सरकार भी नहीं आई काम, टाटा में फिर घमासान, अब कोर्ट में होगा ‘मिस्त्री’ का फैसला!

नई दिल्ली: देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी टाटा संस है। इस कंपनी में टाटा ट्रस्ट्स का मैज्योरिटी स्टेक है। लेकिन टाटा ट्रस्ट्स में पिछले कुछ समय से घमासान मचा हुआ है। टाटा ग्रुप के अधिकारियों ने हाल में दिल्ली में दो वरिष्ठ मंत्रियों से भी मुलाकात की थी। लेकिन यह मामला शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट (SDTT) और सर रतन टाटा ट्रस्ट (SRTT) के ट्रस्टी मेहली मिस्त्री का कार्यकाल 28 अक्टूबर को खत्म हो रहा है। सूत्रों के मुताबिक टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन, वाइस चेयरमैन और एक अन्य ट्रस्टी अब मिस्त्री को दोबारा नियुक्ति देने के मूड में नहीं हैं। माना जा रहा है कि वे आज अपना फैसला बता सकते हैं।

मेहली मिस्त्री साल 2022 से SDTT और SRTT के ट्रस्टी हैं। इस हफ्ते उनके कार्यकाल को बढ़ाने के लिए वोटिंग होनी है। इन दोनों ट्रस्ट्स की टाटा संस में 51% हिस्सेदारी है। शुक्रवार को टाटा ट्रस्ट्स के सीईओ सिद्धार्थ शर्मा ने उनके कार्यकाल को बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था। सूत्रों के मुताबिक ट्रस्टी दारियस खंबाटा, प्रमित जवेरी और जहांगीर एचसी जहांगीर ने इस प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे दी है। लेकिन टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन नोएल टाटा, वाइस चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन और विजय सिंह ने अब तक अपनी मंजूरी नहीं दी है।

कानूनी लड़ाई

सूत्रों का कहना है कि मिस्त्री के दोबारा ट्रस्टी न बनने की स्थिति में कानूनी लड़ाई शुरू हो सकती है। मेहली मिस्त्री को नोएल टाटा, श्रीनिवासन और विजय सिंह का विरोधी माना जाता है। टाटा ट्रस्ट्स में ट्रस्टियों की नियुक्ति और अन्य फैसले आम तौर पर सर्वसम्मति से होते आए हैं। लेकिन 11 सितंबर को इस परंपरा को तोड़ा गया जब ट्रस्टियों ने बहुमत से पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह को टाटा संस के बोर्ड से एक नॉमिनी डायरेक्टर के तौर पर हटा दिया था। इसके बाद घटनाओं की एक ऐसी कड़ी शुरू हुई जिसने टाटा ट्रस्ट्स के मतभेदों को सार्वजनिक कर दिया।इस बात को लेकर स्पष्टता नहीं है कि अगर मतभेद हों तो क्या किसी ट्रस्टी की दोबारा नियुक्ति बहुमत से हो सकती है या इसके लिए सभी की सहमति जरूरी है। अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि यह ट्रस्ट्स के लिए एक नई स्थिति है क्योंकि रतन टाटा के दशकों के कार्यकाल के दौरान ट्रस्ट के फैसलों पर कभी वोटिंग नहीं हुई थी। पिछले साल अक्टूबर में रतन टाटा के निधन के नौ दिन बाद 17 अक्टूबर को ट्रस्टियों की एक बैठक हुई। इसमें यह फैसला हुआ कि सभी ट्रस्टियों का कार्यकाल आजीवन बढ़ाया जाएगा। लेकिन यह प्रस्ताव इस बात पर पर्याप्त स्पष्टता नहीं देता कि यह कैसे किया जाएगा।

सशर्त मंजूरी

दिवंगत रतन टाटा के करीबी माने जाने वाले मेहली मिस्त्री ने पिछले हफ्ते श्रीनिवासन की SDTT के ट्रस्टी और वाइस चेयरमैन के तौर पर दोबारा नियुक्ति के लिए सशर्त मंजूरी दी थी। एक सूत्र ने बताया, "इस बात पर आंतरिक बहस चल रही है कि क्या मिस्त्री… श्रीनिवासन के लिए अपनी मंजूरी वापस ले सकते हैं और तीन ट्रस्टियों के उनके कार्यकाल को रिन्यू न करने के फैसले को कानूनी रूप से चुनौती दे सकते हैं। माना जाता है कि टाटा, श्रीनिवासन और सिंह ने इस मुद्दे पर कानूनी सलाह ली है। इन तीनों ने टिप्पणी के लिए भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं दिया।

हालांकि कुछ ट्रस्टीज ने मिस्त्री के कदम को बेतुका बताया। एक ट्रस्टी ने कहा कि सशर्त मंजूरी कानूनी रूप से मान्य नहीं है। कोई व्यक्ति किसी प्रस्ताव को मंजूरी देकर फिर उसे वापस नहीं ले सकता।" कानूनी विशेषज्ञों ने भी ऐसे कदम की वैधता पर सवाल उठाए। कानूनी फर्म कैपस्टोन लीगल के मैनेजिंग पार्टनर आशीष के सिंह ने कहा कि सशर्त मंजूरी केवल तभी मान्य हो सकती है जब वह ट्रस्ट के नियमों में स्पष्ट रूप से प्रदान की गई हो। इसके अलावा, जब सशर्त मंजूरी देते समय व्यक्तिगत हित शामिल होता है, तो इसे आम तौर पर कानून की नजर में अप्रवर्तनीय माना जाता है।

कौन हैं मेहली मिस्त्री?

मिस्त्री एम पल्लोनजी ग्रुप ऑफ कंपनियों के प्रमोटर हैं। कई टाटा कंपनियां उनके वेंचर्स की सहयोगी या भागीदार हैं। ग्रुप की वेबसाइट के अनुसार उसकी कंपनी स्टर्लिंग मोटर्स टाटा मोटर्स की डीलर है। इसी तरह टाटा स्टील, टाटा पावर और टाटा एनवाईके शिपिंग जैसी टाटा ग्रुप की कंपनियों को विभिन्न व्यवसायों में ग्राहक/सहयोगी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। मिस्त्री ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल ट्रस्ट के भी ट्रस्टी हैं। मिस्त्री एसपी ग्रुप के प्रमोटर शापूरजी मिस्त्री के चचेरे भाई हैं। यह ग्रुप टाटा ट्रस्ट्स के बाद टाटा संस का दूसरा सबसे बड़ा शेयरधारक है। टाटा संस में उसकी 18.37% हिस्सेदारी है।

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