दिल्ली में कैसी पड़ेगी इस बार ठंड मौसम विभाग ने बताया

नईदिल्ली

क्या दिल्ली में इस बार सर्दी का सितम कम रहने वाला है? तो जवाब है, जी हां. हालांकि, इसके पीछे की वजह ग्लोबल फैक्टर से ज़्यादा जुड़ी हुई है लेकिन दिल्ली और आस-पास के इलाकों में मौजूद लोकल फैक्टर भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं. नवंबर का महीना आने वाला है और आमतौर पर इस समय उत्तरी भारत में सर्दी भी शुरू हो जाती है. इस साल हल्की ठंड ने दस्तक तो दी है लेकिन आने वाले समय में भयंकर ठंड वाला मौसम शायद ही देखने को मिले. मौसम में इस बदलाव में एल नीनो जैसे ग्लोबल फैक्टर का असर तो है ही उत्तर पश्चिमी मैदानी इलाकों के स्थानीय कारक भी इसके लिए जिम्मेदार हैं.

क्या प्रदूषण से कम हो रही है ठंड?

प्रदूषण का असर ठंड पर होता है या नहीं ये भी मौसम के कारकों पर निर्भर है. हवा की रफ्तार तो प्रदूषण के कणों को तितर-बितर करने की सबसे बड़ी वजह बनती है यानी जैसे ही हवा की रफ्तार कम होगी तो प्रदूषण का असर ज्यादा होगा. प्रदूषण फैलाने वाले महीन कण यानी पीएम10 और पीएम2.5 ऐसी हालत में वातावरण में ज़्यादा मौजूद होते हैं और उनकी वज़ह से धुंध या स्मॉग देखने को मिलता है.

दिल्ली-NCR में वायु प्रदूषण का क्या है हाल
मौसम विभाग (IMD) की सीनियर वैज्ञानिक सोमा सेन रॉय बताती हैं कि "वैसे तो शुष्क मौसम में प्रदूषण के कणों का सीधा तापमान के कम या ज़्यादा होने पर कोई असर नहीं होता है लेकिन जब प्रदूषण के साथ आर्द्रता भी आती है तो फिर ब्लैंकेट इफेक्ट देखा जाता है यानी वैसी स्थिति में गर्मी वायुमंडल से बाहर नहीं निकल पाती है और रात में गर्मी बनी रहती है." अभी के मौसम की बात करें तो इस समय दिल्ली और आसपास के इलाकों में सुबह के अलावा नमी काफी कम देखने को मिल रही है, जिसकी वजह से न्यूनतम तापमान 15 डिग्री से 17 डिग्री के बीच बना हुआ है, जो इस समय के लिए सामान्य श्रेणी में आता है.

कैसी रहेगी इस साल ठंड?

ये साल अल-नीनो साल है, यानी समुद्र का तापमान सामान्य से अधिक होता है. अल-नीनो का असर अगले साल मार्च-अप्रैल तक सबसे अधिक रहने की संभावना है, जो इस साल तेज़ सर्दी नहीं आने देगी. ना सिर्फ इसकी वजह से दिसंबर-जनवरी के पीक महीनों में कम सर्दी होने का अनुमान है बल्कि फरवरी महीने से गर्मी की दस्तक भी हो सकती है. सोमा सेन रॉय के मुताबिक "अभी आने वाले कुछ दिनों में दिल्ली और आस-पास के इलाकों में अच्छी बारिश होने की संभावना भी ना के बराबर है.
 

दरअसल, एक वेस्टर्न डिस्टरबेंस इस हफ्ते के दूसरे हिस्से यानी 2 नवंबर के आस-पास सक्रिय तो होगा लेकिन कमज़ोर वेस्टर्न डिस्टरबेंस दिल्ली में बादल वाला मौसम तो लाएगा लेकिन बारिश की संभावना न के बराबर है, जिससे मौजूदा शुष्क मौसम में बदलाव का अनुमान कम ही है. जानकारों की मानें तो जिस साल अल-नीनो प्रभावशाली होता है, उस साल वेस्टर्न डिस्टरबेंस भी कम ही आते हैं. सर्दियों में मुख्य तौर पर यही पश्चिमी विक्षोभ बारिश करवाते हैं. बारिश की वजह से प्रदूषण का स्तर भी कम होता है, इसलिए प्रदूषण का स्तर इस साल कम रहेगा या अधिक उस पर भी इसका असर पड़ना लाजिमी है.

मॉनसून पर भी हुआ अल-नीनो का असर

मौसम विभाग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों को आधार बनाते हुए एक मौसम पूर्वानुमान एजेंसी क्लाइमेट ट्रेड एंड कार्बन कॉपी ने बीते मॉनसून का विश्लेषण किया है. इस विश्लेषण में कई सारे चौंकाने वाले तथ्य भी सामने आए हैं. आंकड़ा दिखता है कि देश के 73 प्रतिशत इलाकों में मॉनसून सामान्य रहा. लेकिन अगर हम जिलावार और दिन के मुताबिक देखें तो स्थिति बिल्कुल अलग नजर आती है. इसका मतलब यह हुआ कि ज्यादातर इलाकों में एक दिन में औसत से या तो काफी अधिक बारिश हो गई या फिर औसत से काफी कम.

 

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