ही टैक्स के असर को भांप लिया है। उन्होंने पिछले 8 दिनों में लगातार शेयर बाजार से लगभग 25,000 करोड़ रुपये निकाल लिए हैं।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
नोमुरा की सोनल वर्मा ने कहा, "25% की ऊंची टैक्स दर शायद अस्थायी है और यह कम हो सकती है। सबसे अच्छा नतीजा यह होगा कि टैक्स 15-20% के बीच रहे। दूसरे देशों के मुकाबले भारत अमेरिका के साथ एक व्यापक ट्रेड डील करने की प्रक्रिया में है। ज्यादातर देशों ने जल्दबाजी में समझौते किए हैं। भारतीय सरकार के सूत्रों ने पहले कहा था कि एक अंतरिम समझौता एक बड़े व्यापार समझौते का हिस्सा होगा, जिसमें 2025 के अंत तक का समय लग सकता है।"
कम होगा टैरिफ का असर
इस टैरिफ की वजह से ऑटो पार्ट्स, कैपिटल गुड्स, केमिकल, फार्मा, रिफाइनरी, सोलर और टेक्सटाइल के निर्यातकों को सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है। नुवामा ने चेतावनी देते हुए कहा कि भारत पर ज्यादा टैरिफ पूंजी के प्रवाह को प्रभावित कर सकता है। उन्होंने कहा कि प्रमोटरों द्वारा भारी बिकवाली और घरेलू निवेशकों के प्रवाह में कमी के बीच एफआईआई का प्रवाह अब बाजार के नतीजों को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि रुपये की कमजोरी से आईटी कंपनियों को फायदा हो सकता है और कम वैल्यूएशन के कारण वे बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं।
एमके की अर्थशास्त्री माधवी अरोड़ा ने कहा कि इस टैरिफ का भारत पर कम असर होगा क्योंकि फाइनेंस, खपत और टेक्नोलॉजी जैसे बड़े सेक्टर इससे अप्रभावित हैं। 25% की दर सबसे खराब स्थिति है और अंतिम द्विपक्षीय समझौता कम टैरिफ दर पर हो सकता है। किसी भी स्थिति में बाजार में गिरावट एक मौका है, जिसमें कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी और इंडस्ट्रियल सेक्टर में निवेश किया जा सकता है।