दुनिया को सवाल करना चाहिए कि यूक्रेन संघर्ष को सुलझाने में सुरक्षा परिषद क्यों निष्प्रभावी रही: भारत

संयुक्त राष्ट्र
यूक्रेन युद्ध जारी रहने के मद्देनजर भारत ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह सवाल करना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र की मुख्य इकाई- सुरक्षा परिषद यूक्रेन संकट को सुलझाने में क्यों पूरी तरह निष्प्रभावी रही, जबकि अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बरकरार रखना उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी है।

विदेश मंत्रालय के सचिव (पश्चिम) संजय वर्मा ने ‘प्रभावी बहुपक्षवाद के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों को कायम रखना: यूक्रेन की शांति और सुरक्षा बनाए रखना’ विषय पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में  खुली चर्चा के दौरान कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस समय कुछ देर रुककर दो अहम प्रश्न पूछने चाहिए।

वर्मा ने कहा, ‘‘पहला सवाल यह है कि क्या हम किसी ऐसे संभावित समाधान के निकट हैं, जो स्वीकार्य हो?’’ उन्होंने कहा, ‘‘और यदि ऐसा नहीं है, तो फिर ऐसा क्यों है कि संयुक्त राष्ट्र प्रणाली, खासकर उसकी मुख्य इकाई -संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जारी संघर्ष का समाधान करने में पूरी तरह निष्प्रभावी रही, जबकि इसकी मुख्य जिम्मेदारी अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बरकरार रखना है।’’

वर्मा ने कहा कि बहुपक्षवाद को प्रभावी बनाने के लिए पुरानी संरचनाओं में सुधार और पुनर्निमाण की आवश्यकता है, ‘‘अन्यथा उनकी विश्वसनीयता कम होती रहेगी और जब तक हम इस प्रणालीगत दोष को ठीक नहीं कर लेते, हम कुछ हासिल नहीं कर पाएंगे।’’

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने  परिषद को संबोधित किया था। उन्होंने 15 देशों की सदस्यता वाली सुरक्षा परिषद को पहली बार व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर संबोधित किया।

वर्मा ने यूक्रेन में मौजूदा हालात को लेकर भारत की चिंता दोहराई और कहा कि नयी दिल्ली ने हमेशा इस बात की वकालत की है कि मानव जीवन की कीमत पर किसी समाधान तक नहीं पहुंचा जा सकता।

वर्मा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस विचार को रेखांकित किया कि ‘‘यह युद्ध का समय नहीं है’’, बल्कि यह विकास एवं सहयोग का समय है। उन्होंने कहा कि शत्रुता बढ़ाने एवं हिंसा करने से किसी का हित नहीं होगा।

वर्मा ने कहा, ‘‘हमने अपील की है कि शत्रुता को तत्काल समाप्त करने और बातचीत एवं कूटनीति के मार्ग पर तत्काल वापसी के सभी प्रयास किए जाएं।’’ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वार्ता मतभेदों एवं विवादों का एकमात्र समाधान है, भले ही इस समय यह काम कितना भी दुष्कर क्यों न लगे। उन्होंने कहा, ‘‘शांति के मार्ग के लिए हमें कूटनीति के सभी माध्यम खुले रखने होंगे।’’

वर्मा ने कहा कि वार्ता एवं संवाद की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने वाले कदमों को उठाने से बचा जाना चाहिए।

भारत ने इस बात पर खेद जताया कि इस युद्ध के कारण भोजन, ईंधन और उर्वरकों की कीमत बढ़ रही है, व्यापक पैमाने पर दुनिया प्रभावित हो रही है और खासकर ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।

‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल उन विकासशील और अल्प विकसित देशों के लिए किया जाता है, जो मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लातिन अमेरिका में स्थित हैं।

वर्मा ने कहा, ‘‘हमारे नजरिए से यह अहम है कि उनकी (ग्लोबल साउथ) आवाज सुनी जाए और उनकी जायज चिंताओं को दूर किया जाए।’’ उन्होंने कहा कि जी20 की भारत की अध्यक्षता में यह सुनिश्चित किया गया कि विकासशील देशों की कुछ आर्थिक कठिनाइयों को जी20 एजेंडे में सबसे आगे रखा जाए।

वर्मा ने कहा कि यूक्रेन संघर्ष के प्रति भारत का नजरिया जनकेंद्रित रहेगा और नयी दिल्ली यूक्रेन को मानवीय मदद एवं आर्थिक संकट का सामना कर रहे ‘ग्लोबल साउथ’ के अपने कुछ पड़ोसियों को आर्थिक मदद मुहैया करा रही है।

 

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