आज कि नीतियाँ स्वास्थ्य में निजीकरण को बढ़ावा दे रही, नीतियाँ सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ देने पर होना चाहिए

भोपाल
जन स्वास्थ्य अभियान मध्यप्रदेश और हम सब ने आज स्वास्थ्य: चुनौतियाँ और भविष्य विषय पर एक साझा व्याख्यान का आयोजन मंजरी लाइब्रेरी, सेवन हिल्स स्कूल, भोपाल में किया।

कार्यक्रम की शुरुवात करते हुये कार्यक्रम कि रूपरेखा पर प्रकाश डाला, इसके बाद जन स्वास्थ्य अभियान के साथी अमूल्य निधि ने मुख्य वक्ता डॉ इमरना कदीर जी  का और भोपाल गैस पीड़ित संघ की रायसा बी और मोहिनी देवी .ने कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही डॉ मनीषा श्रीवास्तव जी का सूत कि माला से स्वागत किया। हम सब के राकेश दीवान ने कार्यक्रम कि मुख्य वक्ता डॉ इमराना कदीर का और एस. आर. आजाद ने डॉ मनीषा श्रीवास्तव का परिचय दिया।

आज के इस व्याख्यान मे प्रोफेसर (डॉ ) इमराना कदीर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थी। उन्होने अपने वक्तव्य में ज़ोर देते हुये कहा देश की आजादी के समय देश के गरीब से गरीब व्यक्ति को प्राथमिक मूलभूत स्वास्थ्य देने की सोच थी। उन्होने भारत मे लोगों को स्वास्थ्य  सेवाएँ देने के लिए भोरे समिति से लेकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य बिल 2009, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन सहित कई महत्वपूर्ण योजनाओं और नीतियों पर विस्तार से अपनी बात रखी। उन्होने देश कि वर्तमान स्वास्थ्य स्थितियों पर चर्चा करते हुये कहा संरचनात्मक समायोजन नीति (Structural Adjustment Policy) के नाम पर 1990 के दशक में देश में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की शुरुवात हुई और धीरे धीरे बढ़ता हुआ आज 70% स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ निजी क्षेत्र पर निर्भर हो गई हैं वहीं बिस्तरों की संख्या महज 40% तक सीमित है। जबकि इस नीति के तहत लोगो बुनियादी सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के साथ साथ रोजी रोटी और मकान भी नहीं दे पाये हैं। उन्होने कहा कि आज की नीतियाँ स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा दे रही हैं। सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखबहल के स्थान पर कवरेज ध्यान केन्द्रित कर रही है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन भी मुश्किल में है और सरकार लगातार इसका बजट आवंटन कम कर रही है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही डॉ मनीषा ने अपने उद्बोधन मे कहा कि हमारी नीतियाँ सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाये है। डॉक्टर योजनाओं उचित इलाज करने में सहयोग देती हैं परंतु आयुष्मान भारत जैसी योजनाएँ सिर्फ अस्पताल में भर्ती मरीज के लिए जबकि प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ, रेफरल और मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य के लिए आज कुछ विशेष नहीं है। एनएफएचएस का डाटा ये बता रहा है कि  एनीमिया बढ़ रहा है और कुपोषण के आंकड़े चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि जमीनी स्तर के अनुभव को लिखना चाहिए और एक समग्र रिपोर्ट बनानी चाहिए जिससे पॉलिसी मेकर सीख पाए। क्या हम केयर और कवरेज के मुद्दे और कोस्ट ऑफ केयर को कैसे कम करे, इस मुद्दे पर हम सभी को मिल कर कार्य करना है।

आज के सी कार्यक्रम में स्वास्थ्य विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता, पब्लिक हैल्थ के विद्यार्थी, पत्रकार और विभिन संस्थाओं और संगठन के प्रतिनिधि शामिल हुये।

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