वेस्ट टू एनर्जी प्लांट फेल…:336 करोड़ खर्च कर विदेशी तकनीक के ऐसे प्लांट लगा दिए, जिनके लिए यहां सूखा कचरा ही नहीं मिल रहा

वेस्ट-टू-एनर्जी यानी कचरे से बिजली बनाने का आइडिया धरातल पर सफल होता नहीं दिख रहा है। नगरीय विकास एवं आवास विभाग की पहल पर जबलपुर में 2016 और रीवा में 2024 में कुल 336 करोड़ लागत से वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट्स शुरू किए गए थे। लेकिन दोनों ही निगम क्षेत्रों में इनके लिए पर्याप्त सूखा कचरा नहीं मिल पा रहा है। नतीजतन कई बार यूपी, गुजरात, महाराष्ट्र से कचरा लाकर जलाना पड़ रहा है। दोनों प्लांट करीब 80% क्षमता पर काम कर रहे हैं।
गीला कचरा अधिक होने से जर्मन तकनीक पर चल रहे ये प्लांट बार -बार बंद हो जाते हैं, फिर साफ कर दोबारा शुरू करना पड़ता है। दरअसल, इंदौर के अलावा मप्र के बाकी क्षेत्रों में अभी भी कचरा कलेक्शन और सेग्रीगेशन कमजोर है। इंदौर में निजी एजेंसी के माध्यम से कचरा अलग-अलग करके उपयोगी चीजें बेच दी जाती हैं। गीला-सूखा कचरा घरों से ही अलग करके दिया जाता है।
वेस्ट एक्सपर्ट्स के मुताबिक विदेशों में गीले सूखे कचरे का अनुपात 20:80 होता है, मप्र जैसे राज्यों में गीला कचरा कहीं अधिक अनुपात में मिलता है। हाल में हुई समीक्षा बैठक में ये प्लांट चलाने वाली निजी कंपनियों ने कचरे की कमी का हवाला दिया था।
निगम आयुक्तों के तर्क
28 निकायों में से 14 में ही वेस्ट कलेक्शन
^कचरा संग्रहण के लिए 28 निकायों का क्लस्टर बनाया था। लेकिन, 14 निकायों में वेस्ट कलेक्शन कुछ कारणों से बंद हो गया था। दोबारा शुरू करवाने के प्रयास हैं। यूपी में महाकुंभ के दौरान भी कचरा यहां आया था। कंपनी खुद के स्रोतों से कचरा मंगाती है।
– सौरभ संजय सोनवाने, निगमायुक्त रीवा
कचरा सेग्रीगेशन की सुविधा होनी चाहिए
जर्मन तकनीक वाले प्लांट में गीला कचरा अधिक होने से दिक्कत होती है, सेग्रीगेशन सुविधा होनी चाहिए। केंद्रीय योजना में जबलपुर के लिए वेस्ट सेग्रीगेशन यूनिट स्वीकृत हो गई है और गीले कचरे के लिए सीएनजी प्लांट भी स्वीकृत हुआ है। -प्रीति यादव, निगम आयुक्त जबलपुर
एक्सपर्ट व्यू – राकेश सिंह, रिटायर्ड आईएएस, अर्बन प्लानर
अब रियूज-रिसाइकिल का दौर
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की तकनीक लगातार बदली है। अब कचरे को ऊर्जा में बदलने की बजाय उसका सेग्रीगेशन यानी अलग करना अधिक फायदेमंद है। रियूज और रिसाइकल का महत्व अधिक बढ़ गया है इसके लिए जरूरी है कि घरों में ही कचरा अलग-अलग करके दिया जाए। इंदौर इस मामले में आगे रहा है, बाकी निगमों को भी सीखना चाहिए। नीति आयोग द्वारा सर्कुलर इकोनॉमी वाले प्रयोग को मुंबई में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लिया गया है।