तिथियों के घटने के कारण आज प्रतिपदा और द्वितीया का श्राद्ध एक साथ

नई दिल्ली। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पितरों का तर्पण व श्राद्ध कर्म किया जाता है। मान्यता है कि जो लोग पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं उन्हें पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार, पूर्वजों का पूजन व श्राद्ध तिथि के अनुसार करना चाहिए। इस साल तिथियों के बढ़ने व घटने के कारण 30 सितंबर को प्रतिपदा व द्वितीया श्राद्ध एक ही दिन पड़ रहा है।
द्वितीया तिथि 30 सितंबर को द्वितीया तिथि दोपहर 12 बजकर 21 मिनट पर प्रारंभ होगी और 01 अक्टूबर को सुबह 09 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगी।
प्रतिपदा व द्वितीया तिथि श्राद्ध व तर्पण के शुभ मुहूर्त:
कुतुप मूहूर्त – 11:47 ए एम से 12:35 पी एम
अवधि – 00 घंटे 48 मिनट

रौहिण मूहूर्त – 12:35 पी एम से 01:23 पी एम
अवधि – 00 घंटे 48 मिनट
अपराह्न काल – 01:23 पी एम से 03:46 पी एम
अवधि – 02 घंटे 23 मिनट
द्वितीया तिथि के दिन किनका होता है श्राद्ध: द्वितीया श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु द्वितीया तिथि पर हुई हो। इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की द्वितीया तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है। द्वितीया श्राद्ध को दूज श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
श्राद्ध की संपूर्ण तिथियां:
29 सितंबर- शुक्रवार- भाद्रपद पूर्णिमा
30 सितंबर- शनिवार- प्रतिपदा और द्वितीया श्राद्ध
1 अक्टूबर- रविवार- तृतीया श्राद्ध
2 अक्टूबर- सोमवार- चतुर्थी श्राद्ध
3 अक्टूबर- मंगलवार- पंचमी श्राद्ध
4 अक्टूबर- बुधवार- षष्ठी श्राद्ध
5 अक्टूबर- गुरुवार- सप्तमी श्राद्ध
6 अक्टूबर- शुक्रवार-अष्टमी श्राद्ध
7 अक्टूबर- शनिवार- नवमी श्राद्ध
8 अक्टूबर- रविवार- दशमी श्राद्ध
10 अक्टूबर- मंगलवार- एकादशी श्राद्ध
11 अक्टूबर- बुधवार- द्वादशी श्राद्ध
12 अक्टूबर- गुरुवार- त्रयोदशी श्राद्ध
13 अक्टूबर- शुक्रवार- चतुर्दशी श्राद्ध
14 अक्टूबर- शनिवार- सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या

श्राद्ध विधि-
1. श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए ही करवाना चाहिए।
2. श्राद्ध कर्म में ब्राह्मणों के साथ ही यदि किसी गरीब, जरूरतमंद की सहायता भी करने से बहुत पुण्य मिलता है।
3. इसके साथ-साथ गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए।
4. अगर संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है। जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए। भोजन के बाद दान दक्षिणा देकर भी उन्हें संतुष्ट करें।
5. श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए। योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्रोच्चारण करें और पूजा के पश्चात जल से तर्पण करें।
6. इसके बाद जो भोग लगाया जा रहा है उसमें से गाय, कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग कर देना चाहिए। इन्हें भोजन डालते समय अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए। मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिए।

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