9 जुलाई से पहले अमेरिका से ट्रेड डील होगी या नहीं? पीयूष गोयल के कड़े रुख से समझिए

नई दिल्ली: अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने भारत के कड़े रुख का संकेत दिया है। उन्होंने शुक्रवार को कहा कि प्रस्तावित एग्रीमेंट तभी होगा जब यह पूरी तरह से तैयार हो और भारत के हितों के मुताबिक हो। उनके अनुसार, भारत किसी डेडलाइन के आधार पर किसी देश से व्यापार समझौता नहीं करता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ऐलान के मुताबिक, 9 जुलाई से भारत पर 26% रेसिप्रोकल टैरिफ (जवाबी शुल्क) लागू होने वाला है। दोनों देशों में इस साल अक्टूबर तक द्विपक्षीय व्यापार समझौते का पहला चरण पूरा करने की सहमति बनी थी। इससे जुड़ी बातचीत में 9 जुलाई से पहले एक मिनी एग्रीमेंट पर भी वार्ता हो रही है।
क्या 9 जुलाई से पहले अमेरिका के साथ मिनी एग्रीमेंट?
यह पूछे जाने पर कि क्या 9 जुलाई से पहले अमेरिका के साथ मिनी एग्रीमेंट हो जाएगा, गोयल ने कहा, ‘भारत कभी कोई ट्रेड डील डेडलाइन के आधार पर नहीं करता। जब डील अच्छी बन जाए और देश हित में हो, तब उसको हम स्वीकार करते हैं।’
वहीं, कॉमर्स मिनिस्ट्री के एक सीनियर अधिकारी ने बताया, ‘एग्रीकल्चर और डेयरी सेक्टरों के बारे में अमेरिकी पक्ष की बात नहीं मानी जा सकती क्योंकि यह भारत के किसानों के हितों के खिलाफ है।’ अमेरिका चाहता है कि भारत अपने एग्री और डेयरी सेक्टर में अमेरिकी कंपनियों के लिए रियायती टैरिफ लगाए। साथ ही, वह जेनेटिकली मॉडिफाइड सोयाबीन और मक्का के लिए भारतीय बाजार खुलवाना चाहता है।
RSS से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठन जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलों के लिए भारतीय बाजार खोलने के विरोध में हैं। SJM के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने NBT से कहा, ‘GM प्रोडक्ट्स, कृषि क्षेत्र, डेयरी सेक्टर और MSME के मामले में कोई ऐसा समझौता नहीं हो सकता, जिससे हमारे किसानों और छोटे उद्यमियों के हितों पर आंच आए। GM फसलों के चलते अमेरिका में कैंसर के मामले भी बढ़ रहे हैं।’
डेयरी प्रोडक्ट्स के मामले में जहां भारतीय किसान छोटे स्तर के उत्पादक हैं, उनके लिए बड़ी अमेरिकी कंपनियों का मुकाबला करना मुश्किल होगा। वहीं, यह पेच भी फंसा हुआ है कि अमेरिका दुधारू पशुओं के चारे के वेज-नॉन वेज सर्टिफिकेशन की शर्त खत्म कराना चाहता है। भारत में यह एक बड़ा सामाजिक-राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।
महाजन ने कहा, ‘पश्चिमी देशों में पशुओं के चारे में हड्डियों के चूरे सहित नॉन-वेज चीजें मिला दी जाती हैं। इसके कारण वहां पशुओं में बीमारियां भी बढ़ रही हैं। सरकार को ऐसे उत्पादों के लिए दरवाजे नहीं खोलने चाहिए।’
भारत अमेरिका से क्या चाहता है?
भारत चाहता है कि अमेरिका टेक्सटाइल्स सहित ज्यादा श्रम की जरूरत वाले सेक्टरों के उत्पादों पर टैरिफ में छूट दे। अधिकारी ने कहा, ‘टेक्सटाइल्स और फुटवेयर जैसे लेबर इंटेंसिव सेक्टरों का मामला हमारे लिए संवेदनशील है। ऑटो कंपोनेंट्स का मामला भी अहम है। हमने अपना पक्ष मजबूती से रखा है। दोनों पक्षों के लिए विन-विन सिचुएशन बनने पर ही ट्रेड डील होगी।’
चीन, ब्रिटेन और वियतनाम के साथ अमेरिकी ट्रेड डील का जिक्र किए जाने पर अधिकारी ने कहा, ‘हम यह देख रहे हैं कि जो भी डील हो, उसमें तुलनात्मक रूप से भारत फायदे में रहे। वैसे भी भारत पर वियतनाम जैसे टैरिफ की बात नहीं बनती क्योंकि भारत किसी तीसरे देश की चीजों के निर्यात का जरिया नहीं रहा है।’
अमेरिका ने वियतनाम के साथ जो ट्रेड डील की है, उसमें वियतनाम से आयात होने वाली चीजों पर उसने 20% टैरिफ लगाया है और वियतनाम से होकर किसी तीसरे देश के आने वाले सामान पर 40% तक टैरिफ लगने की बात है।
स्टील पर अमेरिकी टैरिफ के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘अमेरिका किसी भी देश को स्टील के मामले में रियायत नहीं देना चाहता है। हमने भी अपनी इंडस्ट्री की रक्षा के लिए सेफगार्ड ड्यूटी लगाई है। हमारी नजर उन क्षेत्रों पर है, जिनमें हमें तुलनात्मक रूप से दूसरे देशों पर बढ़त हासिल है।’
कॉमर्स मिनिस्ट्री में स्पेशल सेक्रेटरी राजेश अग्रवाल की अगुवाई में बातचीत करने के लिए अमेरिका गया दल भारत लौट आया है। हालांकि, अधिकारी ने कहा कि ‘दोनों पक्ष संपर्क में हैं और बातचीत चल रही है। 9 जुलाई से पहले मिनी ट्रेड एग्रीमेंट की संभावना बनी हुई है।’