सितारों ने बताया कि उनके लाइफ में कौन ऐसा है जिन्हें वे बप्पा की तरह विघ्नहर्ता मानते हैं

मुंबई

हर ओर पंडाल सज चुके हैं और गणपति अपने भक्तों के यहां पधारने वाले हैं। ऐसे गणेशमय माहौल में हमने सिलेब्रिटीज से जाना कि उनकी जिंदगी में ऐसा कौन इंसान है, जिसे वे गणेश की तरह विघ्नहर्ता मानते हैं। हमे मिले कई दिलचस्प जवाब, आप भी जानिए।

शुभ काम से पहले छूती हूं मां के पैर : दीया मिर्जा
कहते हैं कि आपकी मां आपकी पहली गुरु होती हैं, मगर मैं ये कहूंगी कि मेरी मां मेरी गुरु के साथ-साथ मेरी जिंदगी की गणेश भी हैं, तो गलत नहीं होगा। मैं अपने जीवन में कोई भी शुभ कार्य शुरू करने से पहले उनके पैर जरूर छूती हूं। मुझे याद है कि मैं बचपन में काफी शर्मीली हुआ करती थी। पहली बार जब मैंने ड्रामा कॉम्पिटिशन में हिस्सा लिया था, तब भी मैं अपनी मां के पैर छूकर ही गई थी। उसी के बाद मैं लोगों से घुलने-मिलने लगी और मुझमें आत्मविश्वास आया। वहीं मेरे पति (वैभव रेकी) भी मेरी जिंदगी के गणेश की तरह ही हैं। उनके बगैर मैं कोई काम नहीं कर पाती। मैं कोई भी काम करूं, छोटा या बड़ा उन्हें जरूर शामिल करती हूं।

मेरे जीवन के विघ्नहर्ता हैं मेरे दोस्त : पल्लवी जोशी
मेरे जीवन में मेरे दोस्तों का काफी अहम रोल रहा है। मुझे बताने में कोई हर्ज नहीं कि मेरे दोस्तों की यही टोली मेरी जिंदगी में श्री गणेश का रूप साकार करती है। ये सभी मेरे बचपन के दोस्त हैं। मेधा, तृप्ति, दीपा और सुकुमार हैं, ऐसे तीन-चार दोस्त हैं मेरे। मैं कुछ भी करती हूं, तो सबसे पहले इन्हीं से बात करती हूं। मैं उन्हें सब कुछ बताती हूं। एक मेरी दोस्त शुभ्रा है, अगर मैंने उसका नाम नहीं लिया, तो वह बहुत चिढ़ेगी मुझ पर। बचपन के दोस्तों की एक खासियत जरूर होती है कि वे आपकी अच्छी-बुरी हर चीज से वाकिफ होते हैं। मैं इस मामले में लकी हूं कि मुझे ऐसे दोस्त मिले हैं, जिनके साथ मैं सबकुछ साझा कर सकती हूं। वे मुझे सही राय देते हैं और कई बार फंसती हूं, तो विघ्नहर्ता का काम भी करते हैं।

मेरी मां और बहन हैं मेरे गणेश : वरुण शर्मा
मेरी लाइफ के विघ्नहर्ता मेरी मां और बहन हैं। मेरी जिंदगी में किसी भी चीज की शुरुआत होती है, तो पहला फोन मेरी मां और बहन को जाता है। अगर मैंने नया फोन लिया हो, तो उससे पहला कॉल इन दोनों को जाएगा। अगर मैंने नई गाड़ी ली है, तो सबसे पहले गाड़ी में ये दोनों ही बैठेंगी। अगर मैंने कोई फिल्म की स्क्रिप्ट फाइनल की हो, तो सबसे पहले इन दोनों को बताऊंगा। मेरे जीवन का हर काम इनके बिना अधूरा है। पिता के जाने के बाद मेरी मां ने मेरा बहुत साथ दिया। आज मैं जो कुछ भी हूं, उन्हीं की वजह से हूं। इसलिए मैं हर काम में उन्हें शामिल करता हूं।

मेरे दादा थे मेरे फ्रेंड गणेशा : पुलकित सम्राट
मैं तो इस मामले में अपने दादा का ही नाम लूंगा। मैंने जब से होश संभाला, तब से मैंने अपने हर काम में उन्हें पाया है। जब भी स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे, तो मैं दादाजी को सबसे पहले बताया करता था। दिल्ली में स्कूलों में जन्माष्टमी के फंक्शन काफी बड़े पैमाने पर मनाए जाते हैं। इस मौके पर मैं कृष्ण बनता था और उसमें गोपियां बनी स्टूडेंट्स के साथ मैं डांडिया भी करता था। मुझे प्रोत्साहित करने के लिए दादाजी मेरे साथ हर जगह होते थे। मैंने आजादी के दिन और रिपब्लिक डे पर इंडिया गेट पर अपनी पहली परेड भी उन्हीं की बदौलत देखी। उन्होंने मेरी जिंदगी में कई चीजों का श्रीगणेश किया। वे मेरे आदर्श, मेरे दोस्त और मेरे गणेशा सभी कुछ रहे।

मम्मी को हर शुभ काम में शामिल करता हूं : मनजोत सिंह
मैं तो हर शुभ काम में अपनी मम्मी को याद करता हूं, मगर मम्मी कहती हैं कि तूने मुझे बता दिया अब जाकर गुरुद्वारे में माथा टेक कर आ। मुझे याद है कि अपनी पहली फिल्म ओये लकी, लकी ओये के लिए जब मुझे फिल्मफेयर क्रिटिक अवॉर्ड मिला, तब वहां बोली गई मेरी पहली स्पीच भी मेरी मॉम ने ही लिखी थी। उस वक्त मैं सिर्फ 16 साल का था। मैं अपनी मम्मी को अपनी हर खुशखबरी सब से पहले देता हूं। उन्हीं के आशीर्वाद के बदौलत हूं मैं।

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